15 September 2012

रिटेल में एफडीआइ को अनुमति देना कितना सही ?

भश्टाचार और नाकामियों से घिरी सरकार ने लोगों को भटकाने के लिए फिर एक दाव चल दिया है। सरकार ने बिना आम सहमति के रिटेल में एफडीआइ को अनुमति दे दी है। दिसंबर 2011 में सरकार ने भारी दवाब की वजह से इसे टाल दिया था। लेकिन बिना आम सहमति के सरकार ने विदेषी कंपनियों को देष में अपना माल बेचने की अनुमति दे दी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकार इन विदेषी कंपनियों को देष में लाकर क्या दिखाना चाहती है। जब इसकी तह तक जाते हैं तो कई सवाल सामने आते है। क्या सरकार मंहगाई और भ्रश्टाचार से जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा कर रही है। या फिर विदेषी मीडिया में प्रधानमंत्री की आलोचना की वजह से ऐसा कर रही है। या फिर अमरिका जैसे देषों के दवाब में सरकार ऐसा कदम उठाने पर मजबूर हुई है। ऐसे और भी कई सवाल हमारे सामने हैं जो सरकार की मजबूरी और घमंड को दर्षाते है। ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार को देष के किसानों और छोटे किराना व्यापारियों की बिल्कुल भी परवाह नही है। क्या सरकार किसानों को विदेषी हाथों में बेचना चाहती है। क्या सरकार 5 करोड़ किराना व्यापारियों को बेरोजगार करना चाहती है। क्या सरकार किसानों के माल को ओने-पोने दामों में विदेषी कंपनियों के हाथों में देना चाहती है। जी हां लगता तो ऐसा ही है। सरकार का ये कदम देष में बेरोजगारों की फौज खड़ा करने के लिए उठाया गया लगता है। आज हर ओर सरकार के इस कदम की आलोचना हो रही है। क्या विपक्ष और क्या सहयोगी दल सभी सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। मगर सरकार और प्रधानमंत्री बिना किसी परवाह के भारतीय बाजार को विदेषी हाथों को सौंपना चाहते है्र। अपने इस कदम को जायज ठहराने के लिए सरकार नये-नये तर्क दे रही हैं। सरकार कह रही है कि इससे बेरोजगारी घटेगी। मंहगाई पर अंकुष लगेगा। लेकिन लोग कह रहे है कि जब देष के व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे तो रोजगार कहां मिलेगा। इन बेरोजगारों की फौज कहां जायेगी। क्या किसानों को उनके उत्पादों का वाजिव दाम मिल पायेगा। लोग कह रहे हैं जब सरकार अभी किसानों को वाजिब दाम नही दिलवा पा रही तो विदेषी कैसे दे देंगे किसानों के उत्पादों का वाजिव दाम। ऐसे में सवाल उठ रहा है जब देष में विदेषी कंपनियों के आने से देष को इतना बड़ा नुकसान होगा तो फिर क्यों हमारें मौन अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री एफडीआई को अनुमति दे रहे हैं। अब ये तो हमारे अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री ही जाने या उनका अर्थषास्त्र लेकिन देष में हर ओर विरोध की लहर उमड़ रही है। जनता एफडीआई के विरोध में घरों से निकल आयी है। ऐसे में सरकार को फिर से अपने इस कदम के बारे में सोचना चाहिए। नही तो विरोध की लहर और बढ़ जायेगी।

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