रूपये में गिरावट सरकार हमेशा से ही विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के इशारे पर करती है ताकि सरकार को बाहरी कर्ज मिल सकें मगर क्या ये सिर्फ सयोंग है की मार्च 2012 में विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के प्रमुखों ने भारत की यात्रा की उसके बाद से रूपये में 15 प्रतिषत की भारी गिरावट आई है। या फिर उनके इसारे पर ये कदम उठाए गये। इससे पहले विश्व बैंक के कहने पर रूपये में सरकार ने भारी गिरावट की ताकी उसे विष्व बैंक से कर्ज मिल सके। कभी कभी रूपये में गिरावट ,सॉफ्टवेर ,कपड़ा उद्योग ,शेयर बाजार निर्यात करने वाली विदेशी कंपनियां को फायदा पहुंचाने के लिए भी किया जाता है इसके बदले में राजनेताओ को मोटी दलाली मिलती है। तो ऐसे सवाल खड़ा होता है की क्या रूपये में आई ये गिरावट इसी का नतीजा है। आजादी के समय रूपये की कीमत डालर के मुकाबले 1 रूपये थे और अब वो 56 रूपये हो गयी है। क्या ये आकड़े भारतीय बाजारों को दिवालिया होने का संकेत है, जो आज चंद दलालों और आर्थिक सलाहकारों चंगुल में फंस कर रह गया है।
कई कंपनियां और बड़े-बड़े कई उद्योग-व्यापार संस्थान विदेशी व्यापारिक उधारी निपटाने के लिए डॉलर की खरीदी कर रहे हैं। देश के निर्यात घटने से देश की ओर आने वाले डॉलर का प्रवाह घट गया है। देशी निवेशक भी घबराहट में शेयर बाजार से अपना धन निकाल रहे हैं। जिसके कारण लगातार पैसे में गिरावट आ रही है। आर्थिक सुधारों की धीमी गति से आये दिन पैसे में गिरावट आ रही है, जो अब देश में सरकारी आकड़ो की पोल खोल रही है। सरकार हमेशा से ही विकास दर का हवाला देती है, मगर अब इन्ही आकड़ो की जादुगरी ने सरकार की मुष्किलें बढ़ा दी है। साथ ही अब तक कृषि सुधारों में कोई नयापन देखने को नहीं मिला। देश के पास केवल सात माह के आयात के लायक डॉलर होने की खबर आने के बाद से रुपये में जबर्दस्त अस्थिरता शुरु हुई है, क्यों कि अब देशी मुद्रा की ताकत निर्यात या प्रत्यक्ष निवेश पर नहीं बल्कि शेयर बाजार में डॉलरों की आमद-निकासी पर निर्भर है।
आज देश में 50 से अधिक प्रमुख बड़ी कंपनियों के सर पर विदेशी कर्ज लदे हैं, जो अपनी लागत कीमतें बढ़ाकर उपभोक्ताओं के सर पे ठीकरा फोड़ना चाहती है। जिससे उभरते बाजारों के बीच भारतीय मुद्रा सबसे तेजी से गिरी है। डॉलर के 65-70 रुपये तक जाने के आकलन सुनकर आज हर किसी का कलेजा मुंह को आ गया है। ऐसे अब चुनौती इस बात को लेकर है की रुपये की कमजोरी को कैसे रोका जाए। सरकार के पास गिरते रुपये को फिलहाल थामने के लिए कोई उपाय नहीं है ऐसे में बढ़ती बेलगाम महंगाई को रोकना ही एकमात्र विकल्प है। ऐसे में सवाल सरकार को लेकर भी उठ रहे है की आखिर कहा है सरकार की वो आर्थिक नीति जिसमें भारत को आर्थिक शक्ति बनाने की बात की जा रही है। आखिर ये पैसें में गिरावट क्यों आ रही है।
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