07 December 2013

क्या मुस्लिमों में मोदी नाम का खौफ पैदा किया जा रहा है ?

मोदी बनाम मुस्लिम का मुद्दा बढ़ती ठंढ में फिर से गर्म हो चला है। मगर मुद्दे का माहौल इस बार मोदी ने नहीं बल्कि अयोध्या मालिकाना हक मुकदमे में सबसे पुराने वादियों में से एक मोहम्मद हाशिम अंसारी ने उठाया है। मोहम्मद हाशिम का दावा है कि कांग्रेस मुस्लिमों के दिल में नरेंद्र मोदी का खौफ पैदा कर रही है। हाशिम  यहीं नहीं रूके उन्होने ये भी कहा कि भाजपा नेता को प्रधानमंत्री बनने के लिए मुस्लिम समुदाय के समर्थन की जरूरत है। बाबरी विध्वंस के 21 साल पूरे होने के मौके पर 92 साल के हाशिम ने कहा, ‘‘नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए मुस्लिमों के पूरे समर्थन की जरूरत है।’’ गुजरात के मुसलमान खुशहाल और संपन्न भी हैं। हाशिम ने कहा, कांग्रेस यह कह कर मोदी का खौफ पैदा कर रही है कि यदि वह प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो मुस्लिम समुदाय के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे।

मोहम्म हाशिम ने सवालों की झड़ी लगाते हुए कांग्रेस पार्टी को जमकर लताड़ लगाई। हाशिम ऐसा मानते है कि मुस्लिम 50 साल से ज्यादा समय से कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं पर बदले में पार्टी ने उन्हें तोहफे के तौर पर सिलसिलेवार सांप्रदायिक दंगे दिए हैं। हाशिम ने समाजवादी पार्टी पर भी अपना भड़ास निकाली। पार्टी पर आरोप मढ़ते हुए सपा सरकार के मुस्लिम मंत्रियों को ‘‘शक्तिहीन’’ करार दिया। वहीं हाशिम ने आरोप लगाया कि सपा सरकार कांग्रेस की राह पर ही चल रही है जिसने ‘‘दंगों के जरिए मुस्लिमों को दबाकर रखा’’। हाशिम  के बयान से सवाल उठना लाजमी है कि क्या वाकई चाहे कांग्रेस हो या सपा मोदी नाम का खौफ पैदा कर रही है? क्या ये पार्टीयां सिर्फ मुस्लिम मौकापरस्ती की राजनीति के मातहत ही देश में सत्ता स्थापित करना चाहती है?

हाशिम के बयान से ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी के ओर से पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर वाकई देश में चल चुकी है। साथ ही देष की जनता चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम रामराज या अल्लाह अलाप वायदे से इतर हट कर विकासवादी छवि को प्राथमिकता दे रही है। हाशिम के आरोपों से राजनीतिक बवंडर अपने चरम सिमा पर है। क्योकि हाशिम ने उस सच्चाई को कुरेदा है जो लोग कलतक बुर्के के आड़ में सत्ता की सैर कर रहे थे।  हाशिम अंसारी कोई पहले ऐसे व्र्यिक्त नहीं हैं जिन्होने कांग्रेस या सपा की हकीकतों से पर्दा उठाया है। इससे पहले जमियत उलेमा ए हिन्द के महासचिव मदनी ने भी कहा था कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को ‘‘नकारात्मकता की बुनियाद पर नहीं बल्कि सकारात्मकता की बुनियाद पर वोट पाने की कोशिश करनी चाहिए, सेकुलर दलों को बताना चाहिए कि विभिन्न राज्यों में उनकी सरकारों ने क्या किया. कौन से वायदे उन्होंने पूरे किए और कौन से पूरे किए जाने बाकी हैं. उन्हें इस आधार पर वोट मांगने चाहिए न कि किसी का खौफ दिखा कर.’’ 

तो ऐसे में ये सवाल  गलत नहीं होगा कि खौफदारी के नाम पर सत्ता की दावेदारी क्या उस मुहाने पर आकर खड़ी होगई है जहा पर मोदी नाम खौफ और सेकुलरवादी नाम उदारवादी है? या फिर सेकुलरवादी आज कटघरे में है और उसके पहिए विकासवादी पुरूस की तलास में आस लगाए उस रास्ते पर आकर खड़े है, जहा पर आज हरएक तबका विकास के पंख लगाकर आसमां में उड़ान भरना चाहता है? यह बदलती राजनीति की वो तस्वीर है जिसका सामाजिक और राजनीतिक मायने आप खुद लगा सकते हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या मुस्लिमों में मोदी के नाम का सिर्फ खौफ पैदा किया जा रहा है?

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