06 December 2013

ट्रैप के तकनीक पर कानून का डंडा !

तकनीक के जिन पहियों पर सवार होकर हम विकास की मंजिलें तय कर रहे हैं, उनमें से एक अदृश्य पहिया है निगरानीतंत्र। आम बोल-चाल की भाषा में कहा जाए तो जासूसी। इस बगैर न सरकारें चलती हैं और न ही उसका सिस्टम। न बाजार चलता है और न ही कारोबार। प्यार-व्यार में भी यह दखल बना चुका है। संचार क्रांति के उन्नत शिखर पर खड़ी 21 वीं सदी की तकनीक व्यक्ति की निजता की रक्षा के लिए ताले बाद में बनाती है, उसे खोलने वाली सौ चाबियां पहले बन जाती हैं। इस निगरानीतंत्र का एक अहम हिस्सा है फोन टैपिंग। फोन टैपिंग तब से हो रही, जब से फोन अस्तित्व में आया है। पहले एक बड़े शहर में कुछ एक फोन होते थे अब एक छोटे से कस्बे में लाखों मोबाइल फोन होते हैं। काम मुश्किल है, लेकिन पुलिस, पैसे और पॉलिटिक्स हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। दरअसल देखा जाए तो हमारा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ढांचा ही इस तरह का हो गया है, जहां हर तरफ अविश्वास के नाग फन काढ़े खड़े हैं। विभीषणों और मीर जाफरों को पहचानना मुश्किल होता जा रहा है। इसका सस्ता और सुगम समाधान है फोन टैपिंग। असल बात पर आया जाए तो देश भर में दस लाख से ज्यादा फोन (मोबाइल+लैंडलाइन) कनेक्शन पूरे साल सरकार की निगरानी में रहते हैं।

हाल में भाजपा के शीर्ष नेता अरुण जेटली के फोन टैपिंग मामले में कुछ और गिरफ्तारियों से फोन टैपिंग फिर से सुर्खियों में है। अरुण जेटली के फोन कौन किसके लिए और किस मकसद से टैप करा रहा था, इसका पता तो नहीं चल सका है, लेकिन लंबे समय से चल रही इस निगरानी में मिस्टर एक्स (निगरानी कर रहे अज्ञात व्यक्ति) ने पहले कई प्राइवेट डिटेक्टिव्स की मदद ली। जासूसों को मालूम था कि सीडीआर यानी कॉल डिटेल रिकार्ड कैसे मिलेगी, इसलिए उन्होंने उन छोटे पुलिस वालों के सामने चुग्गा फेंका, जो उस एसीपी के मातहत थे, जिसका काम वैध रूप से विभिन्न मामलों में सीडीआर हासिल करना था।

अब इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तीन पुलिसकॢमयों समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया है। सभी आरोपी इस मामले के मास्टरमाइंड अनुराग सिंह नेटवर्क का हिस्सा थे। पुलिसकर्मी एक से दो हजार रुपए में किसी की भी  सीडीआर को जासूसी कंपनी के एजेंटों को थमा देते थे। चूंकि निचले ओहदे के इन पुलिसकर्मियों के पास अपने अफसर के लॉगइन और पासवर्ड होते थे, इसलिए यह मोबाइल फोन कंपनियों को सीडीआर की लिस्टिंग करते समय सूची में जासूसों द्वारा दिए गए नंबर डालने में परेशानी नहीं होती थी।  इससे पहले, पुलिस ने नई दिल्ली जिले में एसीपी (ऑपरेशन) के यहां तैनात कांस्टेबल अरविंद डबास के अलावा अनुराग सिंह, नीतीश कुमार व नीरज को गिरफ्तार किया था।

अनुराग के कंप्यूटर की जांच में पता चला था कि करीब 52 लोगों की सीडीआर पुलिसकॢमयों की मदद से निकाली जा चुकी है। अरु ण जेटली, विजय गोयल एवं कई अन्य नेताओं के अलावा कॉरपोरेट सेक्टर, न्यूज चैनलों के संपादकों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों की सीडीआर निकाली गई थी। अरु ण जेटली समेत 30 लोगों की सीडीआर अरविंद डबास के माध्यम से निकाली गई थी। मामले में स्पेशल सेल ने अदालत में चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी और 22 अन्य लोगों की सीडीआर निकालने की जांच जारी रही। जांच में पता चला कि हेड कांस्टेबल हरीश, एएसआइ गोपाल और कांस्टेबल हरीश ने इस गिरोह को सीडीआर सौंपी थी।

इस मामले में अब ताजा स्थिति यह है कि मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अमित बंसल ने आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मामले की जांच अभी अपने प्रारंभिक चरण में है और यदि आरोपियों को इस समय जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वे सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा है कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं। आरोपियों ने जानबूझकर और षड्यंत्र करके कई लोगों के निजता के अधिकार का हनन किया है और इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21  में उल्लेखित जीवन और स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का अतिक्रमण हुआ है। इससे पहले पुलिस ने कांस्टेबल और तीन निजी जासूसों के खिलाफ इसी मामले में आरोप पत्र दाखिल किए थे, लेकिन चारों आरोपियों को दिल्ली की एक अदालत ने 30 मई को जमानत दे दी थी।

बहरहाल, अरुण जेटली के फोन निगरानी का मामला इसलिए भी गंभीर हो जाता है,  क्योंकि वह देश की एक राष्ट्रीय पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और राज्यसभा में  प्रतिपक्ष के नेता हैं। इस मामले में अभी और खुलासे होने बाकी हैं। अभी तक पर्दे के पीछे बैठे अनाम किरदार मिस्टर एक्स का नाम सामने आना बाकी है। मिस्टर एक्स को क्या जरूरत थी कि पता करें कि किस दिन अरुण जेटली ने किससे बात की, इसका भी खुलासा होना है।

भाजपा के ही एक और नेता सुशील कुमार मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भाजपा नेताओ  के फोन टैप कराने और स्टिंग ऑपरेशन करवाने का आरोप लगाया है। मोदी ने कहा कि सरकार की लगातार आलोचना से परेशान मुख्यमंत्री इस स्तर तक गिर गए हैं कि भाजपा नेताओ  की बातचीत सुनने के लिए उनके फोन तक टैप करवा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो कुछ दिन पहले हाजीपुर में भाजपा नेताओ  की अंदरूनी बातचीत की जानकारी मुख्यमंत्री तक कैसे पहुंच गई। मोदी ने आरोप लगाया कि नीतीश अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके विरोधियों के स्टिंग ऑपरेशन करवा रहे हैं। इसी तरह, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में दायर एक याचिका में राज्य के पूर्व पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने आरोप लगाया था कि उन्होंने कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला का फोन टैप करने का आदेश दिया था। साल भर पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने भी आरोप लगाया था कि जब उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से जुड़े एयरसेल-मैक्सिस मामले को उठाया तो सरकार ने उनके तथा उनके परिवार के फोन टैप करने के आदेश दिए थे।

इसी तरह, कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में उन मंत्रियों और अधिकारियों के फोन टैप किए जाने के मामले सामने आए थे, जो अपने नाम के बजाय दूसरे के नाम से लिए गए सिम का इस्तेमाल करते हैं। बाद में जब गृह विभाग ने रिकॉर्ड की गई बातों का ब्योरा मांगा तो पुलिस मुख्यालय ने गोपनीयता का  हवाला देते हुए ब्योरा देने से इनकार कर दिया था। मध्य प्रदेश पुलिस सुरक्षा और अपराधियों की गतिविधि पर नजर रखने के नाम पर गृह विभाग से हर माह औसतन दो सौ फोन टैप करने की अनुमति लेता है।

उधर, हिमाचल प्रदेश में पूर्व भाजपा सरकार के समय हुए फोन टैपिंग मामले में विजिलेंस इस मामले में संलिप्त तत्कालीन अधिकारियों व कर्मचारियों से पूछताछ करने जा रही है। यह पूछताछ पहली से सात दिसंबर तक पूरी की जानी है। इसके लिए विजिलेंस पूछताछ की प्रश्नावली में तैयार करने में जुट गई है। फोन टैपिंग मामले में फॉरेंसिक लैब की जांच रिपोर्ट का आकलन करने के बाद ही पूछताछ करने का निर्णय लिया गया है। अन्य कई राज्यों में फोन टैपिंग के बेजा और वाजिब इस्तेमाल जारी हैं।

भाजपा नेता अरुण जेटली के फोन टैप किए जाने के मामले में हाल में हुए नए खुलासे और गुजरात में एक युवती के फोन कथित रूप से टैप किए जाने के ताजा खुलासे के बाद उस टेलीग्राफ एक्ट पर बहस तेज हो गई है, जो सरकारों को किसी के फोन कॉल्स की खुफियागीरी की इजाजत देता है। ज्यादातर लोग उस अमेरिकी व्यवस्था की वकालत कर रहे  हैं, जिसके तहत न्यायालय को सबूतों के आधार पर किसी का फोन टैप करने की इजाजत देने का अधिकार है। इस मामले में याचिका दायर चुके पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर का मानना है कि नागरिका स्वतंत्रता काफी अहम है और उसे कार्यपालिका या गृह सचिव के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इसमें गलत इजाजत दिए जाने का  खतरा रहता है और नाजायज टैपिंग हो सकती है।

टैपिंग संबंधी कानून:

वैसे तो फोन टैपिंग को भारतीय टेलीग्राफ कानून की धारा—पांच के सामान्य प्रावधानों के तहत मंजूरी दी जाती है। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आपातकाल या लोक-सुरक्षा के हित में फोन कॉल्स को प्रतिबंधित करने एवं उसे टैप करने तथा उसकी निगरानी का अधिकार हासिल है। नियम 419 एवं 419 ए में टेलीफोन के कॉल्स और एसएमएस की निगरानी एवं पाबंदी लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

केवल सरकारी एजेंसियों को ही यह अधिकार हासिल है कि वह गृह मंत्रालय से पूर्व इजाजत लेकर किसी व्यक्ति का फोन टेप कर सकती हैं। हालांकि वित्त मंत्रालय एवं सीबीआई को यह अधिकार है कि सुरक्षा या कार्रवाई की वजह से वह गृह मंत्रालय की पूर्व इजाजत के बिना 72 घंटे तक किसी भी व्यक्ति के फोन कॉल को रिकॉर्ड कर सकती है।

गृह सचिव देता है अनुमति:  

फोन टैपिंग की इजाजत देने का अधिकार केंद्र और राज्य सरकारों के गृह सचिव को होता है। टैपिंग की अवधि दो महीने की होती है। अगर बहुत जरूरी हुआ तो इसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है। अवैध रूप से फोन टेप करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इसके लिए तीन वर्ष तक की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है। 

यह केवल सार्वजनिक आपातकाल या जनसुरक्षा के लिए ही किया जा सकता है। सन् 1997 में न्यायमूर्ति सच्चर की याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय ने बातचीत टैप करने के पांच कारणों का निर्धारण किया था।  राष्ट्रीय संप्रभुता और एकता, राज्य की सुरक्षा, अन्य देशों के साथ दोस्ताना संबंध की स्थिति में, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और अपराध पर काबू पाने के लिए।

कड़े होंगे कानून:  

फोन टैपिंग को लेकर हाल के खुलासों से परेशान केंद्र सरकर टेलीफोन कॉल डाटा रिकार्ड (सीडीआर) हासिल करने की प्रक्रिया और कड़ी करने का मन बना चुकी है। एएसआई और पुलिस कांस्टेबिल स्तर के पुलिसकर्मियों द्वारा सीडीआर हासिल करने के ताजा खुलासों के बाद अब सरकार ने फैसला किया है कि अब मोबाइल कंपनियों से सीडीआर प्राप्त करने का अधिकार पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के अधिकारी को दिया जाए। जल्द ही विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सीडीआर हासिल करने की प्रक्रिया को लेकर नए दिशानिर्देश जल्द जारी किये जाएंगे।

सीडीआर के लॉग का व्योरा रखने के बाद पुलिस अधीक्षक को अनिवार्यरूप से संबद्ध जिलाधिकारी के समक्ष हर महीने हासिल सीडीआर के बारे में सूचना देनी होगी। पुलिस अधीक्षक को किसी व्यक्ति का सीडीआर हासिल करने की वजह भी बतानी होगी और सुनिश्चित करना होगा कि डाटा गलत हाथों में न जाने पाए। जिलाधिकारी संबद्ध मुख्य सचिव को सूचना प्रेषित करेगा ताकि राज्यवार ब्योरा तैयार किया जा सके। गृह मंत्रालय के साथ सलाह—मशविरा कर दूरसंचार विभाग की ओर  से दिशा—निर्देश जारी किए जाएंगे। सरकार भारतीय टेलीग्राफ कानून को भी संशोधित करने का विचार कर रही है ताकि कुछ और एजेंसियों को सीडीआर एक्सेस की अनुमति दी जा सके, जिससे वे संदिग्ध व्यक्तियों और संगठनों पर निगाह रख सकें।

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