कानपुर गौषाला भौंती इलाके में मौजूद हैं। यहा विभिन्न प्रकार के अत्याधुनिक तरीके से निर्मित मषीनों का संचालन बैल उर्जा से किया जाता हैं। इस तकनीक की खास बात ये है की बैलो की अल्प उर्जा से ही इन मषीनो का बड़ी असानी से संचालन हो जाता है। इस गौषाला में चारे को काटने के लिए उर्जा लेने की आवष्कता नही होती। और ये पूरी तरह आत्म निर्भर है। साथ ही साथ इससे समय की बचत भी होती हैं। इन सब के अलावा इस गौषाला में देवी देवताओं के मंदिर की स्थापना इस तरीके से की गई है कि इस गौषाला का प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोह लेता है। यहा हरे भरे पेड़ पौधे और यहां का मनमोहक दृष्य मिलकर गौषाला को एक षान्ति के प्रदेष जैसा रूप देते । इस गौषाला में बैल उर्जा के इस्तेमाल से संचालित होने वाले यंत्रो में सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादक यन्त्र की उपयोगिता आज के दौर में काफी उपयोगी साबित हो रही है। गौषाला के महामंत्री पुरूशोतमलाल तोषनीवाल बताते हैं कि इस विधि से 5 हास पावर की कोई भी मषीन संचालित की जा सकती हैं। आधुनिकता के इस दौर में बढ़ते डीजल के मूल्यों और सूखे से किसान देष में आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में बैल उर्जा द्वारा संचालित जल निकासी का ये यंत्र काफी कारगर साबित हो रहा हैं। इसी को वृहत रूप देने के लिए ये गौषाला समाज को प्रोत्साहित करने का काम कर रही है। और समाज में ये संदेष छोड़ रही है की गौवंष कितना कारगर है। ये विधि आधुनिक कृशि और गा्रमीण भारत के लिए वरदान साबित हो रही हैं। जो किसान जयादा संख्या में पषुपालन करते है उनके लिए यह यंत्र और अधिक अहम हो जाता है। इतना ही नहीं यहा इस तरह की विधि से कई अन्य कार्य भी किए जाते है जैसे कृशि में उपयोग होने वाले औजारों में धार लगाने से लेकर, आटा चक्की या फिर चावल निकालने की मषीन असानी से विना किसी इंधन के चलाई जा सकती है। आप को बता दे की इस विधि में बैलों को जयादा उर्जा नहीं लगानी होती है। यहा तक की इस मषीन को अकेला इंसान भी बड़ी असानी से घुमा सकता है। इस विधि की खास बात यही है की कम उर्जा से बड़े से बड़ा काम बड़ी असानी से किया जा सकता है। आज के वैज्ञानिक युग में जहा कृशी पुरी तरह से नई- नई तकनीको की मोहताज हो गई है। वही कृशी के लिए बैल और गांयों का उपयोग कम हुआ है। कहा जाता है की जब किसी चिज की उपयोगिता खत्म हो जाती है तो समाज उससे कन्नी काटना सुरू कर देता है। यही आज गांयों और बैलों के साथ हुआ है। कानपुर गौषला सोसाईटी समाज में गांयो और बैलो के उपयोगिता दुबारा बढ़ाने के लिए प्रतिबध्द है। और इसके कठिन प्रयासों से ऐसा संभव प्रतीत हो रहा है। एक ओर जहा देष विजली संकट से जूझ रहा है। यहा तक की भारत के ऐसे कई गांव है जहा विजली की पहुंच ही नही है और लोग अपनी जिंदगी अंधेरे मे विताने को मजबुर है, तो वही दुसरी ओर कानपुर गौषाला सोसाईटी के अथक प्रयासो के चलते बैलों से उर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। ये उत्पादन बड़ी मात्रा में तो नही लेकिन अंधेरे में टिम- टिम करते चिराग की पनाहों में किताब खोले बैठे बच्चों के जिवन में एक चकाचैध बल्ब कि रोषनी तो फैला ही सकता है। इस विधि से होने वाले विजली उत्पादन से अंधकार में डुबे कम से कम बीस घरों में छः घंटो तक असानी से दुधिया बल्ब की रोषनी फैलाई जा सकती है। विज्ञान के विकास के बाद खेतो को जोतने के लिए बाजार में तरह- तरह के यंत्र आ चुके हैं। हैरो और टिलर जैसे कृशि यंत्र जो की बिना ट्रैक्टर के नही चलाये जा सकते, इन सब को चलाने के लिए जयादा डीजल खर्च होता है। जिससे खेती में लागत जयादा आती है ऐसे में कानपुर गौषाला सोसाईटी ने षेखर ट्रैक्टर जैसे यंत्रो का आविश्कार कर बैलों द्वारा खेतो की जुताई बिना इंधन को करना मुमकिन किया। इस षेखर ट्रैक्टर को इस तरह से तैयार किया गया है की बैल की कम उर्जा और किसानों के कम समय और कम लागत से आसानी से खेतो की जुताई की जा सके। कानपुर गौषाला सोसाईटी के भागीरथ प्रयासो से सकरातमक परिणाम अब प्रत्यक्ष रूप से देखे जा सकते है। इन सब के अलावा इस गौषाला में एक गोबर गैस पलांट की स्थापना भी की गई है। इस पलांट की स्थापना उत्तरप्रदेष के पूर्वमुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने करवाई । भारतीय तकनीक द्वारा इजाद की गई इस विधि के अंतर्गत एक 85 घन मिटर का टैक बनाया गया है। जिसमें गोबर एकत्रित कर के सीएनजी गैस का उतपादन किया जाता है। जिसका उपयोग जनरेटर और कई प्रकार की अन्य मषीनों और वाहनों को संचालित करने में किया जाता है। अगर बिजली उत्पादन करने वाले जनरेटर का संचालन इस गैस द्वारा किया जाता है, तो 75 प्रतिषत गैस और केवल 25 प्रतिषत डीजल के इस्तेमाल से जनरेटर द्वारा बड़ी असानी से उर्जा उत्पादित की जा सकती है। आज के इस दौर में बढ़ती डीजल की क़ीमत आसमान छू रही है ऐसे में ये तकनीक और जयादा अहम हो जाती है। इस तकनीक को अगर बड़े स्तर पर काम लिया जाय तो ये गा्रमीण भारत के लिए ये एक वरदान साबित होगी। जहा पर इस तरह के छोटे मोटे यंत्रो का संचालन किया जाता है। आधुनिकता के इस दौर में आज हर कोई जयादा उपज पाने के लिए रसायनीक खाद का जयादा से जयादा उपयोग कर रहा है, ऐसे में खेतो की उर्वरा षक्ति भी घटती जा रही है, साथ ही ऐसे में रसायनीक खाद द्वारा उपजाई जाने वाली फसलो और साक सबजियों में कीटनाषको की मात्रा बढ़ जाने से कई तरह की घातक बिमारीयों का खतरा बढता ही जा रहा है। जो समाज को अस्वस्थ बना रहा है भारत के भविश्य को अंध्कार के गर्त में धकेल रहा है। ऐसे में कानपुर गौषाला सोसाइटी के पुनीत प्रयासो से जैविक खाद का उत्पादन आने वाली पीढ़ी की जरूरत को दर्षा रहा है। और समाज को रसायनीक खाद के उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक कर के कृशी में जैविक खाद की उपयोगीता बढ़ाने के लिए प्ररित का रहा है। समाज में कानपुर सोसाइटी जैसी पुनित संस्थाओ को सरकार को भी आगे बढ़ कर प्रोत्साहित करना चाहिए।
बहुत अच्छा
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