उत्तराखंड में बाढ़ से इतनी तबाही हुई है कि इसे देख कर शरीर कांप उठता है। आज यहा के लोग बेरहम बारिश और निरंकुश निर्माण गतिविधियों की वजह से प्रकृति के कोप से हक्के-बक्के हैं। उत्तराखंड में जो तबाही हुई है, वह अकल्पनीय है। नदियां विकराल और निरंकुश होती गईं और जो कुछ भी रास्ते में आया उसे बहा ले गईं। नदियों के बहाव के सामने मानव निर्मित हर ढांचा दुर्बल और असहाय दिखा। नदी की बहाव तो रूक गई मगर तबाही के दो पल ने छोड़ गया है आज लाषों का ढ़ेर जिसे आज उन्हे कोई पहचानने वाला नहीं है।
देश की राजनीति में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर सुरू हो गया है, और आम आदमी रोटी, कपड़ा, पानी और सिर के ऊपर छत के बिना कठिन परिस्थितियों में फंसा हुआ है और ये लोग अपने नंबर बढ़ाने में लगे हुए हैं। आज ये नेता भूल गये है की बदकिस्मती से त्रासदी में फंसे इन दयनीय लोगों के वोटों से ही आपको सत्ता हासिल हुई है और उन्हें फिलहाल आपकी मदद की दरकार है।
वे आपके बनावटी रोष को बर्दाश्त कर लेंगे, बशर्ते मुश्किल में फंसी उनकी जिंदगी के लिए मूलभूत जरूरत की चीजें संवेदनशीलता के साथ मुहैया कराई जाएं। कुछ लोग अपने स्तर से जुटाए संसाधनों से निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं। एैसे में हम सब को आगे आकर मदद करना चाहिए आज यही मानता की पूकार हर ओर से गूंज रही है। देश के शीर्ष नेताओं ने प्रभावित क्षेत्रों के हवाई दौरों की। मगर इन हवाई सर्वेक्षणों से क्या कुछ हासिल हुआ इसका जवाब देश की जनता मांग रही है।
यहा सवाल ये उठ रहा है की सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह खराब दृश्यता के बीच प्रभावित इलाकों के हजारों फीट ऊपर उड़ान भरकर जान सकते हैं कि नीचे क्या हो रहा है? अगर उनके पास तुलना करने के लिए कुछ हो तो अनुमान भले लगा सकते हैं लेकिन वे ऊपर से विचरण करते हुए यह कैसे जानेंगे कि लोग किन मुश्किल परिस्थितियों में फंसे हैं और उनके पास बचाव टीम पहुंची है या नहीं? इन चीजों का सही आकलन जमीनी दौरों से किया जा सकता है। लेकिन, इसके लिए उचित सामग्री और इलाके की सही समझ जरूरी है ताकि वे बचाव टीम को सही जगह पर जल्दी पहुंचने का निर्देश दे सकें।
हजारों लोग दुर्गम जगहों पर फंसे हैं और उन तक हवाई मार्गों से पहुंचा जा सकता हो, तब कितने भी हेलिकॉप्टर कम पड़ते हैं। ऐसे समय प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि लोगों को तुरंत इन जगहों से एयरलिफ्ट के जरिए निकाला जाए और जो लोग थोड़े सुरक्षित स्थानों पर हों उन्हें जीने के लिए जरूरी चीजें तुरंत हवाई जहाजों से मुहैया कराई जाएं। लगातार बारिश के बीच पर्यावरण के लिहाज से कठिन परिस्थितियों में फंसे लोगों के लिए खाना-पीना और कंबल आदि के बिना बचना मुश्किल हो रहा है।
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