देष में आज कोल आवंटन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। इंदिरा गांधी ने 1973 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया तो मनमोहन सिंह ने 1995 में ही बतौर वित्त मंत्री। इसके चलते कोयला खादान एक बार फिर निजी हाथों में जाने लगा। असल में कैग की रिपोर्ट इन्ही निजी हाथों में खदान देने के लिये अगर बोली ना लगाये जाने पर अंगुली उठाकर, 1.86 लाख करोड़ के राजस्व के चूने की बात कर रही है। वही कोयले से करोड़ों का वारा-न्यारा कर मुनाफा बनाने में चालिस से ज्यादा कंपनिया सिर्फ इसीलिये बन गयी जिससे उन्हें कोयला खादान का लाइसेंस मिल जाये। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीते 2004 से 2009 तक में 342 खदानों के लाइसेंस बांटे गये। जिसमें 101 लाइसेंसधारकों ने कोयले का उपयोग पावर प्लांट लगाने के लिये लिया। लेकिन इन पांच सालों में इन्हीं कोयला खादानो के जरीये कोई पावर प्लांट नया नही आ पाया। एक सवाल खड़ा हो सकता है कि क्या कोयला खदान के लाइसेंस उन कंपनियों को दे दिये गये, जिन्होने लाईसेंस इसी लिये लिये कि वक्त आने पर खादान बेचकर वह ज्यादा मुनाफा कमा लें। म्यूजिक कंपनी से लेकर गुटका, गंजी और अखबार निकालने से लेकर मिनरल वाटर का धंधा करने वाली कंपनी तक को लाइसेंस दे दिया गया। इतना ही नही, दो दर्जन से ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं, जिन्हे ना तो पावर सेक्टर का कोई अनुभव है और ना ही कभी खादान से कोयला निकालवाने का कोई अनुभव। कुछ लाइसेंस धारकों ने तो कोयले के दम पर पावर प्लांट का भी लाइसेंस ले लिया और अब वह उन्हें भी बेच रहे हैं। लेकिन यहा काबिले गौर वाली बात ये है की देष की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई जब भी किसी बड़े घोटाले की जांच करने निकलती है तो, पहले खबर अखबार में छपती है फिर सीबीआई छापेमारी करती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ, तो ऐसे में एक बार फिर से सीबीआई को लेकर सवाल खड़ा हाने लगा है की क्या इन कोल भ्रश्टाचारियों को बचाया जा रहा है। कोयला खादान को औने पौने दाम में बांटकर राजस्व को चूना लगाने वालो पर आखिर कार्रवाई सरकार सिधे तौर पर क्यो नही करती है। असल सवाल यहीं से शुरु होता है कि क्या संसद के भीतर खादानों को लेकर अगर राजनीतिक दलों से यह पूछा जाये कि कौन पाक साफ है तो बचेगा कौन। क्योंकि देश के 18 राज्य ऐसे हैं, जहां खादानों को लेकर सत्ताधारियों पर विपक्ष ने यह कहकर अंगुली उठायी है कि खादानो की लूट सत्ता ने की है। तो ऐसे में ये सवाल अपने आप खड़ा होता है की आजादी के बाद देश बेचने सरीखा ही क्या ये मामला नही है। क्योंकि बाजार ने सरहद तोड़ी लेकिन उसमें बोली देश के जमीन और खनिज-संसाधन की लगी। यानी सरकार का यह तर्क कितना खोखला है कि खादानों से जब कोयला निकाला ही नहीं गया तो घाटा और मुनाफे का सवाल ही कहां से आता है। असल में झारखंड के 22 खादान, उडीसा के 9 खादान, मध्यप्रदेश के 11 और बंगाल के 9 कोयला खादानो में से बाकायदा कोयला निकाला जा रहा है। और सिगरैली के साशन में रिलायंस की खादान मोहरे एंड अमलोरी एक्सटेंसन ओपन कास्ट में भी 1 सिंतबर 2012 से कोयला निकलना शुरु हो गया। यानी कोयला खादान घोटाले ने अब झारखंड, छत्तीसगढ,मध्यप्रदेश और उडीसा,बंगाल में काम तो शुरु करवाया है। लेकिन खास बात यह भी है कि करीब 60 से ज्यादा कोयला खादानें ऐसी भी हैं, जिनका एंड यूज होगा क्या यह किसी को नहीं पता। इसलिये ये भी एक सवाल है कि दिल्ली में, जो कई मंत्रालयों से मिलकर बनी कमेटी जांच कर रही है वह महज खाना-पूर्ती कर कुछ पर तलवार लटकायेगी या फिर इनके उपर कार्रवाई भी होगी। क्योकी सीबीआई ने जो जाचं का तरीका अपनाया है उससे सवाल उठना लाजमी है की क्या सीबीआई इन भ्रश्टाचारीयो को बचा रही है।
Goyal Energy Solution (GES) is a leading name in the coal trading, coal mines, steel grade coal in north east India.
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