परिवार में युवा पुरुष सदस्य परिवार की आय का स्रोत होता है, जिसके
द्वारा अर्जित धन से वह अपने बीबी बच्चों के साथ साथ अक्सर घर के
बुजुर्गों के भरण पोषण एवं देख भाल की जिम्मेदारी भी उठाता है. इसलिए
बुजुर्गों के प्रति उसका नजरिया महत्वपूर्ण होता है, की वह अपने बुजुर्गों
के प्रति क्या विचार रखता है? उन्हें कितना सम्मान देना चाहता है,वह अपने
बीबी बच्चों और बुजुर्गों को कितना समय दे पाने में समर्थ है, और क्यों?
वह अपने परिवार के प्रति, समाज के प्रति क्या नजरिया रखता है ?वह नए ज़माने
को किस नजरिये से देख रहा है?क्योंकि वर्तमान बुजुर्ग जब युवा थे उस समय
और आज की जीवन शैली और सोच में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ चुका है. आज का युवा अपने बचपन से ही दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित है.उसे बचपन से
ही कलर टी.वी.मोबाइल ,कार, स्कूटर,कंप्यूटर, फ्रिज जैसी सुविधाओं को देखा
है, जाना है.जिसकी कल्पना भी आज का बुजुर्ग अपने बचपन में नहीं कर सकता
था.जो कुछ सुविधाएँ उस समय थी भी तो उन्हें मात्र एक प्रतिशत धनवान लोग ही
जुटा पाते थे.
आज इन सभी आधुनिक सुविधाओं को जुटाना प्रत्येक युवा के लिए
गरिमा का प्रश्न बन चुका है.प्रत्येक युवा का स्वप्न होता है की, वह अपने
जीवन में सभी सुख सुविधाओं से सुसज्जित शानदार भवन का मालिक हो. प्रत्येक
युवा की इस महत्वाकांक्षा के कारण ही प्रत्येक क्षेत्र में गलाकाट
प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हुई है.अब वह चाहे शिक्षा पाने के लिए स्कूल या
कालेज में प्रवेश का प्रश्न हो या नौकरी पाने के लिए मारामारी हो. रोजगार
पाने के लिए व्यापार ,व्यवसाय की प्रतिस्पर्द्धा हो या अपने रोजगार को
उच्चतम शिखर पर ले जाने की होड़ हो या फिर अपनी नौकरी में उन्नति पाने के
अवसरों की चुनौती हो .प्रत्येक युवा की आकांक्षा उसकी शैक्षिक योग्यता एवं
रोजगार में सफलता पर निर्भर करती है यह संभव नहीं है की प्रत्येक युवा
सफलता के शीर्ष को प्राप्त कर सके परन्तु यदि युवा ने अपने विद्यार्थी जीवन
में भले ही मध्यम स्तर तक सफलता पाई हो परन्तु चरित्र को विचलित होने से
बचा लिया है, तो अवश्य ही दुनिया की अधिकतम सुविधाएँ प्राप्त करने में
सक्षम हो सकता है,चाहे वे उच्चतम गुणवत्ता वाली न हों.और वह एक सम्मान
पूर्वक जीवन जी पाता है.
सफलता,असफलता प्राप्त करने में ,या चरित्र का निर्माण करने में अभिभावक और माता पिता के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता.यदि सफलता का श्रेय माता पिता को मिलता है तो उसके चारित्रिक पतन या उसके व्यक्तित्व विकास के अवरुद्ध होने के लिए भी माता पिता की लापरवाही , उचित मार्गदर्शन दे पाने की क्षमता का अभाव जिम्मेदार होती है.जबकि युवा वर्ग कुछ भिन्न प्रकार से अपनी सोच रखता है.वह सफलता का श्रेय सिर्फ अपनी मेहनत और लगन को देता है और असफलता के लिए बुजुर्गो को दोषी ठहराता है. आज के युवा के लिए बुजुर्ग व्यक्ति घर में विद्यमान मूर्ती की भांति होता है, जिसे सिर्फ दो वक्त की रोटी,कपडा और दवा दारू की आवश्यकता होती है.
उसके
नजरिये के अनुसार बुजुर्ग लोग अपना जीवन जी चुके हैं.उनकी इच्छाएं,
भावनाएं, आवश्यकताएं सीमित हो गयी हैं. उन्हें सिर्फ मौत की प्रतीक्षा है.
अब हमारी जीने की बारी है.जबकि वर्तमान का बुजुर्ग एक अर्धशतक वर्ष पहले
के मुकाबले अधिक शिक्षित है.,स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर है,और मानसिक
स्तर भी अधिक अनुभव के कारण अपेक्षाकृत ऊंचा है.(अधिक पढ़े लिखे व्यक्ति का
अनुभव भी अधिक समृद्ध होता है) अतः वह अपने जीवन के अंतिम प्रहार को
प्रतिष्ठा से जीने की लालसा रखता है,वह वृद्धावस्था को अपने जीवन की दूसरी
पारी के रूप में देखता है, जिसमे उस पर कोई जिम्मदारियों का बोझ नहीं होता.
और अपने शौक पूरे करने के अवसर के रूप में देखना चाहता है.वह निष्क्रिय न
बैठ कर अपनी मन पसंद के कार्य को करने की इच्छा रखता है,चाहे उससे आमदनी हो
या न हो.
यद्यपि हमारे देश में रोजगार की समस्या होने के कारण युवाओं के
लिए रोजगार का अभाव बना रहता है,एक बुजुर्ग के लिए रोजगार के अवसर तो न के
बराबर ही रहते हैं.और अधिकतर बुजुर्ग समाज के लिए बोझ बन जाते हैं.उनके
ज्ञान,और अनुभव का लाभ देश को नहीं मिल पाता. कभी कभी उनकी
इच्छाएं,आकांक्षाएं, अवसाद का रूप भी ले लेती हैं.क्योंकि पराधीन हो कर
रहना या निष्क्रिय बन कर जीना उनके लिए परेशानी का कारण बनता है. आज का युवा अपने बुजुर्ग के तानाशाही व्यक्तित्व के आगे झुक नहीं
सकता.सिर्फ बुजुर्ग होने के कारण उसकी अतार्किक बातों को स्वीकार कर लेना
उसके लिए असहनीय होता है.परन्तु यह बात बुजुर्गों के लिए कष्ट साध्य होती
है.क्योंकि उन्होंने अपने बुजुर्गों को शर्तों के आधार पर सम्मान नहीं दिया
था,और न ही उनकी बातों को तर्क की कसौटी पर तौलने का प्रयास किया था.उनके
द्वारा बताई गयी परम्पराओं को निभाने में कभी आनाकानी नहीं की थी.उन्हें आज
की पीढ़ी का व्यव्हार उद्दंडता प्रतीत होता है.समाज में आ रहे बदलाव
उन्हें विचलित करते हैं.
क्या सोचता है आपका पुत्र, क्या चाहता है आपका पुत्र, वह और उसका परिवार आपसे क्या अपेक्षाएं रखता है?इन सभी बातों पर प्रत्येक बुजुर्ग को ध्यान देना आवश्यक है.आज के भौतिकवादी युग में यह संभव नहीं है की अपने पुत्र को आप उसके कर्तव्यों की लिस्ट थमाते रहें और आप निष्क्रिय होकर उसका लाभ उठाते रहें.आपका पुत्र भी चाहता है आप उसे घरेलु वस्तुओं की खरीदारी में यथा संभव मदद करें,उसके बच्चों को प्यार दुलार दें, उनके साथ खेल कर उनका मनोरंजन भी करें,बच्चों को स्कूल से लाने और ले जाने में सहायक सिद्ध हों,बच्चों के दुःख तकलीफ में आवश्यक भागीदार बने, बुजुर्ग महिलाएं गृह कार्यों और रसोई के कार्यों में यथा संभव हाथ बंटाएं,बच्चों को पढाने में योग्यतानुसार सहायता करें,परिवार पर विपत्ति के समय उचित सलाह मशवरा देकर लौह स्तंभ की भांति साबित हों.
बच्चों अर्थात युवा संतान द्वारा उपरोक्त
अपेक्षाएं करना कुछ गलत भी नहीं है, उनकी अपेक्षाओं पर खरा साबित होने पर
परिवार में बुजुर्ग का सम्मान बढ़ जाता है, परिवार में उसकी उपस्थिति
उपयोगी लगती है.साथ ही बुजुर्ग को इस प्रकार के कार्य करके उसे खाली समय की
पीड़ा से मुक्ति मिलती है,उसे आत्मसंतोष मिलता है, वह आत्मसम्मान से ओत
प्रोत रहता है.उसे स्वयं को परिवार पर बोझ होने का बोध नहीं होता.
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