9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह व राणी जीवत कंवर के घर में जन्में महाराणा प्रताप बचपन से ही बुद्विमान, ज्ञानवान व वीर थे। उन्हें मेवाड-मुकुट मणि के नाम से भी पुकारा जाता था। धर्म और स्वाधीनता के लिए उन्होंने ज्योतिर्मय बलिदान किया। वह विषव में सदा परतंत्रता और अधर्म के विरूद् संग्राम करने वाले मानधनी, गौरवषील लोगों के लिए मशाल सिद्व हुए। उस युग में भी उन्होंने सच्ची राश्ट्रीयता को कायम किया। धर्म के संबंध में भी अपने दीन ए इलाही के द्वारा हिन्दू धर्म की श्रद्वा को बरकरार रखा। हिंदुत्व और उसी उज्जवल ध्वजा को गर्वपूर्वक उठाने वाला एक ही अमर सेनानी महाराणा प्रताप थे। महाराणा प्रताप का नाम आते ही हल्दीघाटी के युद्व की यादें ताजा हो जाती है। राजपूताने की पावन भूमि के बराबर विष्व में इतना पवित्र बलिदान स्थल कोई नहीं।
हल्दीघाटी का युद्व अरावली की घाटियों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह और दिल्ली के सम्राट अकबर की शाही सेना के बीच 18 जून 1576 को हुथा था। अकबर ने मेवाड पर आक्रमण कर चित्तौड को घेर लिया था। महाराणा प्रताप ने साहस और वीरता के साथ युद्व लडा।युद्व के दौरान भीलों का अपने देश और नरेश के लिए वह अमर बलिदान राजपूत वीरों की वह तेजस्विता और महाराणा की पराक्रम इतिहास में अंकित है। मेवाड के पवित्र रक्त ने हल्दीघाटी का कण कण लाल कर दिया। उस शौर्य एवं तेज की भव्य गाथा से इतिहास रंगा हुआ। महाराणा प्रताप युद्व के बाद चित्तौड छोडकर बनवासी हो गए। जन्मभूमि की रक्षा के लिए भोग विलास को त्याग दिया और पूरा परिवार घास की रोटियां, पर्वतीय कंदमूल फल पर ही जीवन व्यतीत करने लगा। अपने 24 वर्शों के षासन काल में उन्होंने मेवाड की केसरिया पताका सदा उॅची रखी।
महाराणा प्रताप के जीवन काल में अगर वफादारी की बात करें तो पराक्रमी चेतक के जिक्र को छोडा नहीं जा सकता। महाराणा का सबसे प्रिय घोडा चेतक था। आज भी चेतक वफादारी का प्रतीक है। 29 जनवरी 1597 को महानायक, कुशल प्रशासन व वीरता के इस परिचायक को मौत ने अपने आगोश में ले लिया। लेकिन जाते जाते भी वह अपने राज्य की सुरक्षा के विशय में ही चिंतित नजर आए। इतिहास में लिखे तथ्यों के अनुसार। एक साधारण कुटी में लेटे हुए प्रताप ने अपने विष्वासपात्रों से उनके जीवित रहने तक राज्य को तुर्को से बचाने का बचना लिया। विष्वासपात्रों ने जब उनको मातृभूमि की रक्षा देने का वचन दिया। यह सुनकर ही उन्होंने प्राण त्याग दिए।
इस प्रकार एक ऐसे राजपूत के जीवन का अंत हो गया। जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक व्यक्ति को प्रेरित करती है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा। हमेषा महाराणा प्रताप को याद किया जाएगा।
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