जिंदगी तो अपने ही दम पर जी जाती है,,,,दूसरो के कंधे पर तो जनाजे उठा करते है,,,,ये नारा तो आपने सुना ही होगा। भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे प्रसिद्ध षहीदों में से एक माना जाता है।इसलिए उनका नाम षहीद भगत सिंह के रूप में जाना जाता है। भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों का जीवन हमारे लिए एक मिसाल है। भगत सिंह जैसे देशभक्त क्रान्तिकारीयों ने कुरबानी सिर्फ भारत कि आजादी के लिए ही नहीं दी बलकि भारत को विश्व के शिखर तक ले जाने के लिए भी दी है। क्रान्तिकारीयों को कभी गुलामी पसंद नहीं थी उन का संघर्ष उन शक्तियों के विरोध में था जो मनुश्यों को गुलाम बना कर उन पर जुल्म करती है। भगत सिंह जैसे महान क्रान्तिकारीयों कि वजह से आज हम आजादी कि सांस ले रहे है वरना आज भी हम एक गुलाम का जीवन बिता रहे होते। इस लिए सभी क्रान्तिकारीयों का हम पर एक एहसान है जो तभी उतर सकता है जब हम उनके बताए कदमों पर चलेंगे। देश को आजादी दिलाने में सरदार भगत सिंह का बहुत ही अहम योगदान है । भगत सिंह में जो देश प्रेम का जज्बा था वो बहुत कम देखने को मिलता है।
भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ी मिसाल है। इन्होंने सेण्ट्रल असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसका परिणाम ये रहा कि 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को इनके दो साथियों, राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। पूरे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। भगत सिंह के जीवन ने कई हिन्दी फिल्मों के चरित्रों को प्रेरित किया है। कुछ फिल्में तो उनके नाम से बनाई गई जैसे - द लीजेंड ऑफ भगत सिंह। मनोज कुमार की सन् 1965 में बनी फिल्म शहीद भगत सिंह के जीवन पर बनायीं गयी है। और यह अब तक की सर्वश्रेष्ठ प्रामाणिक फिल्म मानी जाती है। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह एक ऐसे सिख परिवार के बेटे थे, जिन्होंने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। अमृतसर में 13 अप्रैल, 1818 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।
भगत सिंह जलियाबाग हत्या कांड से प्रेरित होकर क्रांतिकारी बने। महज 24 साल की आयु में भगत सिंह ने हसंते - हसंते फांसी के फंदे को चूम लिया था। 23 मार्च 1931 भगत सिंह की शहादत का दिन कोई कैसे भूल सकता है। भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1926 लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में भगत सिंह का साथ महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने दिया था। आज भगत सिंह नहीं है लेकिन वो हर भारतीय के जेहन में अभी भी जिंदा है क्योंकि आज हम भारतीय भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों की वजह से आजाद हैं। देश की विडंबना ये है कि हम इन सच्चे देश भक्तों को कभी-कभार ही याद करते हैं। हम ये भूल जाते है कि आज हम इन्ही महान क्रांतिकारियों की बदौलत ही आजाद हैं । देश के इन सपूतों के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता । आजादी को 60 साल और भगत सिंह की षहादत को लगभग 76 साल होने को आए लेकिन आज भी अगर हम उनके विचारों को सुने तो वो हमें ताजगी से भर देते हैं।
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