14 September 2012

पी एम का मीडिया को नसीहत देना कितना सही ?

महंगाई, भ्रष्टाचार और अमन-चैन कायम रखने में नाकाम सरकार के प्रधानमंत्री ने एक बार फिर मीडिया को संयमित रहने की नसीहत दी है। चैतरफा आलोचनाओं में घिरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मीडिया से सनसनीखेज रिपोर्टिग से बचने को कहा है। मनमोहन की ये नसीहत ऐसे समय आई है जब देश ही नहीं विदेशी मीडिया तक ने उन्हें निशाने पर ले रखा है। जी हां आज हर ओर सरकारी हुक्मरान मीडिया रिर्पोर्टिग से बौखलाये हुए हैं। क्या प्रधानमंत्री और क्या मानव संसाधन विकास मंत्री सभी, मीडिया को अपने दायरे में रहने की नसीहत देते हैं। आखिर क्या वजह हो गईं हैं जो सरकार मीडिया पर आक्रामक हो गई हैं। क्या सरकार मीडिया की आलोचनाओं से घबरा गई है। क्या मीडिया की आलोचनाओं से सरकार को अपना वोट बैंक दरकता दिख रहा है। या फिर सोषल नेंटवर्किग साइटों पर आम लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया सरकार को नागवार गुजर रही हैं । या फिर वाकई मीडिया सनसनीखेज हो गया है। क्या मीडिया देषहित की बात नही करता। क्या मीडिया सामप्रदायिक सौहादर्य बिगाड़ता है। क्या मीडिया का भ्रश्टाचार के खिलाफ बोलना गलत है। क्या मीडिया का सरकारी भ्रश्टाचार को बेपर्दा करना देषद्रोह है। क्या मीडिया का सरकारी लूट और नेताओं की बख्ख्यिया उधेड़ना सामप्रदायिक सौहादर्य बिगाड़ना है। क्या मीडिया का आम आदमी की आवाज उठाना गुनाह है। जी हां आज ऐसे ही सवाल उठ रहे है सरकार और मीडिया पर। अब देखना ये है कि कौन अपनी जगह पर सही है। लोग कह रहे हैं, कि सरकार तो वाकई अपनी आलोचनाओं से घबराकर ऐसी तानाषाही बातें कर रही है। मगर कभी-कभी कुछ मीडिया वाले भी अपनी भूमिका सही से नही निभाते। तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चंद लोगों की वजह से मीडिया को निषाना बनाना सही है। क्या सरकार इन चंद लोगों के बहाने मीडिया की स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है। जी हां लगता तो ऐसा ही है। जब सरकार का मुखिया ही हाथ धोकर मीडिया के पीछे पड़ जाये तो ऐसे में सवाल उठना वाजिव है। और वो भी ऐसा प्रधानमंत्री जो हमेषा सरकारी लूट पर चुप रहा हो। भ्रश्टाचारियों का हमेषा बचाव करता दीखे और जिसकी नाक के नीचे देष के सबसे बड़े भ्रश्टाचार सामने आये हों। तो ऐसे में सवाल वाकई वाजिव बनता है। क्या सरकार को देष और जनता की परवाह नही है। वो तो बस अपनी आलोचनाओं को दबाना चाहती है। वैसे लोग कह रहे है कि ये कांग्रेसी सरकारों की पुरानी फितरत रही है। जो भी इन भ्रश्ट सरकारों के खिलाफ बोले उसे दबाया जाये। कौन भूल सकता है इमर्जेंसी के वक्त को। कैसे मीडिया और देषभक्तों को जेल में डाल दिया गया था। उस वक्त भी देष की जनता और मीडिया ऐसे ही सरकारी कारनामों के खिलाफ उठ खड़ी हुई थी। आज भी देष में चारों ओर ऐसा ही दिख रहा है। ऐसे में सरकार के पास ही एक रास्ता दिखता है और वो है मीडिया पर आक्रामक होना। जब कोर्ट भी मीडिया पर षर्तें लगाने से मना करता है तो ऐसे में सरकार क्यों मीडिया पर षर्तें थोपने की बातें करती है। ऐसे में खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्यों सरकार मीडिया को नसीहत देती रहती है।

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