06 December 2013

किसके लिए है सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल ?

विपक्ष के जोरदार विरोध के कारण ठंडे बस्ते में पड़े सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को सरकार एक बार फिर संसद में पास कराने पर उतारू है। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जहां विधेयक को राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए इसका विरोध कर रहे है वहीं गृह मंत्रालय अधिकारियों का कहना है कि विधेयक खासतौर पर मुस्लिमों की मांग से जुड़ा है। गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने भी मसौदे के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। जबकी भाजपा इसे खतरनाक और बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ बता रही है।

विधेयक के अनुसार केंद्र हिंसा वाले इलाके में अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का अधिकार रखता है जिसका राज्य सरकारें विरोध कर रही है । इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमे दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का भी प्रस्ताव है। साथ ही सांप्रदायिक हिंसा फैलने पर नौकरशाहों पर कर्रवाई करने का कड़ा प्रावधान है। अधिकारियों का कहना है कि ये प्रावधान सामान्य ड्यूटी निभाने में बाधा पैदा करेगा। प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक हिंदू और मुस्लिम दंगापीडि़तों के लिए अलग-अलग अदालतें बनाने की बात कही गई है ताकि हिंदू और मुस्लिम आरोपियों पर अलग- अलग मुकदमा चलाया जा सके। ऐसे में बिल के इस प्रावधानों से सवाल खड़ा होता है कि क्या ये बिल साम्प्रदायिक दुर्भावना और ध्रुवीकरण को वैधता नहीं करेगा? क्या कथित अपराधियों को अल्पसंख्यकों, बहुसंख्यकों में बांट कर न्याय किया जा सकता है? हिंदू और मुस्लिम पीडि़तों में अंतर करने वाले कानून के आधार पर साम्प्रदायिकता और विभाजन का इलाज संभव है?

अगर बहुसंख्यक की किसी बात से अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट होता है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब दाउद को फांसी की मांग हो या फिर बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन या धर्मान्तरण पर रोक लगाने संबंधि अभियान ये सब भी  अपराध बन जायेगा? जानकारों का मानना है कि अगर ये बिल अगर पास हो गया तो देश को टुकड़े में विभाजित होने से कोई रोक नहीं सकता। साथ ही देश की संघीय ढाचे पर प्रहार का एक नया औजार केन्द्र सरकार को मिल जाएगा।यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।

यदि कोई हिन्दू मुस्लिम वर्ग पर कोई जुल्म करता है तो बिना जांच के ही उसपर मुकदमा कर दिया जायेगा चाहे उसकी बातो में कोई सच्चाई हो या नहीं। आज देश में एक दर्जन राज्य मुस्लिम बहुल हो गए है और इन राज्यों में बड़े पैमाने पर हिन्दू निशाने पर है और तो और अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर आज तक जो हिंसा हुई है उसके मुख्य साजिसकर्ता एक खास समुदाय ही रहा है, तो क्या ऐसे में उसे दंडीत करने लिए सरकार कोई कानून बना सकती है? ऐसा तो बिल्कुल संभव नहीं लगता तो सवाल यहा भी खड़ा होता क्या सरकार का ये बिल दुर्भावनापूर्ण नहीं है? जिस तरह से औरंगजेब के साशन काल में हिन्दूओं पर कानूनी रूप से अत्याचार हुए क्या उसी साशनकाल को कांग्रेस भी दोहराना चाहती है?

अपराध करने वालों को संरक्षण देना और प्रतिक्रिया करने वाले को दण्डित करना क्या प्राकृतिक न्याय के खिलाफ नहीं है। भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये। परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इस कदर बाध्य करता है कि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट हर हाल में शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। तो क्या अब सरकार देश के कानून पर भी पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का ही होगा?

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