भाजपा की नींव उसका आधार कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी की राजनैतिक अस्मिता पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा नरेंद्र मोदी को वर्ष 2014 के लिए चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष घोषित करने पर ऐसा लगने लगा है कि पार्टी के भीतर ही नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच विरोधाभास की आग को हवा मिलने लगी है। इसका स्पष्ट उदाहरण हाल ही में गोवा सम्मेलन में लालकृष्ण आडवाणी के ही उपस्थित ना होने से मिलता है। बहुत से लोगों का तो यह भी कहना है कि सम्मेलन से संबंधित कट.आउट्स में भी पहले लालकृष्ण आडवाणी को शामिल नहीं किया गया था। इस बीच यह चर्चा तेज हो गई है कि पार्टी के भीतर ही नरेंद्र मोदी बनाम लालकृष्ण आडवाणी जैसा माहौल विकसित हो गया है जो उन्हें अपने प्रतिद्वंदी गठबंधनए यूपीए के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देगा क्योंकि भाजपा अंदर ही अंदर नेतृत्व को लेकर प्रतिस्पर्धा से गुजर रही है जबकि कांग्रेस और यूपीए में राहुल गांधी के नेतृत्व को पूर्णत: स्वीकार कर लिया गया है।
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जहां आडवाणी के प्रति पार्टी में हो रहे ऐसे रवैये को पार्टी द्वारा उनके बहिष्कार के रूप में देख रहा है वहीं अन्य इसे नरेंद्र मोदी को पार्टी की ओर से मिशन 2014 के लिए चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी कह रहे हैं। ऐसे में यह बहस तेज हो गई है कि क्या वाकई लालकृष्ण आडवाणी को मिलने वाली प्रमुखता में अब कमी आने लगी है और पार्टी के भीतर ही दो गुट एक.दूसरे से लड़ने के लिए तैयार हैं बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जो यह साफ कहता है कि भाजपा के भीतर चलने वाली तकरार जो अभी तक सिर्फ पर्दे के पीछे का खेल थीए अब खुलकर सामने आने लगी है। पहले बस इसे एक अफवाह माना जाता था लेकिन अब यह हकीकत सभी के सामने है कि भाजपा में दो गुट विभाजित हैं जिनमें से एक गुट नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़ा है तो दूसरा लालकृष्ण आडवाणी को अपना समर्थन दे रहा है।
इस वर्ग में शामिल बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि पार्टी के ऐसे नकारात्मक अंदरूनी हालातों को अगर जल्द से जल्द सुलझाया नहीं गया तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इन्हीं की वजह से चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ेगा। एक सच यह भी है कि भले ही आज नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष का दर्जा दिया जा रहा हो लेकिन पार्टी के भीतर उनकी स्वीकार्यता पर आज भी एक प्रश्नचिह्न ही लगा है। ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच जो समस्याएं उत्पन्न हुई हैं उन्हें जल्द से जल्द सुलझा लिया जाना चाहिए नहीं तो इसी अंतर्कलह की वजह से बिना कुछ खास मेहनत किए ही चुनावी नतीजे यूपीए के हक में चले जाएंगे और भाजपा के पास हाथ मलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा।
वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों का दूसरा वर्ग इस बात पर सहमति नहीं रखता कि भाजपा के अंदर लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी को लेकर दो खेमे बंटे हुए हैं क्योंकि इनका मानना है कि पार्टी के भीतरी हालात नरेंद्र मोदी के पक्ष में हैं। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के वरिष्ठ और सम्माननीय नेता हैं लेकिन अब समय नरेंद्र मोदी का है और जनता उनसे यह अपेक्षा रखती है कि जिस तरह उन्होंने गुजरात को एक वर्ल्ड क्लास मॉडल बनाया है वैसे ही वह पूरे भारत की कमान संभालेंगे।
वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों का दूसरा वर्ग इस बात पर सहमति नहीं रखता कि भाजपा के अंदर लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी को लेकर दो खेमे बंटे हुए हैं क्योंकि इनका मानना है कि पार्टी के भीतरी हालात नरेंद्र मोदी के पक्ष में हैं। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के वरिष्ठ और सम्माननीय नेता हैं लेकिन अब समय नरेंद्र मोदी का है और जनता उनसे यह अपेक्षा रखती है कि जिस तरह उन्होंने गुजरात को एक वर्ल्ड क्लास मॉडल बनाया है वैसे ही वह पूरे भारत की कमान संभालेंगे।
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