आज के बदलते दौर में सब कुछ बदल गया है। इस बदलाव के दौर में लोग पैसा कमाने के लिए जिन विज्ञापनो का सहारा ले रहे है, क्या ये विज्ञापन सचमुच अपने मकसद को पुरा कर है, या फिर इन विज्ञापनो के आड़ में देह व्यापार से लेकर कामुक्ता तक को बढ़ावा देने के लिए ये सब प्रयोग किये जा रहे है। ये अपने आप में वाकई एक बड़ा सवाल है। लेकिन आज जिसगती से ये सब कुछ हो रहा है इसका समाज के उपर कितना ज्यादा प्रभाव पड़ता है सायद इन विज्ञापन दाताओ को मालुम नही होगा। हमारा देष सदियों से ही विष्वगुरू रहा है। जो दुनिया को सही रास्ते पर चलना सिखाता है, मगर आज एक षिक्षित समाज के अंदर जब इस प्रकार के भ्रामक विज्ञापन अपना प्रभाव दिखाने लगे तो, सायद एक बार फिर हम सब को सोचना होगा की आखिर हम आज किस रास्ते पर जा रहे है। चाहे बात अखबार का हो या फिर टेलिविजन का हर जगर ऐसे अष्लील विज्ञापनो का चमक अपना दुषित प्रभाव छोड़ रहा है। लेकिन सबसे अहम बात ये है की ऐसे विज्ञपानो को रोकने के लिए देष में कानून होने के वावजुद इसके उपर रोक नही लग पा रहा है। हमारे देष में जिस पीछड़े वर्ग को समाज के मुख्य धारा में लाने की बात होती है, आज वही लोग इस तरह के विज्ञापनो से होने वाले दुस्प्रचार के षिकार हो रहे है। तो सवाल यहा भी खड़ा होता है की आखिर इसके लिए जिम्मदेर कौन है ? टीवी चैनल तो हद तक इस तरह के असलिल विज्ञापनो के लिए एक गाईडलाईन के तहद इसे रात में दिखाते है, मगर अखबारो में तो ऐसे विज्ञापन इस कदर छाए रहते है की जैसे ये विज्ञापन ही समाचार हो। मसाज कराने से लेकर जपानी तेल के नाम पर विज्ञाप हो, या फिर सैक्स समस्या को दुर करने वाली कोई उत्पाद कही न कही ये सब कुछ उस आम उपभोक्ता को प्रभावित कारता है जो इनके हकीकतो से कोसो दुर है। इन विज्ञापनो के आड़ में आज देह व्यापार का धंधा भी काफी ज्यादा फल-फुल रहा है। इसके फिछे भी देष विदेष के नेटर्वक काम कर रहे है। जो गलत विज्ञापन देकर पहले उन्हे फंसाते है और बाद में उस गिरोह का हिस्सा बनने को मजबुर करते है जहा कि दलदल से निकलना काफी मुष्किल होता है। ऐसे विज्ञापनो के जाल में सबसे ज्यादा स्कुल के वह गरिब बच्चें सिकार होते है जो कम समय में पैसा कमाना चाहते है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या ऐसे विज्ञापनो के उपर प्रतिबंध लगना चाहिए ?
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