22 September 2012

पत्नियों को पति के वेतन में हिसेदारी क्या उचित है ?

आज हम आपके सामने ऐसा मुददा लेकर आये हैं, जो आज हमारे देष की संस्कृति, समाज और परिवार पर सीधा सीधा असर डालेगा। समाज में उथल पुथल मचा देगा है। पति पत्नी के पाक रिष्ते को चोट पहुंचायेगा। हमारी आने वाली पीढि़ पारिवारिक रिष्तों को भूल जायेगी। उसे मां बाप, पति पत्नी के रिष्ते के बारे में पता नही चलेगा। बस कानून और पैसा ही रिष्तों के मायने रह जायेगे। जी हां आज ऐसा ही होने जा रहा है देष में। देष का महिला और बाल कल्याण मंत्रालय कुछ ऐसा ही कानून बनाने जा रहा है देष में। इस कानून के मुताबिक अब पति पत्नी का रिष्ता केवल पैसे के लिए, बाकी रह जायेगा। पति हर महिने पत्नी को अपनी पगार का करीब 20 फीसदी पैसा देगा। ये कुछ ही दिन में देष में कानून का रूप लेने जा रहा है। महिला और बाल कल्याण मंत्री कृश्णा तीरथ ग्रहणियों के सस्कतिकरण के नाम पर कुछ ऐसा ही कदम उठाने जा रहीं हैं। उनका मानना है, महिलाएं घर परिवार संभालने के साथ ही बाहर का काम भी देख रही हैं। ऐसे में महिलाओं का पति के वेतन में हक बनता ही है। मंत्रालय का मानना है इससे महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा हो सकेगी। इससे महिलाएं और ज्यादा स्वतंत्र होगी। महिलाओं को उनके काम का हक मिलेगा। लेकिन मंत्रालय इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में ध्यान नही दे रहा है। हमारे देष और संस्कृति में पति पत्नी के रिष्ते को सात जन्मों का बंधन माना जाता है। इतिहास गवाह है, पतिव्रता पत्नी के सामने भगवान को भी झुकना पड़ा। सावित्री के लिए भगवान को भी अपना कमेंट वापस लेना पड़ा था। सावित्री के पतिधर्म के सामने यमराज ने भी उसके पति को वापस दे दिया। आज भी हर पत्नी करवा चैथ पर पूरे दिन बिना अन्न पानी किये पति की लंबी उम्र की कामना करती है। पति के चेहरे को देखकर पत्नी उसके हाथों जलपान ग्रहण करती है। लेकिन अब ये सारे रिष्ते पैसे के लिए रह जायेगे। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है, क्या होगा हमारे अमूल्य रिष्तों को। जिनकी मिषाल दुनिया दिया करती है। आज भी पति अपनी सारी कमाई पत्नी के हाथ में लाकर देता है। पत्नी ही घर के सारे खर्चों को मैनेज करती है। ज्यादातर बच्चे भी मां से ही पैसे मांगते हैं। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि पत्नी 10-20 फीसदी पति के वेतन से घर का खर्चा चला पायेगी। क्या ऐसे में घर की सुख षाति भंग नही होगी। क्या इससे पत्नियों के प्रति हीन भावना नही आयेगी। क्या ऐसे में हमारा सामाजिक ढ़ांचा सुरक्षित रह पायेगा। क्या इससे महिलाएं वाकई आर्थिक रूप से मजबूत हो पायेंगी। ये सारे सवाल भविश्य के गर्त में हैं। लेकिन इससे हमारे समाज का सामाजिक ताना बाना जरूर बिगड़ जायेगा। क्या पति पत्नी को हर महिने ये पगार देगा। क्या पति इसके लिए कोई ना कोई बहाना नही ढूंढेंगे। क्या पैसे के लालच में रिष्ते नाते नही टूटेंगे। क्या षादी की जगह वेतन समझौता एग्रीमेंट नही होगा। क्या ग्रहस्वामिनी वेतन भोगी कर्मचारी नही बन जायेगी। अगर ग्रहणी को घर के काम के पैसे दिये जाने लगे, तो इसका मतलब अगर कल वो काम करने लायक नही रही, तो क्या उसे घर से बाहर निकाल दिया जायेगा। क्या मां, बच्चे के पालन पोशण के लिए पैसे लेना पसंद करेगी। क्या ग्रहस्वामिनी नौकरानी बनकर नही रह जायेगी। क्या परिवार चलाने की जिम्मेदारी पति पत्नी के वजाय पत्नी पर ही नही आ जायेगी। क्या अकेली पत्नी परिवार और बच्चो की परवरिष कर पायेगी। ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि सरकार में विदेसी मानसिकता और विदेसी संस्कृति को मानने वाले लोग है। इन्हें ना तो भारतीय संस्कृति के बारे में ज्यादा पता है और ना भारतीय परिवारों और परवरिष के बारे में। लोग कह रहे है कि मंत्रालय 10 फीसदी महिलाओं के लिए 90 फीसदी परिवारों को तोड़ना चाहता है।

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