22 June 2020

पुरी रथ यात्रा एक महान ऐतिहासिक पर्व

पुरी रथ यात्रा एक महान ऐतिहासिक पर्व है, जिसमें विश्व के सबसे विशाल रथ को खींचने की परंपरा है. यह रथ यात्रा मंदिरों के शहर पुरी में हर साल निकाली जाती है. तीन बड़े से रथों को खूब सजाया जाता है और उन पर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई भगवान बलराम तथा बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को रखकर उन्हें श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक लेकर जाते हैं.

ऐसा माना जाता है कि इस गुंडिचा मंदिर में ही भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था. यह जगन्नाथ मंदिर से दो मील की दूरी पर स्थित है. यह पर्व ओडिशा के भव्य पर्वों में से एक है. रथ को खींचने और इस रथ यात्रा के दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण एकत्रित होते हैं. जिस रथ पर भगवान की प्रतिमाएं होती हैं, उसे फूलों, चित्रकारी, छोटी मूर्तियों, लकड़ी एवं नक्काशी से सजाया जाता है 

सबसे पहले भगवान की काष्ठ की प्रतिमाओं को श्रीमंदिर से बाहर निकालने का कार्य किया जाता है. दिल के आकार के बने फूलों के मुकुट भगवान को पहनाए जाते हैं. श्रद्धालुओं के जनसैलाब के बीच भगवान को एक-एक पग धरते हुए रथ की ओर ले जाया जाता है. इसे पहांदी कहते हैं. इस दौरान तुरही और झांझ बजाते हैं. भगवान जगन्नाथ का दर्शन करना सौभाग्य माना जाता है किंतु उन्हें रथ पर सवार देखना आशीर्वाद होता है.


भगवान जगन्नाथ का लगभग 45 फुट ऊंचा रथ नंदीघोष कहलाता है. ये तीनों रथों में से सबसे बड़ा होता है जिसके 16 पहिये होते हैं. भगवान बालाभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को तालध्वज तथा दर्पदलान कहते हैं. ये रथ 44 फुट और 43 फुट ऊंचे होते हैं.


जब इष्ट देवों को रथों पर रख दिया जाता है तब पुरी के राजा गजपति हर एक रथ को साफ करते हैं और भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं. वह सड़क को भी साफ करते हैं जहां से रथों को गुज़रना होता है. इस अवसर को छेरा पहरा कहते हैं. इसके बाद श्रद्धालुगण बड़ा डंडा के माध्यम से उन रथों को खींचते हैं. उसके बाद ये रथ गुंडिचा मंदिर में जाकर रुकते हैं, जहां पर भगवान एक सप्ताह के लिए वहां ठहरते हैं. तत्पश्चात् उनकी वापसी यात्रा, श्रीमंदिर के लिए आरंभ होती है. इस समारोह को बहुधा यात्रा कहते हैं. ये हजारों साल पुरानी महान परंपरा है, जो सदियों से चली आरही है.


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