केदारनाथए बद्रीनाथए हेमकुंड साहेब और आसपास के सभी पहाड़ी इलाकों के रहनुमाओं और पर्यटकों ने पिछले दिनों जो मंजर देखा और जिन हालातों का सामना किया वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है। जहां एक ओर प्राकृतिक आपदा के चलते हजारों सैलानियों और तीर्थयात्रियों ने अपनी जान गंवाई वहीं आज भी बहुत से लोग मदद के इंतजार में भूखों मरने के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहींए बहुत से लोग तो यह भी नहीं समझ पा रहे कि जिन अपनों की वे तलाश कर रहे हैं वह वाकई जिन्दा हैं भी या नहीं जहां कुछ बुद्धिजीवी पहाड़ खिसकने और ग्लेशियर के पिघलने से पहाड़ी इलाकों पर आई इस आपदा को प्राकृतिक आपदा मानने से इंकार कर इन हालातों के लिए उस विकास के तरीके को दोषी ठहरा रहे हैं जिसे मानव ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अपनाया है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका यह मानना है कि अगर विकास करना है तो थोड़ी बाधाएं तो पार करनी ही होंगी।
पहाड़ी इलाकों पर हुई इस दुर्गति और मानव विकास की राह से जुड़े इस मुद्दे पर अलग.अलग विचारधारा वाले लोगों के बीच एक बहस छिड़ गई है कि जिस विकास की राह पर हम चल रहे हैं कहीं वह हमें ही गर्त की खाई में तो नहीं धकेल रहा हैघ् इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में केदारनाथ और बद्रीनाथ में सैलानियों की आवाजाही में लगभग 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई हैए जिसकी वजह से तापमान के साथ.साथ वहां प्रदूषण की मात्रा में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और इसी का खमियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। पहाड़ी संकरे इलाकों में भारी. भरकम वाहनोंए पुलों और इसके अलावा पानी जमा करने के लिए बनाए गए बांध भी आज मानवजाति के ही दुश्मन बन गए हैं। हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन कोई इस बारे में सोचने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है कि जिस प्रगति की राह पर हम चल रहे हैं वह नकारात्मक है या सकारात्मकघ् अगर बड़े पैमाने पर विकास करना है तो कुछ हद तक समझौते भी करने पड़ेंगे।
बांध और पुल आज के दौर की प्रमुख जरूरतों में से एक हैं इसीलिए अगर कोई इनके निर्माण को इस आपदा के लिए दोषी ठहरा रहा है तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि इनके बिना सहज जीवन भी संभव नहीं है। जीवन को आसान बनाने के लिए ही यह सब करना पड़ता है और अगर हम इस मार्ग पर चल रहे हैं तो हमें ऐसी आपदाओं के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इस वर्ग में शामिल लोगों का यह भी कहना है कि प्रतिदिन ऐसा कुछ नहीं होताए कभी.कभार हालात जब हाथ से बाहर निकल जाते हैं तभी ऐसी आपदाएं आती हैं और ऐसी दुर्लभ घटनाओं के विषय में सोचकर अगर हम प्रगति का मार्ग छोड़ दें तो यह किसी भी रूप में हमारे पक्ष में साबित नहीं होता।
पहाड़ी इलाकों पर हुई इस दुर्गति और मानव विकास की राह से जुड़े इस मुद्दे पर अलग.अलग विचारधारा वाले लोगों के बीच एक बहस छिड़ गई है कि जिस विकास की राह पर हम चल रहे हैं कहीं वह हमें ही गर्त की खाई में तो नहीं धकेल रहा हैघ् इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में केदारनाथ और बद्रीनाथ में सैलानियों की आवाजाही में लगभग 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई हैए जिसकी वजह से तापमान के साथ.साथ वहां प्रदूषण की मात्रा में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और इसी का खमियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। पहाड़ी संकरे इलाकों में भारी. भरकम वाहनोंए पुलों और इसके अलावा पानी जमा करने के लिए बनाए गए बांध भी आज मानवजाति के ही दुश्मन बन गए हैं। हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन कोई इस बारे में सोचने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है कि जिस प्रगति की राह पर हम चल रहे हैं वह नकारात्मक है या सकारात्मकघ् अगर बड़े पैमाने पर विकास करना है तो कुछ हद तक समझौते भी करने पड़ेंगे।
बांध और पुल आज के दौर की प्रमुख जरूरतों में से एक हैं इसीलिए अगर कोई इनके निर्माण को इस आपदा के लिए दोषी ठहरा रहा है तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि इनके बिना सहज जीवन भी संभव नहीं है। जीवन को आसान बनाने के लिए ही यह सब करना पड़ता है और अगर हम इस मार्ग पर चल रहे हैं तो हमें ऐसी आपदाओं के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इस वर्ग में शामिल लोगों का यह भी कहना है कि प्रतिदिन ऐसा कुछ नहीं होताए कभी.कभार हालात जब हाथ से बाहर निकल जाते हैं तभी ऐसी आपदाएं आती हैं और ऐसी दुर्लभ घटनाओं के विषय में सोचकर अगर हम प्रगति का मार्ग छोड़ दें तो यह किसी भी रूप में हमारे पक्ष में साबित नहीं होता।
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