उत्तराखंड में आए महाप्रलय ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कोई भूख से तड़प रहा है तो कोई अपनों के तलाश में उत्तराखंड के जंगल और पहाणों में बदहवास इधर उधर भटक रहा है। एैसे में इन लोगों को खाने पीने की सामग्री और मेडीकल सुविधाओं की खास जरूरत है। अब भी कई ऐसे जगह है जहां पर हेलीकाप्टर लैंड नहीं कर सकता, एैसे में इन लोगों को स्मोक के सहारे खाने के पैकेट भेजने की जरूरत है। अगले 24 घंटे में वहा बारिश भी होने वाली है एैसे में राहत और बचाव कार्य में बाधा आ सकती है। देवभूमि पर हुए इस महाविनाश के कारण को देश का हर बच्चा बच्चा जानता है की ये प्रलय कितना बड़ा है, एैसे समाज के हर एक तबके को आगे आकर मदत करने की जरूरत है, मानवता के लिए आज इस देवभूमी के लिए ये सबसे बड़ा धर्म होगा।
2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ आई थी तब हमारे प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को अपनी तरफ से मदद की पेशकश की थी। पाकिस्तान को मदत के नाम पर 5 मिलियन डॉलर दे दिए गए। वही मई 2013 में प्रणब मुखर्जी ने अफगानिस्तान को 2 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता राशि की घोषणा की वो भी सिर्फ सड़क बिजली और मेडिकल के लिए। ऐसे सवाल खड़ा होता है की पड़ोसी से उदारता दिखाने वाले आज अपनों के दर्द में बेरूखी क्यों दिखा रहे है। ऐसे में आज हर हिन्दुस्तानी को जरूरत इस बात को लेकर है की वे आगे आए और दिल खोल कर इस त्रासदी में मदत करें। अगर अभी समय रहते इन लोगों को राहत नहीं दी गई तो हमेशा के लिए ये अपनों से जूदा हो जाऐंगे।
भूख और प्यास से तड़प रहे लोग आज सरकार से सिर्फ एक ही सवाल पूछ रहे है की अगर आप उनको राहत नही दे सकते तो उन्हें तड़प तड़प कर क्यों मरने पर मजबूर कर रहे हो ? एक बम गिराकर उन्हें आराम से मौत दे दो। एैसे में गैर शासकीय संगठन के माध्यम से उन भूखे लोगों तक मदत की सख्त दरकार है, जहा जन भागीदारी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
आज हमारे देश में 100 करोड़ का दान लोग रोज भिकारियों को दे दिया करते हैं। एैसे इस बिकट दुःख की घड़ी में एैसे लोगों को अपना हाथ बढ़ाने की जरूरत है। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गए हैं और 50 हजार से अधिक लोगों का कोई अता पता नहीं है। जबकी 60 हजार लोग जि़दगी और मौत से जूझ रहे है। तो एैसे में सवाल आज जनसरोकार से जूड़ा है की इस आपदा में आप क्या मदत करेंगें ?
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