चीन भारत को चौतरफा घेर रहा है. यही कारण है कि अब चीन नेपाल को भारत के
प्रति उकसा रहा है. नेपाल ने अपने राजनीतिक नक़्शे के आधार पर नए प्रतीक को
आधिकारिक रूप से अपनाया है. इस नए नक़्शे में 1816 की सुगौली संधि के मुताबिक़ लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को जगह दी गई थी. ये
क्षेत्र पहले से ही भारत के नक़्शे में शामिल रहे हैं और फ़िलहाल इन पर भारत का
क़ब्ज़ा भी है.
दक्षिण एशिया में जहां एक ओर भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में तनाव की स्थिति बनी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ़ लिपुलेख में नेपाल और भारत के बीच भी चीन ने तनाव पैदा कर दिया है.
भारत-नेपाल सीमा विवाद आज चर्चा का विषय बना हुआ है. इंडियन आर्मी चीफ मनोज मुकुंद नरवणे ने अपने शुरुआती बयान में कहा था ये सारा मामला चीन के इशारे पर उठाया गया है. नेपाल-भारत सीमा मुद्दे पर भारत की ओर से तो शायद ही कभी आवाज आई हो, लेकिन नेपाल जो 1990 से पहले इस मुद्दे को अनौपचारिक रूप से उठाता था, अब उसने इस एजेंडे को औपचारिक रूप से टेबल पर लाना शुरू कर दिया है.
1997 में भारतीय प्रधानमंत्री आईके गुजराल की नेपाल यात्रा पर आधिकारिक रूप से सीमा विवाद के मुद्दे पर चर्चा की गई थी. विदेश मंत्री जसवंत सिंह जब 1999 में काठमांडू आए थे, तब फिर से इस पर चर्चा हुई थी. बाद में इसी मुद्दे को दोनों देशों के उच्च स्तरीय संवाद से सुलझा लिया गया था. नेपाल 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत पर हुए भारत-चीन समझौते से अच्छी तरह से वाकिफ है, जहां पहली बार लिपुलेख को भारतीय तीर्थयात्रियों को इजाजत देने वाली छह बॉर्डर में शामिल किया गया था. इसके बावजूद नेपाल जान बुझकर विवाद खड़ा कर रहा है.
इतिहास में नेपाल की सीमा को कई संधियों और समझौतों के जरिए रेखांकित किया गया है. उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि नेपाल के दावे वाला क्षेत्र अंग्रेजों के पूर्ण नियंत्रण में था. जिस तरह नेपाल ने यह मुद्दा उठाया है उसे देखकर भारत भी अब अपना मोर्चा संभाल लिया है. ताकि नेपाल के साथ-साथ चीन को भी सबक सिखाया जा सके.
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