पहले
मुस्कान चेहरे पर
दिखती थी
लोग हमेशा
मुस्कुराते हुए खुश रहते थे
पहले लोग एक साथ
खुशियां मानते थे
सिमित संसाधनों में
भी मुस्कान बनी रहती थी
दूसरों की तरक्की में भी मुस्कुराते थे
किसी बात का जवाब
मुस्कुरा कर देते थे
चेहरे पर असली ख़ुशी
झलकती थी
मन में कोई द्वेष नहीं होता था
अब
बनावटी मुस्कान
सिर्फ एमोज़ी में दिखती है
लोग सोशल मीडिया पर
नकली मुस्कान दिखाते हैं
संपन्नता बढ़ने के
बाद भी लोग मुस्कुराते नहीं हैं
दूसरे की ख़ुशी में
दुखी नज़र आते हैं
इंसान चेहरे पर गम
की झलक लिए घूम रहा है
मुस्कान की मुखौटे
ने लोगों को निराश किया है
मुस्कुराहटों की कमी
से लोगों में बीमारियां बढ़ी है
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