20 December 2013

क्या हो अमेरिकी दादागिरी का जवाब ?

अमेरिका की दादागिरी से देश एक बार फिर से उबाल पर है। हर तरफ अमेरिका विरोधी नारे गुंज रहे हैं। बीते कुछ सालों में अमेरिकी ने जिस कदर भारत के अंदर और बाहर अपनी वर्चस्व दिखा रहा है उसको लेकर कई अहम सवाल भी खड़े होने लगे हैं। अपने आप को दुनिया का दादा बताने वाला अमेरिका आज अपनी टुच्ची हरकतों को लेकर मौन है। उसे न तो कोई जवाब सुझ रहा है और नहीं कोई उपाय। अमेरिका की अतिवादीता से आज देश ये मांग कर रहा है कि अब समय आ गया है कि अमेरिका की दादागिरी का जावब उसी अंदाज में दिया जाय, जिस अंदाज में अमेरिका अपने आप को दुनिया के सामने दिखाता है। साथ ही इस मिथक को भी तोड़ने की मांग सड़क से लेकर संसद तक उठने लगी है। बात चाहे देवयानी खोबरागड़े, जार्ज फर्नांडीज, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रफुल्ल पटेल, राजदूत मीरा शंकर की या फिर देश के जाने माने हस्तियों की। हर बार अमेरिका अपने आप को भारत के सामने सुपरपावर होने का दंभ भरता है और भारत इसके आगे दोस्ताना रिस्ते की बात कह कर हर बार इसे नज़र अंदाज कर देता है। मगर आज बात एक नारी की इज्जत का है इसलिए हिन्दुस्तान का जनमानस अमेरिकी दादागिरी को डिकाने के लिए तत्पर दिख रहा है।

अमेरिका अपने स्टैण्डर्ड प्रोसीजर का हवाला देकर देवयानी खोबरागड़े की तलाशी  की बात कर रहा है। अमेरका ने पहले देवयानी खोबरागड़े की अर्धनग्न तलाशी ली फिर उसके बाद नशेडडि़यों और देहव्यापार करने वाली औरतों के साथ हवालात में रखा। जबकी वियना समझौते के मुताबिक ऐसे किसी भी प्रकार के काईवाई भारतीय राजनयिको के साथ करने का अधिकार अमेरिका के पास नहीं है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि अमेरिका अपने आप को भारत के आगे दादागिरी दिखा रहा है। क्या भारत सरकार के पास अमेरका के आगे गिड़गिड़ाने के अलावे दुसरा कोई जवाब नहीं है? 

साथ ही सवाल ये भी है कि भारत सरकार की विदेश नीति अमेरिका को लेकर इतनी लचर क्यों है? क्या इसी का जतीजा है कि आज अमेरिका अपना दादागिरी दिखा रहा है? राजनयिक मान्यता एक राजनैतिक क्रिया है, जिसके द्वारा एक राष्ट्र दुसरे राष्ट्र को विषेश मान्यता और छुट प्रदान करता है। एक देश से दूसरे देश में दूत भेजने की प्रथा युगों युगों से चली आ रही है। बात चाहे रामायण, महाभारत की हो या फिर मनुस्मृति और कौटिल्य की अर्थशास्त्र। दुत प्रथा युगों युगों से चली आ रही है, और आज तक किसी ने किसी की दुत को गिरफ्तारी या तलाशी नहीं ली। मगर आज अमेरिका ने देवयानी खोबरागड़े को जिस प्रकार से द्रोपदी की तरह चिरहरण किया है उसको लेकर भारत ही नहीं पूरी दुनिया अमेरिका की हरकातों से शर्मशार है। आज देश ये मांग कर रहा है कि दादागिरी करनेवाले अमेरिका को उसीकी भाषा में जवाब देना चाहिए।

अमेरिका का ये कहना कि भारतीय राजदूत ने साड़ी पहनी थी इसलिए उनकी तलाशी ली गई, तो सवाल और भी गंभिर हो जात है। सवाल खड़ा होता है क्या अमेरिका को ये पता नहीं की भारतीय महिलाओ की पारंपरिक पोशाख साड़ी है। क्या अमेरिका अपनी पाश्चत्य सभ्यता भारत पर थोपने की कोशिशो में लगा है। क्या अमेरिका को भारतीय संस्कृति राश नहीं आ रही है। क्या अमेरिका अपने "गिव रेस्पेक्ट एंड टेक रेस्पेक्ट" की परंपरा भुल गया है। अमेरिका माफी मांगने की जगह अब तक उल्टे भारत पर ही अपनी आंखें तरेर रहा है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्या हो अमेरिकी दादागिरी का जवाब ?

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