16 September 2012

क्या प्रफुल पटेल को बचाया जा रहा है ?

आज हम आपके सामने एक ऐसा मुददा लेकर आये हैं, जिस पर ना तो मीडिया में ही ज्यादा बात हुईं और ना आम लोगों को ही इसका पता चल पाया। क्योंकि जहां सरकार भी इसे छूपाने में लगी रही, वहीं मीडिया भी कोयला घोटालों और एफडीआई में खोई रही। ऐसे में सरकार भी अपने चहेते मंत्री को बचाने कामयाब रही। जी हां लगता तो ऐसा ही है, एयर इंडिया घोटाले की ओर किसी का भी ज्यादा ध्यान नही गया। आज एयर इंडिया महाराजा से भिखारी बन गई। मंत्रियों के चहेते और रिष्तेदार मलाई लूटते रहे। पूर्व उडडयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने एयर इंडिया का भटटा बैठा दिया। मंत्री के परिवार और रिष्तेदारों को लाने ले जाने के लिए एयर इंडिया के स्पेषल विमान लगाये गये। आम यात्री या तो एयरपोर्ट पर पड़े रहे, या फिर प्राईवेट और महंगी एयरलाइन्सों में जाने को मजबूर हुए। क्योंकि उडडयन मंत्रालय ने, प्राईवेट कंपनियों को फायदा पहुचाने के लिए, मुख्य एयर रास्तों पर एयर इंडिया की उड़ानें रदद करवा दीं। ये बात हम नही कह रहे, ये बात कही है एक पत्र के जरिए पूर्व एआई प्रमुख संजीव अरोड़ा ने। जी हां पूर्व एआइ प्रमुख ने 2005 में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को चिटठी लिखकर प्रफुल्ल पटेल के कारनामों का खुलासा किया था। अरोड़ा ने कहा, कि पटेल ने एआइ की वित्तिय हालत खाराब करने के लिए उन्हें, और एआई बोर्ड को मजबूर किया। ये चिटठी सामने आने के बाद लोक सभा में विपक्ष के दो सांसदों ने सीवीसी से आरोपों की जांच करने की सिफारिष भी की थी। मगर सरकार ने इन सांसदों की सिफारिष पर ध्यान तक नही दिया। इस चिटठी में प्रमुख आरोप हैं, कि इंडियन एयर लाइंस को फायदे वाले रूटों पर जाने से रोका गया। जरूरत से ज्यादा जेट विमान खरीदे गये। और साथ ही जेट निर्मात कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया। ये सब बोर्ड मीटिंग के बहाने किया गया। एआइ की बोर्ड मीटिंग से पहले ही फैसला कर लिया जाता था। इसके बाद फोन पर मौखिक रूप से प्रबंधन को आदेष दिया जाता था। जब एयर इंडिया प्रमुख लिखित में मंत्री के काले कारनामों का चिटठा सौपता है, तो फिर क्यों नही इनकी जांच की जाती। क्यों नही भ्रश्ट मंत्री को हटाया जाता। क्या सरकार ईमानदार अधिकारियों को ऐसे ही ठेंगा दिखाती रहेगी। जी हां लगता तो ऐसा ही है। बात यही तक नही रूकती। कैग भी एयर इंडिया के घोटाले का खुलासा करता है। सरकार उस पर भी कोई ध्यान नही देती। कैग की रिर्पोट से पता चलता है कि, अगर सरकार और उसके मंत्री चाहें तो किसी भी हद तक जाकर नियम कायदों का मखौल बना सकते हैं। जी हां दिल्ली के इंटरनेषनल एयरपोर्ट का निर्माण इसकी एक बानगी है। 2010 में कमनवेल्थ खेलों से पहले दिल्ली में टी3 टर्मिनल का निर्माण कराया। टर्मिनल की आड़ में सरकार ने जीएमआर ग्रुप की कंपनी डायल को अंधाधुंध सौगातें बांटी, उसकी मिषाल मिलना मुष्किल है। डायल को ना केवल कौडि़यों के भाव जमीन दी, बल्कि नियमों का हेर फेर करके 30 के बजाय 60 साल तक एयरपोर्ट चलाने का ठेका भी दे दिया। डायल को 4608.9 एकड़ जमीन केवल 100 रूपये के लीज रेट पर दे दी गई। इतना ही नही उसे नाजायज तरीके से एयरपोर्ट विकास षुल्क वसूलने का अधिकार भी दे दिया। इससे कंपनी ने करोड़ों की गाड़ी कमाई की। इतना बड़ा घोटाला सामने आ गया मगर सरकार चुप्पी साधे रही। ना कोई जांच ना कोई बयान। यहीं है आज सरकारी भ्रश्टाचारों की हकीकत। तो फिर आईए, उठ खड़े होइए हमारे साथ। और कीजिए भ्रश्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद।

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