01 June 2013

क्या सट्टेबाजी को बैध करना सही है ?

अगर खेल मंत्रालय की मंशा पूरी हुई तो जल्दी ही देश में सट्टेबाजी वैध हो जाएगी। मंत्रालय का मानना है कि मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए ये सबसे अच्छा तरीका है। ऐसा करने से 30 खरब रुपये का कारोबार सरकारी नियंत्रण में आ जाएगा। मंत्रालय के अनुसार, घुड़दौड़ की तरह कई अन्य खेलों में भी सट्टेबाजी को मंजूरी दी जा सकती है। फिक्की के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक सरकार सट्टेबाजी से सालाना 20 हजार करोड़ रुपये तक की कमाई कर सकती है। कानून मंत्रालय ने मैच फिक्सिंग जैसी गतिविधियां रोकने के लिए प्रस्तावित नए कानून का एक मसौदा तैयार किया है। तो वही दुसरी ओर केंद्रीय नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने भी सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि क्रिकेट में सट्टेबाजी को वैध बना दिया जाना चाहिए। ऐसे में ये प्रश्न उभरकर सामने आता है कि “क्या क्रिकेट में सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दिया जाना सही होगा?


मगर कुछ समय पूर्व सट्टेबाजों का एक और गोरखधंधा था “लॉटरी” लोग झट से पैसा कमाने की चाह में कई-कई हजार रुपये की लॉटरी खरीदते थे। कुछ अमीर भी बनते थे लेकिन ज्यादातर के हाथों ठेंगा लगता था। कई राज्य की सरकारों ने इसे कुछ मानकों के अनुरूप कानूनी मान्यता दी मगर जब ये धंधा गैरकानूनी कार्य बन गया तो आखिर में सरकार को इसे बंद करना पड़ा। क्या अब केन्द्र सरकार उसी को एक बार फिर से अब क्रिकेट में दोहराना चाहती है। सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने से कुछ ऐसे समूह सामने आ सकते हैं जो कानून की आड़ में गैरकानूनी कार्य करेंगें, तो क्या सरकार पैसे के लिए गैरकानूनी कार्य को बढ़ावा देना चाहती है।

आज देश में सिर्फ क्रिकेट ही नहीं सट्टेबाजों के हवाले शेयर बाजार, से लेकर बालीवुड और देशी-विदेशी पूंजीपतीयों के पक्ष में अर्थनीति ‘फिक्स’ की जा रही है। यहा तक कि कारपोरेट समूह के पक्ष में नीतियां ‘फिक्स’ की जा रही हैं। साथ ही कोर्ट के फैसले भी ‘फिक्स’ करवाने के दावे किये जा रहे हैं। तो सवाल एक बार फिर से यहा खड़ा होता है कि क्या सरकार आने वाले समय में इसे भी कानूनी मान्यता देगी? लाबीइंग के इस दौर में मंत्रिमंडल से लेकर नौकरशाही तक में अपने अनुकूल नेताओं और अफसरों को ‘फिक्स’ करवाया जा रहा। याद कीजिए, नीरा राडिया टेप्स को जिसमें नेता, उद्योगपति, अफसर और संपादक किस तरह, मंत्री से लेकर कोर्ट और नीतिगत फैसले तक को अपने मुताबिक ‘फिक्स’ करवाते सुनाई दे रहे है। साथ ही खुद केन्द्र सरकार भी फिक्सींग की आंच से अपने आप को दुर नहीं रख पाई और कोयला खदानों से लेकर हाईवे और एयरपोर्ट के ठेकों के आवंटन को भी उन्होने फिक्स कर डाला।

पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था ही कैसिनो अर्थतंत्र में बदल दी गई है जहाँ पैसे से पैसा बनानेवाले सट्टेबाज ही नीतियां और फैसले तय कर रहे है, और सरकार के लिए आज के दौर में लाबीइंग और फिक्सिंग अपवाद नहीं रह गए हैं, बल्कि नियम बन गए हैं। आज आई.पी.एल कालेधन को खपाने और सट्टेबाजी के एक संगठित अंडरवर्ल्ड को एक लोकप्रिय प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के इसे कानूनी मान्यता दिलाने के लिए लाबीइंग हो रही है। और यही प्लेटफार्म आने वाले समय में आतंकवाद के लिए आगे का रास्ता और सरल करेगा। जहा देश सट्टेबाजों के चंगुल में होगा और सरकार सटोरियों की पैरोकार बन कर रह जाएगी। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की सट्टेबाजी को बैध करना सही है ?

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