दिल्ली में अन्य दलों के सहयोग से आम आदमी
पार्टी को सरकार बनानी चाहिए या नहीं इसी सवाल का जवाब जानने के लिए आप
दिल्ली में सर्वे करवा रही है। सर्वे के नतीजे तो अगले सप्ताह तक आएंगे
लेकिन आप के सर्वे को दिल्लीवासियों का भरपूर समर्थन हासिल हो रहा है। ये
शायद भारतीय लोकतंत्र में अपनी तरह का पहला मामला होगा जब कोई राजनीतिक दल
जनता से पूछा रहा हो कि हमें किसी अन्य दल के सहयोग से सरकार बनानी चाहिए
या नहीं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी आम आदमी
पार्टी ने 28 सीटें जीतकर एक नया रिकार्ड तो बनाया ही है वहीं देश की
राजनीति में एक नयी बयार भी बहाई है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
आजादी के बाद शायद ये ऐसा दूसरा मौका होगा जब किसी आंदोलन की कोख से किसी
राजनीतिक दल का जन्म हुआ और उसने पहली बार में ही सत्ता के स्थापित किलों
को ढहाने का कारनामा कर दिखाया।
लेकिन हालात यह हैं कि दिल्ली की जनता ने किसी भी दल को पूर्ण
बहुमत की नहीं दिया है। खंडित जनादेश सरकार बनाने की राह में बड़ा रोड़ा
साबित हो रहा है। भाजपा, आप और कांग्र्रेस किसी भी दल के पास सरकार बनाने
के पर्याप्त संख्या नहीं है। भाजपा और आप दोनों दल सरकार बनाने में अपनी
असमर्थता जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में यक्ष प्रश्न यह है कि दिल्ली में
सरकार बनेंगी या फिर से उसे चुनाव का मुंह देखना होगा। भाजपा ने खुद को
नैतिकता, आदर्श और सिद्वांतों की चादर से ढक लिया है। कांग्रेस की स्थिति
इतनी दयनीय है कि वो बिना शर्त समर्थन के अलावा कुछ सोच ही नहीं सकती है।
ऐसे माहौल में जनता के एक छोटे समूह, कुछ सामाजिक संगठनों, बुद्विजीवियों,
मीडिया और अपरोक्ष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा आम आदमी पार्टी पर नैतिक
तरीके से यह दबाव बनाया जा रहा है कि आप को कांग्रेस के समर्थन से सरकार
बनाकर जनता से किये वायदे पूरे करने चाहिए।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सारी नैतिकता और आदर्ष आप के लिये ही हैं क्या। क्या आप को जनता का समर्थन मिलना गुनाह है। क्या जनता ने आप को समर्थन देकर कोई एहसान किया है। क्या आप पर नैतिकता के नियम लागू होते हैं भाजपा पर नहीं। आप संख्या बल के हिसाब से नंबर दो की पार्टी है नम्बर एक की पार्टी भाजपा की ओर कोई संगठन, राजनीतिक दल या मीडिया उंगुली क्यों नही उठा रहा है। क्या दिल्ली को दोबारा चुनाव के और धकेलने की गुनाहगार अकेली आप ही क्यों है। क्या लोकतंत्र का बचाने, उसकी मर्यादा की रक्षा करने और जनता की सारी उम्मीदों को उठाने का बीड़ा आप ने उठा रखा है। क्या कांग्रेस या भाजपा किसी भी दृष्टिकोण से गुनाहगार नहीं है। क्या ये उचित है कि 14 महीने पुरानी पार्टी की तुलना सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस और 33 साल पुरानी भाजपा से की जाए। आखिरकर क्या आप ने चुनाव लड़कर और सीटें जीतकर कोई अपराध कर दिया है। क्यों जनता, मीडिया और सामाजिक संगठनों को आप से इतनी उम्मीदें हैं।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सारी नैतिकता और आदर्ष आप के लिये ही हैं क्या। क्या आप को जनता का समर्थन मिलना गुनाह है। क्या जनता ने आप को समर्थन देकर कोई एहसान किया है। क्या आप पर नैतिकता के नियम लागू होते हैं भाजपा पर नहीं। आप संख्या बल के हिसाब से नंबर दो की पार्टी है नम्बर एक की पार्टी भाजपा की ओर कोई संगठन, राजनीतिक दल या मीडिया उंगुली क्यों नही उठा रहा है। क्या दिल्ली को दोबारा चुनाव के और धकेलने की गुनाहगार अकेली आप ही क्यों है। क्या लोकतंत्र का बचाने, उसकी मर्यादा की रक्षा करने और जनता की सारी उम्मीदों को उठाने का बीड़ा आप ने उठा रखा है। क्या कांग्रेस या भाजपा किसी भी दृष्टिकोण से गुनाहगार नहीं है। क्या ये उचित है कि 14 महीने पुरानी पार्टी की तुलना सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस और 33 साल पुरानी भाजपा से की जाए। आखिरकर क्या आप ने चुनाव लड़कर और सीटें जीतकर कोई अपराध कर दिया है। क्यों जनता, मीडिया और सामाजिक संगठनों को आप से इतनी उम्मीदें हैं।
क्या मीडिया,
सामाजिक संगठनों, जनता और राजनीतिक संगठनों का आप पर सरकार बनाने और अपनी
विचारधारा से विपरित दल के साथ मिलकर सरकार बनाने का दबाव बनाना उचित और
न्यायोचित है। क्या कांग्रेस की मदद से सरकार बनाकर आप भी उस जमात में
शामिल नहीं हो जाएगी जिस पर कांग्रेस, भाजपा और देश के दूसरे दल अब तक चलते
आए हैं। आखिरकर सारी उम्मीदें आप से ही क्यों। आप को नैतिकता के कटघरे में
खड़ा करना आखिकर कहां तक उचित है।
आप की ऐतिहासिक जीत, भाजपा का सत्ता के मुहाने पर ब्रेक लग जाना और दिल्ली में कांग्रेस के 15 साल पुराने शासन का बोरिया बिस्तर गोल हो जाना तमाम सवाल के साथ देश के बदलते राजनीतिक मिजाज की ओर इशारा भी करता है। भाजपा को सर्वाधिक सीटें हासिल हुई हैं। सरकार बनाने के लिए उसे मात्र चार विधायकों की दरकार है। बीजेपी वोटरों और देश की जनता के बची ये मैसेज देना चाहती है कि वो जोड़-तोड़ की रजानीति में यकीन नहीं करती है। आप ने भाजपा पर उसके विधायकों को खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया था। बीजेपी ऐसे व्यवहार कर रही है मानो उसने कभी जोड़तोड़ और खरीद फरोख्त की ही न हो। भाजपा का हाल नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाला है। खरीद फरोख्त में माहिर उस्ताद कांग्रेस तो दिल्ली में तो आईसीयू में है। वो तो बिना शर्त समर्थन देते घूम रही है और कोई लेने वाला मिल नहीं रहा है। चूंकि भाजपा सरकार बनाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर चुकी है ऐसे में सारी उम्मीदें आप से ही है। आप को सरकार बनाने के लिए 8 विधायकों की जरूरत है।
आप की ऐतिहासिक जीत, भाजपा का सत्ता के मुहाने पर ब्रेक लग जाना और दिल्ली में कांग्रेस के 15 साल पुराने शासन का बोरिया बिस्तर गोल हो जाना तमाम सवाल के साथ देश के बदलते राजनीतिक मिजाज की ओर इशारा भी करता है। भाजपा को सर्वाधिक सीटें हासिल हुई हैं। सरकार बनाने के लिए उसे मात्र चार विधायकों की दरकार है। बीजेपी वोटरों और देश की जनता के बची ये मैसेज देना चाहती है कि वो जोड़-तोड़ की रजानीति में यकीन नहीं करती है। आप ने भाजपा पर उसके विधायकों को खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया था। बीजेपी ऐसे व्यवहार कर रही है मानो उसने कभी जोड़तोड़ और खरीद फरोख्त की ही न हो। भाजपा का हाल नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाला है। खरीद फरोख्त में माहिर उस्ताद कांग्रेस तो दिल्ली में तो आईसीयू में है। वो तो बिना शर्त समर्थन देते घूम रही है और कोई लेने वाला मिल नहीं रहा है। चूंकि भाजपा सरकार बनाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर चुकी है ऐसे में सारी उम्मीदें आप से ही है। आप को सरकार बनाने के लिए 8 विधायकों की जरूरत है।
आप ने पहले ही दिन न समर्थन देंगे और न समर्थन लेंगे की घोषणा की थी। ऐसे
में सरकार बनाने के बढ़ते दबाव को कम करने के लिए आप ने कांग्रेस और भाजपा
को पत्र भेजकर 18 बिंदुओं पर उनकी राय जाननी मांगी थी। भाजपा ने तो पत्र का
जवाब देना जरूरी नहीं समझा। लेकिन कांग्रेस ने आप के उठाए सभी मुद्दों पर
सहमति जता कर गेंद अरविंद केजरीवाल के पाले में डाल दी। आम आदमी पार्टी को
भेजी गई चिट्ठी में कांग्रेस ने कहा है कि आम आदमी पार्टी ने जिन 18
मुद्दों पर समर्थन मांगा था उसमें 16 प्रशासनिक हैं। प्रशासनिक मुद्दों पर
आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के बाद खुद फैसला ले सकती है। उन 16 मुद्दों पर
कांग्रेस की सहमति है। रही बात बचे हुए दो मुद्दों की, तो उन पर भी
कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया है। यह दो मुद्दे हैं- दिल्ली
को पूर्ण राज्य का दर्जा देना और दिल्ली में लोकायुक्त को मजबूत करना। आम
आदमी पार्टी की शर्तों को समर्थन के कांग्रेस के खत के बाद बीजेपी ने आम
आदमी पार्टी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। बीजेपी ने साफ कहा कि वो
अरविंद केजरीवाल की चिट्ठी का जवाब नहीं देगी। यही नहीं पार्टी ने आरोप
लगाया कि अपने घोषणा पत्र में आम आदमी पार्टी ने ना पूरा हो सकने वाले
वायदे किए हैं। यही वजह है कि वो लोकसभा चुनाव को देखते हुए दिल्ली में
सरकार बनाने से कतरा रही है। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने केंद्र
सरकार को अपनी सिफारिश भेज दी है।
जनता को केजरीवाल में एक समाज सेवक ज्यादा नजर आता है और नेता बहुत कम। आप की सफलता से धबराई भाजपा और कांग्रेस चंद तथाकथित मीडिया संस्थानों के सहारे स्वयं को उच्च आदर्श और सिद्धांत वाले दल प्रचारित करने और साजिशन आप को खिलाफ ऐसा माहौल बनाने में जुटे हैं कि अगर आप ने सरकार नहीं बनाई तो वो दिल्ली की जनता से धोखा और वादाखिलाफी करेंगे। आप को सरकार बनानी चाहिए। मान लीजिए कल अगर आप कांग्रेस या किसी अन्य की मदद से सरकार बना लेती है तो यहीं दल कहेंगे कि आप और हमारे क्या फर्क है। आप कोई नयी या अनोखी नहीं बल्कि राजनीति की पुरानी घिसी-पिटी लकीर पर ही तो चल रही है। इससे पहले भी देश की संसद और राज्यों में ऐसी स्थितियां उत्पन्न हुई हैं जब सरकार बनाने की संख्या राजनीतिक दलों के पास नहीं थी। आज जो दल आप पर सरकार बनाने और दोबारा चुनाव में पैसा खर्च होने और आम आदमी पर उसकी मार पड़ने की पहाड़े पढ़ रहे हैं उन्हें याद होना चाहिए कि उन्होंने दर्जनों दफा नैतिकता और जनभावनाओं को ताक पर रखकर और पांवों तले रौंदकर मौकापरस्ती का चोला ओढ़कर सत्ता का सुख भोगा है। एक साल में दो बार लोकसभा चुनाव का भार भी इस देष की जनता ने झेला है। चूंकि अब राजनीति के स्थापित किले को किसी नये खिलाड़ी ने जड़ से हिला दिया है तो पक्के पकाए षैतानी दलों के दिमाग नैतिकता, आदर्ष, सिंद्वांत, पारदर्षिता और राजनीतिक षुचिता का चालीसा जोर-जोर से गाने लगे हैं।
भाजपा और कांग्रेस मिलकर ऐसा माहौल बनाने में जुटे हुए हैं कि जिस जनता ने आप को सिर माथे पर बिठाया है वहीं जनता आप की दुश्मन बन जाए और जनता विकल्पहीनता की स्थिति में कांग्रेस और भाजपा को वोट देने और उनकी नकारा सरकारों को झेलने को मजबूर हो। जो माहौल भाजपा, कांग्रेस और तथाकथित मीडिया संस्थान मिलकर बना रहे हैं उससे से जनता को सावधान और सचेत रहने की जरूरत है। असली परीक्षा तो दिल्ली और देष की जनता की होने वाली है। जनता को राजनीतिक दलों के दुष्प्रचार से सावधान रहना होगा। और अगर दिल्ली में दोबार चुनाव की स्थिति पैदा होती है तो आप को पूर्ण बहुमत दिलवाना चाहिए ताकि राजनीति की जीम जमायी दुकानों के समाने जमी गंदगी और नकली चेहरों को बेनकाब किया जा सके। वहीं आम आदमी पार्टी को उसी स्थिति में पूरी तरह परखा जा सकेगा जब उसके पास पूर्ण बहुमत होगा। कई कसौटियों पर कईयों को कसा जाना है लेकिन इस सब को दारोमदार देश की जनता पर है। आने वाले समय में असली परीक्षा जनता की होने वाली है, किसी राजनीतिक दल की नहीं।
जनता को केजरीवाल में एक समाज सेवक ज्यादा नजर आता है और नेता बहुत कम। आप की सफलता से धबराई भाजपा और कांग्रेस चंद तथाकथित मीडिया संस्थानों के सहारे स्वयं को उच्च आदर्श और सिद्धांत वाले दल प्रचारित करने और साजिशन आप को खिलाफ ऐसा माहौल बनाने में जुटे हैं कि अगर आप ने सरकार नहीं बनाई तो वो दिल्ली की जनता से धोखा और वादाखिलाफी करेंगे। आप को सरकार बनानी चाहिए। मान लीजिए कल अगर आप कांग्रेस या किसी अन्य की मदद से सरकार बना लेती है तो यहीं दल कहेंगे कि आप और हमारे क्या फर्क है। आप कोई नयी या अनोखी नहीं बल्कि राजनीति की पुरानी घिसी-पिटी लकीर पर ही तो चल रही है। इससे पहले भी देश की संसद और राज्यों में ऐसी स्थितियां उत्पन्न हुई हैं जब सरकार बनाने की संख्या राजनीतिक दलों के पास नहीं थी। आज जो दल आप पर सरकार बनाने और दोबारा चुनाव में पैसा खर्च होने और आम आदमी पर उसकी मार पड़ने की पहाड़े पढ़ रहे हैं उन्हें याद होना चाहिए कि उन्होंने दर्जनों दफा नैतिकता और जनभावनाओं को ताक पर रखकर और पांवों तले रौंदकर मौकापरस्ती का चोला ओढ़कर सत्ता का सुख भोगा है। एक साल में दो बार लोकसभा चुनाव का भार भी इस देष की जनता ने झेला है। चूंकि अब राजनीति के स्थापित किले को किसी नये खिलाड़ी ने जड़ से हिला दिया है तो पक्के पकाए षैतानी दलों के दिमाग नैतिकता, आदर्ष, सिंद्वांत, पारदर्षिता और राजनीतिक षुचिता का चालीसा जोर-जोर से गाने लगे हैं।
भाजपा और कांग्रेस मिलकर ऐसा माहौल बनाने में जुटे हुए हैं कि जिस जनता ने आप को सिर माथे पर बिठाया है वहीं जनता आप की दुश्मन बन जाए और जनता विकल्पहीनता की स्थिति में कांग्रेस और भाजपा को वोट देने और उनकी नकारा सरकारों को झेलने को मजबूर हो। जो माहौल भाजपा, कांग्रेस और तथाकथित मीडिया संस्थान मिलकर बना रहे हैं उससे से जनता को सावधान और सचेत रहने की जरूरत है। असली परीक्षा तो दिल्ली और देष की जनता की होने वाली है। जनता को राजनीतिक दलों के दुष्प्रचार से सावधान रहना होगा। और अगर दिल्ली में दोबार चुनाव की स्थिति पैदा होती है तो आप को पूर्ण बहुमत दिलवाना चाहिए ताकि राजनीति की जीम जमायी दुकानों के समाने जमी गंदगी और नकली चेहरों को बेनकाब किया जा सके। वहीं आम आदमी पार्टी को उसी स्थिति में पूरी तरह परखा जा सकेगा जब उसके पास पूर्ण बहुमत होगा। कई कसौटियों पर कईयों को कसा जाना है लेकिन इस सब को दारोमदार देश की जनता पर है। आने वाले समय में असली परीक्षा जनता की होने वाली है, किसी राजनीतिक दल की नहीं।
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