कौन कहता है कि नेता जनता के लिए नहीं
लड़ते..? उनकी हक की आवाज़ नहीं उठाते..? उनके लिए लड़ाई नहीं लड़ते..?
उन्हें जनता की चिंता नहीं है..? नेताओं को जनता की चिंता भी है और वे उनके
हक की आवाज़ भी उठाते हैं बशर्ते इसमें उनका भी तो कुछ फायदा होना चाहिए।
नेताओं को वैसे भी जनता से क्या चाहिए एक अदद वोट। इस एक वोट के लिए तो
हमारे नेतागण किसी भी हद तक जा सकते हैं..! वोटों को साधने का कोई मौका ये
नेता नहीं छोड़ते चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े..! हिंदुस्तान की राजनीति कुछ ऐसे ही चलती है।
बरसों से यही तो होता आ रहा है। अलग – अलग राज्यों की भाषा, संस्कृति अलग-
अलग है लेकिन नेताओं का चरित्र बिल्कुल एक जैसा है..! उत्तर से लेकर
दक्षिण तक की हालिया राजनीतिक हलचलें इस तस्वीर की धुंधलाहट को और साफ करती
है। शुरुआत वर्तमान में सबसे चर्चित दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से करते हैं।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को चेन्नई में आईपीएल मैचों में श्रीलंकाई
खिलाड़ियों के खेलने पर एतराज है। इतना ही नहीं वे भारत सरकार से श्रीलंका
से मैत्रीपूर्ण संबंध खत्म करने तक की वकालत करती हैं। उन्हें श्रीलंका को
भारत का मित्र देश कहने में तक आपत्ति है। जयललिता तो जयललिता द्रमुक
प्रमुख करुणानिधि को ही देख लिजिए। श्रीलंकाई तमिलों के लिए केन्द्र सरकार से
समर्थन तक वापस लेने से पीछे नहीं हटे। आखिर क्यों..? श्रीलंका के तमिलों
के हितों की रक्षा के बहाने खुद को तमिलों का सबसे बड़ा हितैषी जो साबित
करना है तभी तो तमिलनाडु में तमिलों की सहानुभूति हासिल कर पाएंगे..!
जयललिता के तेवर देखकर तो ऐसा लगता है कि
जैसे तमिलनाडु में रहने वाले तमिलों को कोई दुख तकलीफ है ही नहीं..! जैसे
तमिलनाडु में न तो तमिलों के मानवाधिकारों का हनन होता है और न ही तमिलों
के साथ किसी तरह की ज्यादती..! मैडम जी अच्छा लगा सुनकर कि आपको श्रीलंकाई
तमिलों की चिंता है लेकिन पहले अपने राज्य के हालात तो सुधार लें…उनकी सुध
तो ले लें…फिर करना श्रीलंकाई तमिलों की चिंता..!
जयललिता जी राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण
ब्यूरो(एनसीआरबी) के आंकड़े कहते हैं कि 2011 में देश में अपराधों के मामले
में उत्तर प्रदेश(33.4 %) के बाद दूसरा नंबर तमिलनाडु (11.5 %) का है।
आपको अपने घर को आग से बचाने की चिंता नहीं है लेकिन दूसरे के घर की आग की
भभक आपको परेशान कर रही है। वोटों के लिए हमारे एक और राज्य बिहार के
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आजकल कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।
उन्हें बिहार को हर हाल में विशेष राज्य का दर्जा जो दिलवाना है। कभी बिहार
में तो कभी दिल्ली में बिहार के लोगों के नाम पर उनके हक की बात करते
दिखाई दे रहे हैं। इस बहाने बिहार की जनता का हितैषी कहलाने का तमगा भी
हासिल कर लेंगे ताकि आम चुनाव में भी बिहार की जनता इनकी पार्टी के
उम्मीदवारों को जिता कर संसद पहुंचाए..!
इन सब से दो कदम आगे हैं जम्मू-कश्मीर के
मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला। साहब जिस देश में रहते हैं…जिस देश की खाते हैं
उसके खिलाफ बोलने में नहीं हिचकते..! मानवता की दुहाई देकर देश के दुश्मनों
की पैरवी करने का कोई मौका नहीं चूकते..! अफजल गुरु की फांसी के बाद उमर
की प्रतिक्रिया को याद ही होगी आप सभी को। उमर की प्रतिक्रिया से तो ऐसा लग
रहा था मानो अफजल को फांसी देकर सरकार ने बड़ी गलती कर दी..! इन साहब को भी सिर्फ वोट ही दिखाई देते
हैं। सीमा पार से आकर भारतीय सैनिकों का सिर कलम करने वाले या देश की संसद
पर हमला करने वाले इन्हें नहीं दिखाई देते..! इन्हें तो कश्मीर में जवानों
का हथियार लेकर चलने में तक आपत्ति है..! इनका बस चले तो आतंकी अगर जवानों
पर हमला करें तो ये जवानों को मुकाबला करने के लिए लाठी पकड़ा दें..! हाल
ही में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकियों ने जब हमला किया तो क्या ऐसा नहीं हुआ
था..?
ये कहानी सिर्फ तमिलनाडु, बिहार या
जम्मू-कश्मीर की ही कहानी नहीं है…सभी राज्यों में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
फर्क सिर्फ इतना है कि हर राज्य में ये काम करने वाले सत्ताधारी दल के नेता
अलग – अलग हैं…उनकी पार्टी अलग है लेकिन सबके तीर का निशाना एक ही
है…वोटबैंक..! आखिर सत्ता की चाबी हासिल करने का यही तो सबसे सटीक तरीका जो
लगता है इन्हें..! विडंबना देखिए फैसला तो जनता को ही करना
होता है लेकिन हमारे देश की जनता बड़ी भोली है…हर बार नेताओं की मीठी बातों
पर इनके झूठे वादों पर एतबार कर लेती है…और इन्हें सौंप देती है सत्ता की
चाबी…लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि आखिर कब तक..? क्या जनता समझ पाएगी इन
नेताओं का चरित्र..?
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