आज जिस मथुरा को मुसलमानों से मुक्त
करने की बात होरही है उस मथुरा पर आज से 251 साल पहले मराठों ने विजय पताखा फहराया
था. दरअसल पेशवा माधवराव पानीपत युद्ध के बाद बदला लेना चाहते थे. इसलिए उन्होंने
तुकोजी होल्कर और महादजी सिंधिया की सहायता से विसाजी कृष्ण बिनीवाला की कमान में
एक विशाल मराठा सेना भेजी. मराठा सेनाएं पूरे उत्तर की ओर आगे बढ़ी. गंगा और जमुना
के बीच रोहिल्ला भूमि को तबाह कर दोआब के इटावा किले पर कब्जा कर लिया.
जल्द ही, पूरा रोहिलखंड उनके नियंत्रण में आ गया. इसने मुगल सम्राट शाह आलम को
अंग्रेजों से मराठों के पक्ष में जाने के लिए प्रेरित किया. मराठों द्वारा शाह आलम
को एक बार फिर दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया. रोहिल्ला प्रमुख, नजीब उद दौल्लाह खान की तब तक मृत्यु
हो चुकी थी और उनके बेटे जबीता खान ने उनका उत्तराधिकारी बना लिया था. ऐसे में मराठों
ने एक बड़ी फिरौती के लिए रोहिलखंड पर कब्जा कर लिया और फिरौती का भुगतान करने के
बाद ही ज़बीता खान जो पहाड़ियों पर भाग गए थे) अपना अधिकार वापस कर दिया.
5 अप्रैल 1770 गोवर्धन को भयंकर युद्ध हुई, इस युद्ध में मराठा विजयी हुए और आगरा व मथुरा पर
अधिकार कर लिया. इस बड़ी जीत के बाद सितंबर 1770 में जाटों के साथ शांति एक बड़ी संधि हुई.
इस संधि के बाद 10 फरवरी 1771 को महादाजी ने दिल्ली पर भी अधिकार कर
लिया. इसके बाद 4 मार्च 1771 को महादाजी ने शुक्रताल पर कब्जा किया.
इस प्रकार पूरे उत्तर भारत और दिल्ली की गद्दी पर भी मराठों ने राज किया. मगर इसके बाद कुछ इस्लामिक आक्रमणकारियों ने श्री कृष्णा भूमि पर कब्ज़ा कर लिया. तबसे ये विवाद बना हुआ है, जिसे मुक्त कराने के लिए हिन्दू समाज अभियान चला रहा है.
5 अप्रैल 1770 गोवर्धन युद्ध के महत्वपूर्ण तिथि:
मथुरा पर आज से 251 साल पहले मराठों ने
विजय पताका फहराया था
पेशवा माधवराव पानीपत युद्ध के बाद
बदला लेना चाहते थे
तुकोजी होल्कर और महादजी सिंधिया की
सहायता से सेना तैयार की गई
विसाजी कृष्ण बिनीवाला की कमान में एक
विशाल मराठा सेना मथुरा भेजी गई
मराठा सेनाएं पूरे उत्तर की ओर काफी
तेज़ी से आगे बढ़ी
गंगा और जमुना के बीच रोहिल्ला भूमि को
तबाह कर इटावा किले पर कब्जा किया
पूरा रोहिलखंड मराठों के नियंत्रण में
आ गया
5 अप्रैल 1770 को गोवर्धन में एक भयंकर युद्ध हुई
इस युद्ध में मराठा विजयी हुए और आगरा व मथुरा पर
अधिकार कर लिया
इस बड़ी जीत के बाद सितंबर 1770 में जाटों के साथ एक बड़ी शांति संधि हुई
इस संधि के बाद 10 फरवरी 1771 को महादाजी ने दिल्ली पर भी अधिकार कर
लिया
इसके बाद 4 मार्च 1771 को महादाजी ने शुक्रताल पर कब्जा किया
पूरे उत्तर भारत और दिल्ली की गद्दी पर
भी मराठों ने राज किया
इसके बाद कुछ इस्लामिक आक्रमणकारियों
ने श्री कृष्णा भूमि पर कब्ज़ा कर लिया
तबसे ये विवाद बना हुआ है, जिसे मुक्त कराने के लिए अभियान चलाया जा रहा है
No comments:
Post a Comment