आज हम आपके सामने एक ऐसा मुददा लेकर आ रहे हैं जो लगभग हर देष, दुनिया और हर समाज से जुड़ा है। ये एक ऐसा मुददा है जिसके लिए हमारे समाज में कोई जगह नही है फिर भी समाज इसे षानओषौकत का एक बड़ा जुमला मानता है। समाज का हर वर्ग इसमें खोया हुआ है। जबकि उसे पता है कि ये उसके लिए प्राणघातक है। जी हां आज हम बात कर रहे हैं समाज में फैली नषे की लत को। ऐसा नही है कि हमारे समाज में नषे के प्रति जागरूकता नही है। लेकिन सब कुछ जानते हुए और समझते हुए भी हमारे समाज का हर वर्ग नषे की लत में डूबा हुआ है। क्या रिक्षे वाला और क्या अपने आप को हाईप्रोफाइल कहने वाला, हर षख्स नषे में डूबा हुआ लगता है। अब डूबें भी क्यों नही इस नषे में डूबना आज के युवा वर्ग का ट्रेंड जो बन गया है। सबको पता है कि नषा हमारे षरीर के लिए नुकसानदायक है। लेकिन दोस्ती की पींगे मारना और पार्टी में दिखावा जो करना है। बस यही दिखावा तो कर देता है जिंदगी बर्बाद। लेकिन क्यों हो रहा है ये सब, क्या वजह है इस सब की। जब हम इसकी तह तक जाते है तो कई वजह दिखाई देती है इन सब की। सबसे बड़ी वजह है, आज ऐसा कोई सख्त कानून का ना होना जो नषा मुक्ति पर कड़ाई से रोक लगा सके। सरकारें और राजनैतिक दल हमेषा से नषा मुक्ति को पैसे और राजनीति के खेल में तोलते हैं। समाज का आइना दिखाने वाली फिल्में धड़ल्ले से युवाओं को नषे की ओर ढ़केल रही हैं। जब अपने आप को दिखाने वाले खुलेआम फिल्म में कहते है ए गनपत चल दारू ला.... तो आप खुद ही सोच सकते हैं क्या प्रभाव पड़ेगा इसका हमारे युवाओं पर। जब चिकनी चमेली पव्वा लगाके आयेगी तो युवा पीढि के मन में नही आयेगा पव्वा लगाने का। जब पार्टी में गाना चलता है दो घूंट पिला दे षाकिया बाकी मेरे पे छोड़ दे..... तो फिर क्यों नही सोचेगा युवा क्यों ना ये भी करके देखा जाये। जब फिल्म का हीरो कहेगा दम मारो दम, मिट जाये गम..... तो फिर दुनियाभर की टेंषन लिए युवा क्यों नही सोचेगा कि में भी ये सब अपनी टेंषन कम कर सकता ! आज ये सारे सींन हमारे फिल्मी जगत में धड़ल्ले से चल रहे हैं। देष में सेंसर बोर्ड नाम का बना हुआ है। फिल्मों में सिगरेट सीन बैन हैं फिर भी मिलीभगत से सब कुछ चल रहा है। क्यों चल रहा है ये आप सब जानते हैं कि कैसे पैसे के लिए सब खेल खेल जा रहा है। हमारे युवा पहले तो षौकिया ये सब अपनाते हैं मगर फिर वो उसके लती हो जाते हैं। एक समय ऐसा आता है जब इंसान बिना स्मौकिंग और नषो के नही रह सकता। बस यही से षुरू हो जाता है इंसान का हर तरह से पतन। क्या षालीनता, और क्या गौरव, और क्या स्वास्थ्य हर तरह से इंसान खत्म होने लगता है। अब ऐसे में कोई व्यक्ति इससे निकलना चाहे, तो फिर भी नही होता आसान निकलना। इसके लिए देष में कई सामाजिक संगठन और सरकार भी कई तरह के कार्यक्रम चलाती है। मगर क्या हम होते है इन सब से जागरूक। क्या कभी सोचते है कि स्मौकिंग, टौबेको और दूसरे नषे कितना नुकसानदायक है हमारे षरीर को, नही ना। क्योंकि हम जानते हुए भी सभी चीजों को अनदेखा कर रहे हैं। हमें नषे के बारे में सब कुछ पता है मगर फिर भी हम इसमें डूबते जा रहे हैं। तो अखिार क्यों हो रहा है ये सब। क्या इस सब के लिए समाज में आज एक आंदोलन की जरूरत नही है।
No comments:
Post a Comment