देश
की आपदा प्रबंधन संस्था और प्रधान मंत्री एक बार फिर से सवालों के घेरों में है। उतराखण्ड में जो तबाही हुयी है वो किसी पत्थरदिल इंसान को भी हिलाकर रख देगा। मगर सरकार इसे लेकर अब तक उहापोह की स्थिती में है। इसे अब तक राष्ट्रीय आपदा क्यों नहीं घोशित किया गया है? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी उत्तराखंड में हुई इस त्रासदी को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने की मांग की थी। अब तक आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में चलाये जा रहे राहत और बचाव कार्यों नाकाफी साबित हुआ है। जिससे राष्ट्रीय अपदा घोषित घकरने की ये मांग और प्रबल हो जाती है।
अब तक के बचाव और राहत कार्य की हकीकत देखे तो आपदा प्रबंधन विभाग सफेद हाथी ही साबित हुआ है। जिनको हमेशा पाला जाता है और जरुरत के समय ये विभाग त्वरित कारवाई करनें में नाकाम साबित होता है। सेना नें हर आपदा में प्रशंशनीय कार्य किया है और हर छोटी बड़ी आपदा में जब तक सेना काम नहीं संभालती है तब तक लोगों को कोई राहत नही मिलती है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है आखिर इसे बनाया किस लिए गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हमारे देश में आपदा प्रबंधन केंद्र होने के बावजूद आपदा प्रबंधन की कोई ठोस नीति नहीं है।
प्राकृतिक आपदाएं इस देश का सच हैं, जो समय समय पर इस देश को झकझोरती हैं और बतलाती हैं कि इस देश में मानव और प्रकृति के बीच के अन्तर्संबंधो में कमी आई हैं। मगर जब ये आपदायें आती है तो देश में राजनीति सुरू हो जाती है और इसे राष्ट्रीय आपदा घोशित कर राहत देने के बजाय सरकार राज्य और केन्द्र पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर लोगों को मरने के लिए बिवश कर देती है।
कुछ दिन पहले कैग ने आपदा प्रंबधन को लेकर सरकार की तैयारियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए कहा था की देश का प्रंबधन तो दूर की कौड़ी हैं, प्रधानमंत्री आवास के लिए किए गए उपाय भी आपात कालीन स्थितियों में पर्याप्त नहीं हैं। जबकि देश में प्रंबधन देखने वाली संस्था राष्ट्रीय आपदा प्रंबधन प्राधिकरण के अध्यक्ष स्वंम प्रधानमंत्री होते हैं। एैसे ये अनुमान लगाया जा सकता है की सरकार एैसे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कितना गंभिर है। अमूमन राष्ट्रीय आपदा की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। प्रधानमंत्री ने उतराखण्ड का दौरा किया है। मगर अब तक इसे राष्ट्रीय आपदा घोशित करने के बजाय वे हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए है। और लोग भूख और प्यास से तड़प कर अपना प्राण त्याग रहे है।
अब तक के बचाव और राहत कार्य की हकीकत देखे तो आपदा प्रबंधन विभाग सफेद हाथी ही साबित हुआ है। जिनको हमेशा पाला जाता है और जरुरत के समय ये विभाग त्वरित कारवाई करनें में नाकाम साबित होता है। सेना नें हर आपदा में प्रशंशनीय कार्य किया है और हर छोटी बड़ी आपदा में जब तक सेना काम नहीं संभालती है तब तक लोगों को कोई राहत नही मिलती है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है आखिर इसे बनाया किस लिए गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हमारे देश में आपदा प्रबंधन केंद्र होने के बावजूद आपदा प्रबंधन की कोई ठोस नीति नहीं है।
प्राकृतिक आपदाएं इस देश का सच हैं, जो समय समय पर इस देश को झकझोरती हैं और बतलाती हैं कि इस देश में मानव और प्रकृति के बीच के अन्तर्संबंधो में कमी आई हैं। मगर जब ये आपदायें आती है तो देश में राजनीति सुरू हो जाती है और इसे राष्ट्रीय आपदा घोशित कर राहत देने के बजाय सरकार राज्य और केन्द्र पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर लोगों को मरने के लिए बिवश कर देती है।
कुछ दिन पहले कैग ने आपदा प्रंबधन को लेकर सरकार की तैयारियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए कहा था की देश का प्रंबधन तो दूर की कौड़ी हैं, प्रधानमंत्री आवास के लिए किए गए उपाय भी आपात कालीन स्थितियों में पर्याप्त नहीं हैं। जबकि देश में प्रंबधन देखने वाली संस्था राष्ट्रीय आपदा प्रंबधन प्राधिकरण के अध्यक्ष स्वंम प्रधानमंत्री होते हैं। एैसे ये अनुमान लगाया जा सकता है की सरकार एैसे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कितना गंभिर है। अमूमन राष्ट्रीय आपदा की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। प्रधानमंत्री ने उतराखण्ड का दौरा किया है। मगर अब तक इसे राष्ट्रीय आपदा घोशित करने के बजाय वे हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए है। और लोग भूख और प्यास से तड़प कर अपना प्राण त्याग रहे है।
एैसे में सवाल उस राष्ट्रीय आपदा अधिनियम को लेकर खड़े हो रहे है की आखिर इसे बनाया किस लिए गया है। इस अधिनियम के तहत प्रभावितों को कई तरह का मुआवजा केंद्र द्वारा पहुंचाया जाता है। राष्ट्रीय आपदा घोशित करने का पैमाने ये है की एकाएक प्राकृतिक गतिविधियां जिसका सिधा प्रभाव मानव जाति पर नकारात्मक रूप से पड़ता हैं। और भारी जान माल की क्षति होती है। जिनमें बाढ, भूकंप, सूखा, चक्रवाती तूफान से होने वाले क्षती सामिल है। मगर यहा तो हजारों लोगों का कोई अता पता नहीं है। अरबों खराबों की संपती मिट्टी और पानी में खाक हो गई है। लोगों की खेत और घर नदी में बिलीन हो गई है। साथ ही लोगों की आँखें अपनों की तलास में पथरीली हो गई है। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की उतराखंण्ड में हुए इस महाप्रलय को
राष्ट्रीय
आपदा अब तक क्यों नहीं घोशित किया गया है ?
राष्ट्रीय आपदा में दी जाने वाली सहायता
राष्ट्रीय आपदा की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
मुआवजा देने की अधिकतम समय सीमा 45 दिनों की होती है।
शारीरिक रूप से विकलांग हुए लोगों को 35 से 50 हजार रूपए तक की सहायता राशि।
गंभीर चोट खाए लोगों को 2500 से 7500 रूपए की सहायता राशि।
कृषि भूमि में कीचड़ की सफाई के लिए 6000 रूपए प्रति हेक्टेयर की सहायता राशि।
कृषि भूमि में आए कटाव की समस्या के लिए 15000 रूपए प्रति हेक्टेयर की सहायता राशि।
आपदा के दौर में अनाथ बच्चों के लिए प्रतिदिन 15 रूपए और वृद्धों तथा अनाश्रितों को 20 रूपए प्रतिदिन की सहायता राशि।
घरेलू सामान के नुकसान पर प्रति परिवार 1000 रूपए। और इतनी ही राशि कपड़े के नुकसान पर।
प्रभावितों में से प्रत्येक को 8 किलोग्राम गेहूं या 5 किलोग्राम चावल प्रतिदिन के हिसाब से।
टूटे या क्षतिग्रस्त हुए मकानों के लिए 25000 रूपए प्रति मकान के हिसाब से सहायता राशि।
कच्चे मकानों के लिए 10000 हजार रूपए की सहायता राशि।
झोपडि़यों के लिए 2000 रूपए की सहायता राशि।
दुधारू पशुओं के लिए 10000 रूपया प्रति पशु की दर से सहायता राशि।
गैर दुधारू पशुओं के लिए 1000 रूपया प्रति पशु की दर से सहायता राशि।
मुर्गीपालकों को प्रति मुर्गी 30 रूपए की दर से सहायता राशि।
बड़े पशुओं के चारे के लिए प्रति पशु 20 रूपए प्रतिदिन तथा छोटे पशुओं के लिए 10 रूपए प्रतिदिन की दर से सहायता राशि।
मछली पालकों को 2500 से 7500 रूपए तक की सहायता राशि।
आपदा के पूरे दिनों के लिए अकुशल श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी।
भारत में आपदा की कीमत
बाढ़- हर पांच साल में 75 लाख हेक्टेयर जमीन और करीब 1600 जानें जाती है।
तूफान- पिछले 270 वर्षो में भारतीय उप महाद्वीप ने दुनिया में आए 23 सबसे बड़े समुद्री तूफानों में से तूफानों 21 की मार झेली, छह लाख जानें गई।
भूकंप- मुल्क की 59 फीसदी जमीन पर कभी भी भूकंप का खतरा।
पिछले 18 सालों में आए छह बड़े भूकंपों में 24 हजार से ज्यादा लोगों की हुई मौत।
आपदाओं के चलते सालाना पांच हजार करोड़ से ज्यादा की आर्थिक क्षति होती है और इनसे जूझने के लिए आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को दिए जाते हैं महज 65 करोड़।
राष्ट्रीय आपदा में दी जाने वाली सहायता
राष्ट्रीय आपदा की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
मुआवजा देने की अधिकतम समय सीमा 45 दिनों की होती है।
शारीरिक रूप से विकलांग हुए लोगों को 35 से 50 हजार रूपए तक की सहायता राशि।
गंभीर चोट खाए लोगों को 2500 से 7500 रूपए की सहायता राशि।
कृषि भूमि में कीचड़ की सफाई के लिए 6000 रूपए प्रति हेक्टेयर की सहायता राशि।
कृषि भूमि में आए कटाव की समस्या के लिए 15000 रूपए प्रति हेक्टेयर की सहायता राशि।
आपदा के दौर में अनाथ बच्चों के लिए प्रतिदिन 15 रूपए और वृद्धों तथा अनाश्रितों को 20 रूपए प्रतिदिन की सहायता राशि।
घरेलू सामान के नुकसान पर प्रति परिवार 1000 रूपए। और इतनी ही राशि कपड़े के नुकसान पर।
प्रभावितों में से प्रत्येक को 8 किलोग्राम गेहूं या 5 किलोग्राम चावल प्रतिदिन के हिसाब से।
टूटे या क्षतिग्रस्त हुए मकानों के लिए 25000 रूपए प्रति मकान के हिसाब से सहायता राशि।
कच्चे मकानों के लिए 10000 हजार रूपए की सहायता राशि।
झोपडि़यों के लिए 2000 रूपए की सहायता राशि।
दुधारू पशुओं के लिए 10000 रूपया प्रति पशु की दर से सहायता राशि।
गैर दुधारू पशुओं के लिए 1000 रूपया प्रति पशु की दर से सहायता राशि।
मुर्गीपालकों को प्रति मुर्गी 30 रूपए की दर से सहायता राशि।
बड़े पशुओं के चारे के लिए प्रति पशु 20 रूपए प्रतिदिन तथा छोटे पशुओं के लिए 10 रूपए प्रतिदिन की दर से सहायता राशि।
मछली पालकों को 2500 से 7500 रूपए तक की सहायता राशि।
आपदा के पूरे दिनों के लिए अकुशल श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी।
भारत में आपदा की कीमत
बाढ़- हर पांच साल में 75 लाख हेक्टेयर जमीन और करीब 1600 जानें जाती है।
तूफान- पिछले 270 वर्षो में भारतीय उप महाद्वीप ने दुनिया में आए 23 सबसे बड़े समुद्री तूफानों में से तूफानों 21 की मार झेली, छह लाख जानें गई।
भूकंप- मुल्क की 59 फीसदी जमीन पर कभी भी भूकंप का खतरा।
पिछले 18 सालों में आए छह बड़े भूकंपों में 24 हजार से ज्यादा लोगों की हुई मौत।
आपदाओं के चलते सालाना पांच हजार करोड़ से ज्यादा की आर्थिक क्षति होती है और इनसे जूझने के लिए आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को दिए जाते हैं महज 65 करोड़।
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