26 October 2022

अजमेर दरगाह, फारूक चिश्ती, सेक्स स्कैंडल और "सोफिया गर्ल्स स्कूल" की अनकही कहानी !

राजस्थान में अजमेर का "सोफिया गर्ल्स स्कूल" देश में लड़किओं के सबसे नामी स्कूलों में एक सोफिया गर्ल्स स्कूल में बड़े-बड़े रसूकदार लोगों की बेटियां पढ़ने आती थीं।राजस्थान के कई आईएएस और आईपीएस अधिकारिओं की बेटियां भी यहीं पर पढ़ती थीं। शहर में रहने वाले एक लड़के ने स्कूल के 9वीं क्लास की एक छात्रा से दोस्ती कर ली, छुट्टी के बाद वो छात्रा लड़के के साथ घूमने-फिरने जाने लगी। लड़के ने छात्रा  की अश्लील फोटो खिंच ली इसके बाद जो कुछ हुआ वो देश में अपराध के इतिहास में एक काले अध्याय की तरह दर्ज है, लेकिन आज भी भारत में इसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। ये घटना है वर्ष 1992 की और इसे "अजमेर सेक्स स्कैंडल" के नाम से जाना जाता है। सोफिया कॉलेज की 9वीं क्लास की छात्रा से दोस्ती करने वाले युवक का नाम था "फारूक चिश्ती" उसका परिवार अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर खादिम का काम करता था। फारूक चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष भी था।  

छात्रा को प्रेमजाल में फ़साने के बाद फारूक चीश्ती ने उसकी अश्लील तस्वीरें ले ली और फिर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। पहले छात्रा का यौन शोषण होता रहा फिर उससे कॉलेज की दूसरी सहेलिओं को लाने के लिए कहा गया। एक के बाद एक लडकियां इस जाल में फसती गईं और इज़्ज़त बचाने के लिए वो अपने साथ दूसरी लड़कियों को भी लाती गईं  ,कुछ से तो उनकी भाभी और बहनो को लाने को भी कहा गया था। पहले एक लड़की फिर दूसरी फिर तीसरी। बहुत जल्दी इस गिरोह जाल में लगभग 200 से अधिक हिन्दू लडकियां फंस चुकी थीं। 

अपुष्टदावों के अनुसार लगभग 250 लड़कियां गिरोह के जाल में फंस चुकी थीं। ये लड़कियां किसी गरीब या मध्यम वर्गीय परिवारों की नहीं बल्कि अजमेर की सबसे रईस परिवारों कि थीं, यह सबकुछ होता रहा और किसी लड़की के घरवालों को भनक तक नहीं लगी। ये मात्र संयोग नहीं था कि सिर्फ हिन्दू लड़किओं को ही निशाना बनाया गया, मुस्लिम लड़कियों को छुवा तक नहीं गया। जिन लड़किओं से बलात्कार हुआ उनमे से अधिकतर 10वीं और 12वीं क्लास में पढ़ती थीं। मास्टरमइंड फारूक चीश्ती अकेला नहीं था उसके साथ अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ा एक पूरा गिरोह सक्रिय था।  

उसके मुख्य सहयोगी थें नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती। ये दोनों भी युवा कांग्रेस  के नेता थें। बहुत संगठित ढंग से उनका गिरोह काम करता रहा। मज़हबी और कांग्रेसी संरक्षण मिला हुआ था इसलिए डरने की वैसे भी कोई बात नहीं थी। अजमेर के एक फाम हाउस पर ये काम बड़े आराम से चलता रहा। लड़कियों को लेने गाडी जाती थी और बाद में भी उन्हें गाडी से ही छोड़ा जाता था। बलात्कार के समय उनकी फोटो खिंच ली जाती थी ताकि वो किसी के आगे मुँह खोलने की हिम्मत न कर सकें। उस ज़माने में आज की तरह डिजिटल कैमरे नही हुआ करते थें तब कैमरे की रील धुलने जिस स्टूडियो में गयी वह भी एक मज़हबी व्यक्ति का था।  

स्टूडियो वाला भी एक्स्ट्रा कॉपी निकाल कर अलग से लड़कयों का यौन शोषण किया करता था। ये ब्लैकमैलेर्स स्वयं तो बलात्कार करते ही अपने दोस्त यारों को भी उपकृत करते। जिन लड़कियों के साथ बलात्कार और ब्लैकमेलिंग हुई उनमे से कुछ ने आत्माहत्या करनी शुरू कर दी। एक ही स्कूल के छात्राओं का इस तरह आत्महत्या करना ही मामले की पोल खुलने का कारण बना। शुरू में पुलिस ने 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया। समाज में बदनामी के डर से अधिकांश लड़कियों के परिवारों ने पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराने से भी मना कर दिया। जो 12 लडकियां हिम्मत करके पुलिस के पास गयीं उनमे से भी 10 बाद में पीछे हट गयीं क्यूंकि आरोपी उन्हें धमकियां दिलवा रहे थें, बाकि बची 2 लड़कियों ने ही केस को आगे बढाया उन्होंने अकेले 16 आरोपियों की पहचान की।  

ये वो दौर था जब बलात्कार जैसे अपराधों में कड़ी सजा नहीं होती थी। घटना के 6 वर्ष बाद जिला न्यायलय ने 8 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन मुख्य आरोपी फारूक चिश्ती ने खुद को मानसिक रोगी घोषित करवा लिया जिससे उसके मुक़दमे की सुनवाई लटक गयी। जिन आरोपियों को उम्रकैद हुई थी उनकी भीं सजा को 10 साल की जेल में बदल दिया गया। एक फरार आरोपी सलीम नफीस 19 वर्ष बाद साल 2012 में पकड़ा गयाबाद में वो भी ज़मानत पर छूट गया। जब इस बलात्कार काण्ड का भांडाफोड़ हुआ तो राजस्थान में कांग्रेस का पूरा सिस्टम आरोपियों को बचाने में लग गया , जो भी सामने आता उसे डरा धमका कर चुप करा दिया जाता, कहा गया की आरोपियों पर कार्र्यवाही हुई तो सांप्रदायिक माहौल खराब हो जायेगा। 

बलात्कारी एक मज़हब विशेष के थें इसलिए मोमबत्ती गैंग भी तब लड़कियों के बजाए बलात्कारियों के समर्थन में खड़ा हो गया था, सब का प्रयास यही था की देश के लोगों को अजमेर की ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की आड़ में हुए इस घिनौने और बर्बर काण्ड की कानो कान खबर न लग पाए, उन्हें चिंता थी की इससे दरगाह पर आने वाले हिन्दुओं की संख्या कम हो सकती है। वास्तव में अजमेर गैंगरेप काण्ड की शुरुवात लव जिहाद से हुई थी। पूरी तरह से धार्मिक पहचान के आधार पर हिन्दू लड़कियों को जाल में फसाया गया। 

हिन्दू आश्रमों और साधु संतों पर बेहूदी फिल्म बनाने वाले जिहादी बॉलीवुड ने भी कभी अजमेर के खादिमों के हाथों हुए इस बलात्कार कांड पर कोई फिल्म नहीं बनाई। अजमेर में माथा टेकने के लिए जाने वाले हिंदू ना तो दरगाह के इतिहास के बारे में जानते हैं और न यहाँ के खादिमों के हांथों हुए देश के सबसे बड़े बलात्कार कांड के बारे में। उनको ये भी आभास नहीं होता की ये मात्र किसी सूफी की दरगाह नहीं बल्कि यहाँ न जाने कितनी अबोध हिन्दू लड़कियों की चीख भी दफ्न है।  

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