02 April 2013

क्या अरविंद केजरीवाल का संघर्ष एक छलावा है ?

आम जनता की हालत में अहम परिवर्तन लाने के मकसद से कभी टीम अन्ना के सदस्य रहे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल बिजली.पानी के दामों में हुई बढ़ोत्तरी के विरोध में अनशन पर बैठे किंतु उन्हें अपेक्षित जन समर्थन हासिल नहीं हुआ। जबकि पिछली बार जब जनलोकपाल जैसे मुद्दे को उठाकर अन्ना हजारे भूख हड़ताल पर गए थे तो मीडिया के साथ.साथ पूरी दुनिया की नजरें उन पर टिकी थीं। किंतु अब अलग.थलग पड़ गए अरविंद केजरीवाल किसी भी परिदृश्य में नहीं रहे। ना ही उन्हें मीडिया फोकस कर रही है और ना ही जिस जनता के लिए उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर अनशन ठाना उसने ही उन्हें महत्व दिया। हालांकि इससे पहले जब अनशन करने के लिए अन्ना हजारे सामने आए थे तब क्या आम क्या खास सब के सब उनके साथ जुड़ने के लिए बेताब थे। आम जनता अन्ना की एक झलक पाने के लिए भीड़ जुटाया करती थीए उनके समर्थन में नारे लगाती थी और हर बड़ा राजनेता उनके साथ मंच साझा करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करता था। इतना ही नहीं नामचीन सिलेब्रिटीज तक ताक लगाए बैठते थे कि कब उन्हें निमंत्रण आए अन्ना के समर्थन में भाषण देने का। लेकिन अब जब अरविंद केजरीवाल अकेले अपने दम पर लड़ रहे हैं तो उन्हें कोई भी पूछने वाला नहीं रह जनता द्वारा अरविंद केजरीवाल के आंदोलन से मुंह मोड़ लेने के बाद बने सामाजिक और राजनीतिक हालातों पर बहस करने के लिए बुद्धिजीवियों के दो वर्ग बन गए हैं। दोनों वर्गों के लोग अरविंद केजरीवाल और उनके द्वारा किए जा रहे अनशन को अलग.अलग दृष्टिकोण से देखते हैं।

कुछ लोगों का कहना है कि  आज जबकि हर क्षेत्र में राजनीति हावी है और भारत की राजनीति को तो वैसे भी स्वार्थ की राजनीति का ही दर्जा दिया जाता है तो ऐसे में अगर कोई भी व्यक्ति समाज सुधार की दिशा में अपने कदम बढ़ाता है तो उसके उद्देश्यों को भुलाकर उसके हर कदम को राजनीति से प्रेरित मानकर नकार दिया जाता है। आमजन की मूलभूत जरूरत बिजली के बढ़ते दामों को वापस लेने के लिए अरविंद ने सरकार पर जोर देना चाहा। लेकिन जिस जनता के लिए वह यह कर रहे हैं वही उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार नहीं है और वो भी बस इस आधार पर क्योंकि जनता अरविंद केजरीवाल का राजनीति की ओर रुख करने जैसी मंशा को पचा नहीं पा रही है। राजनीति को आजकल गंदगी माना जाने लगा है और यह भी कहा जाता है कि बिना इस गंदगी में उतरे इसे साफ करना नामुमकिन है। ऐसे में अगर अरविंद केजरीवाल स्वस्थ राजनीति का स्वप्न सजाए उसमें उतरना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है!

वहीं दूसरी तरफ वे लोग हैं  जो यह साफ कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल का कोई भी उद्देश्य जन हितार्थ नहीं है। वह पूरी तरह राजनीतिक मंतव्यों को साधने की फिराक में हैं जिसके लिए वह जनता को माध्यम बना रहे हैं। जनता उनकी राजनीतिक मंशाओं को समझती है इसीलिए अरविंद को समर्थन देने से बच रही है। वह जानती है कि राजनीति में कदम रखने के बाद कोई भी व्यक्ति जनता का हितैषी नहीं रहता। सत्ता के नशे में चूर वह सिर्फ वही निर्णय लेता है जिससे वह अपनी कुर्सी को बचाए रख सके। राजनीति के मैदान में कई ऐसे व्यक्तित्व मौजूद हैं जो भोलीभाली जनता की संवेदनाओं का फायदा उठाकर राजनीति में प्रदार्पित तो हुए लेकिन कुर्सी संभालते ही वह सारे वादे भूल गए जो कभी उन्होंने जनता के साथ किए थे। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी ;आम आदमी पार्टीद्ध अगर सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो जाहिर है वो भी ऐसा ही करेंगे। जनता समझदार है इसीलिए वह उन पर विश्वास नहीं कर रही है।

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