दो वयस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को जायज माना जाए या नहीं, इसे लेकर पूरे देश में एक बहस छिड़ी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को वैध करार देते हुए 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया है। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2 जुलाई 2009 को दिए गए एक ऐतिहासिक निर्णय द्वारा भारत में वयस्कों के बीच स्वैच्छिक समलैंगिक सम्बन्धों को संवैधानिक मूल अधिकारों के अंतर्गत मानते हुए, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को एक हद तक शून्य करार दिया था। आज देश में लगभग 25 लाख समलैगिंक है जिनमे से 1.75 लाख एचआईवी से संक्रमित है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इन परिस्थितयों में इसे कहीं से भी उचीत ठहराना सही है? क्या ये यौनिक आजादी के नाम पर प्राकृतिक रीतियों और वैदिक संस्कृतिक के विपरीत बिमारियों को बढ़ावा देने जैसा नहीं है?
विवाह का उद्देश्य सिर्फ यौन इकछा ही नहीं वल्कि सन्तानोत्पत्ति भी है, धर्म ग्रन्थों के मुताबिक बिना संतानोत्पत्ति के विवाह का उद्देश्य अपूर्ण है। ऐसे में अप्रकृति सेक्स को किस ओर से उचीत ठहराया जा सकता है ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। अब तक के जितने भी समलैगिंक जोड़े ने संतान सुख हासील किए है वो सारे के सारे सेरोगेसी मां से प्राप्त हुई है। तो सवाल इस बात को लेकर भी खड़ा होता है कि फिर इसे कानूनी मान्यता देने के बाद देश में सेरोगेसी को अवैध बढ़ावा नहीं मिलेगा? क्या आधुनिकता के नाम पर पुरानी परंपराओं और मान्यताओं को त्याग से देश में पश्चात् संस्कृती को बढ़ावा नहीं मिलेगा? हाल ही में दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक न्यायालय नें भी समलैंगिकता को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। क्योकि आज अफ्रीका में इसे लेकर कई प्रकार की समस्याये खड़ी हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक रिश्ते को अमान्य और आपराधिक करार दिए जाने की खिलाफत करने वालों का मानना है कि यह एक तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन है। मगर सबसे बड़ी बात यहा ये है कि भारतीय समाज पर पश्चिमी संस्कृति और मूल्यों-मान्यताओं को हम उसी रूप में स्वीकृती दे सकते है जैसे विदेशों में पहले से ही चला आरहा है? समलैंगिक रिश्ते को महज कानूनी मान्यता तक सीमित किया जा सकता है या नहीं इसे लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से खुलकर हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फैसले पर निराशा जताई है। तो वहीं पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने धारा-377 को फिर से अपराध की श्रेणी में डालने का विरोध किया है। राहुल ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए इसे निजी स्वतंत्रता का मुद्दा बताया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव के लिए सरकार ने पहल के संकेत भी दिए हैं। सरकार इसके लिए अध्यादेश भी ला सकती है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि समलैंगिक संबंधों का समर्थन क्यों ?
लेकिन यह वैयक्तिक स्वतंत्रता का पोषक भी तो हो सकता है क्योंकि हर व्यक्ति को किसी के प्रेति भावनात्मक और शारीरिक रूप से आकर्षण रखने और सम्बधं रखने की स्वतंत्रता है।
ReplyDelete