30 June 2020

सफूरा जरगर को जमानत देना क्या कानून का माजाक नहीं है..?

उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई दंगे की आरोपी और जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है. दंगे के आरोपी सफूरा जरगर के जमानत मिलते ही लोगों में जबरजस्त गुस्सा और तनाव का माहौल बना हुआ है. सफूरा के इस जमानत को लेकर कई लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं. अदालत ने सफूरा को निर्देश दिया है कि वह ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल न हो जिससे मामले की जांच-पड़ताल में बाधा आए. आदालत के इस आदेश से ही अस्पष्ट हो जाता है की सफूरा को जमानत देना कितना खतरनाक है. आदलत को भी पता है की सफूरा के बाहर आने से दंगे की जांच प्रभावित हो सकता है. यही कारण है की जमानत को लेकर तरह तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं.

अदालत ने सफूरा को दिल्ली से बाहर जाने पर भी रोक लगा दिया है. साथ ही अदालत ने सफूरा को जांच अधिकारी से बराबर संपर्क में रहने को कहा है. दिल्ली पुलिस ने अदालत में इसी हफ्ते स्टेटस रिपोर्ट दायर की थी. दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में यह दलील दी थी कि सफूरा उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के अहम साजिशकर्ताओं में से एक है..उसे गर्भवती होने के आधार पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह जमानत का कोई आधार नहीं है.

पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट से कहा था कि पिछले 10 सालों में जेल में 39 बच्चों का जन्म हुआ है. न्यायमूर्ति राजीव शकधर की पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई के दौरान पुलिस ने दलील दी कि अपराध की गंभीरता सिर्फ गर्भवती होने से कम नहीं होती. पहले भी न केवल गर्भवती महिलाओं की गिरफ्तारी हुई है, बल्कि जेल में उनकी डिलीवरी भी हुई है. सफूरा पर गंभीर आरोप हैं और उसे केवल गर्भवती होने के कारण जमानत नहीं दी जानी चाहिए. दिल्ली पुलिस ने स्टेटस रिपोर्ट में ये भी कहा कि जांच और गवाहों के बयान के आधार पर सफूरा जरगर के खिलाफ गंभीर केस है. इसके ऊपर सख्त यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है. तो ऐसे सवाल खड़ा होता है आखिर इतनी बड़ी दंगे की आरोपी को जमानत देना कितना बड़ा कानून का माजाक है.

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