पुरी रथ यात्रा एक महान ऐतिहासिक पर्व
है, जिसमें
विश्व के सबसे विशाल रथ को खींचने की परंपरा है. यह रथ यात्रा मंदिरों के शहर पुरी
में हर साल निकाली जाती है. तीन बड़े से रथों को खूब सजाया जाता है और उन पर भगवान
जगन्नाथ, उनके
भाई भगवान बलराम तथा बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को रखकर उन्हें श्रीमंदिर से
गुंडिचा मंदिर तक लेकर जाते हैं.
सबसे पहले भगवान की काष्ठ की प्रतिमाओं को श्रीमंदिर से बाहर निकालने का कार्य किया जाता है. दिल के आकार के बने फूलों के मुकुट भगवान को पहनाए जाते हैं. श्रद्धालुओं के जनसैलाब के बीच भगवान को एक-एक पग धरते हुए रथ की ओर ले जाया जाता है. इसे पहांदी कहते हैं. इस दौरान तुरही और झांझ बजाते हैं. भगवान जगन्नाथ का दर्शन करना सौभाग्य माना जाता है किंतु उन्हें रथ पर सवार देखना आशीर्वाद होता है.
जब इष्ट देवों को रथों पर रख दिया जाता है तब पुरी के राजा गजपति हर एक रथ को साफ करते हैं और भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं. वह सड़क को भी साफ करते हैं जहां से रथों को गुज़रना होता है. इस अवसर को छेरा पहरा कहते हैं. इसके बाद श्रद्धालुगण बड़ा डंडा के माध्यम से उन रथों को खींचते हैं. उसके बाद ये रथ गुंडिचा मंदिर में जाकर रुकते हैं, जहां पर भगवान एक सप्ताह के लिए वहां ठहरते हैं. तत्पश्चात् उनकी वापसी यात्रा, श्रीमंदिर के लिए आरंभ होती है. इस समारोह को बहुधा यात्रा कहते हैं. ये हजारों साल पुरानी महान परंपरा है, जो सदियों से चली आरही है.
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