फिल्में हमारे समाज का आइना होती हैं। जों लोगों में देषभक्ति का जज्बा जगाती हैं। हमारे देषभक्त षहीदों और वीरों की कहानियां समाज को बताती हैं। जिसे देखकर देषवासियों में देषभक्ति की भावना हिलोरें लेने लगती हैं। लेकिन अब ऐसी फिल्में बन रही है, और पैसे कमाने का रिकार्ड भी बना रही हैं, जिनका हीरो अपने छोटे से हित के लिए देष से गददारी करता है। और हम मजे से उसकी गददारी पर अपना पैसा लूटा रहे हैं। जी हां आज हम बात कर रहे है फिल्म एक था टाइगर की। जिसका हीरो एक लड़की के लिए देष से गददारी करता है। और वो भी उस भारतीय खूफिया ऐजेंसी का ऐजेंट, जिसकी नीतियों पर देष की सुरक्षा टीकी हुई है। ऐसे ही हीरो की फिल्म कमाई के रिकार्ड बना रही है। लेकिन सोचिए आज हमारा समाज कहां पहुंच गया है। पाकिस्तान ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया। जबकि पाकिस्तानी ऐजेंट लड़की ने कोई भी गलत काम नही किया। लेकिन भारत के ऐजेंट जिसे भारत में टाइगर नाम से जाना जाता है। वो देष और अपने पेषे से गददारी करता है। लेकिन फिर भी भारत सरकार और हमारा समाज इस फिल्म की असलियत को नही पहचानते। आखिर क्यों पाकिस्तान और हम इसकी हकीकत को पहचानते हैं। आखिर क्यों आप फिल्म देखने के बाद देष हित को भूल जाते हैं। क्या हम अपने उन जाबांजों की कद्र नही करते जो अपना सब कुछ त्यागकर देष के लिए आज भी विदेसी जेलों में सड़ रहे हैं। मगर अपनी जबान के ताले आज तक नही खोले। देष के लिए दर-बदर की ठोकरें खा रहे है। देष हित के लिए कहां कहां भीख मांग रहे हैं। अपनी हर एषो-आराम की जिंदगी को खत्म कर दिख उन जाबांजों ने देषहित के लिए। मगर कभी उनके चेहरे पर उफ तक नहीं आती। लेकिन टाइगर एक छाटे से हित के लिए देष और देष की आवाम से गददारी करता है। और हमारी आवाम भी उसे बिना कुछ सोचे समझे अपनाती है। ऐसा लगता है आज देष के फिल्म निर्माताओं में तो देष भक्ति की भावना तो खत्म हो गई लगती ही है। मगर हमारा समाज और युवा वर्ग भी देषप्रेम की भावना से कोसो दूर निकल गया लगता है। क्या आज ऐसे फिल्म मेकर खत्म हो रहे है जो लोगों में फिल्म के जरिए देष प्रेम की भावाएं जगाते थे। क्या आज ऐसा समाज खत्म हो गया है जो देषभक्ति की फिल्मों के लिए उमड़ पड़ता था। क्या अब हम थियेटर में केवल इंटरटेनमेंट के लिए जाते हैं और उसमें ये भी भूल जाते हैं कि हमारा हीरो देषप्रेम से गददारी कर रहा है। और हम भी उसका मजा उठा रहे हैं। आखिर क्यों नही आतीं हमारे मन में ऐसी बातें। क्यों सरकार और समाज ऐसी फिल्मों को नही नकारते। क्यों दूसरे मीडिया संस्थान ऐसी फिल्मों पर बेदाग टिप्पणी नही करते। क्यों फिल्म मेकर ऐसी फिल्म बना रहे हैं। और क्यों हम उनका समर्थन कर रहे है। तो क्यों ना ऐसे फिल्म मेकर और फिल्म पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
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