सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मंदिरों से
संबंधित एक और फैसला सुनाया है, कोर्ट के इस आदेश को भी हिन्दू समाज विरोध कर रहा
है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि आन्ध्र प्रदेश के श्रीशैलम
मंदिर के पास कारोबार करने से गैर-हिंदुओं को रोका नहीं जा सकता. मतलब ये कि अब
मुसलामन और ईसाई भी मंदिर परिसर में अपनी दुकानें खोल सकते हैं.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस
बोपन्ना ने यह निर्णय सुनाया है. कोर्ट के इस आदेश हिन्दुओं में रोष और आक्रोश का
माहौल है. इस फैसले से स्थानीय हिन्दू पुजारी और दुकानदार मायूस और निराश हैं. डीवाई
चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना ने कहा कि अन्य धर्म को मानने वाले उन दुकानदारों
को दुकानों की नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा लेने से नहीं रोका जा सकता, जिनकी पहले से ही दुकानें मंदिर परिसर
में मौजूद हैं. इस आदेश में दुकान मालिकों के साथ उन किरायेदारों को भी शामिल कर
लिया गया है, जो हिन्दू नहीं हैं. इसी बात से लोग
निराश हैं.
अपने निर्णय में बेंच ने आन्ध्र सरकार
से कहा, कि “एक
बार आप ऐसा कह सकते थे कि मंदिर परिसर में शराब या इस तरह की कोई दुकान नहीं खोली
जा सकती, लेकिन हिन्दू के अलावा कोई दूसरा दुकान
न ले, ये उचित नहीं है. आप ऐसा कैसे कह सकते
हैं कि वहाँ गैर-हिन्दू फूल और खिलौने भी नहीं बेच सकता?” इसपर आन्ध्र प्रदेश सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट
सीएस वैद्यनाथन ने अपना पक्ष रखा.
इससे पहले आन्ध्र प्रदेश सरकार ने
मंदिर के बगल में दुकानों की नीलामी में हिस्सेदारी लेने का अधिकार केवल हिन्दू
धर्म को मानाने वालों के लिए आमंत्रित किया था. आन्ध्र प्रदेश सरकार ने साल 2015 में आदेश जारी किया था कि हिन्दुओं को
छोड़ कर कोई अन्य धर्म का व्यक्ति श्रीशैलम मंदिर से जुडी दुकानों की नीलामी
प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकता. यह आदेश उन धार्मिक क्षेत्रों के लिए था जो
आन्ध्र प्रदेश चैरिटेबल व हिन्दू धर्म संस्थान एंडोमेंट एक्ट 1987 के अधीन आते हैं.
दरअसल ये पूरा मामला सितम्बर 2019 से चला आरहा है जब सैय्यद जानी बाशा
ने इस आदेश को आन्ध्र पदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. तब उच्च न्यायालय ने आन्ध्र
सरकार के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था...और सरकार के फैसले को बरकरार
रखा था. मगर याचिकाकर्ता सैय्यद जानी बाशा ने इस आदेश को अपने जीवन के अधिकार में
हस्तक्षेप बता कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया जिसपर अब कोर्ट ने ये आदेश दिया
है.
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