आखिरकार मोदी के मुद्दे पर एनडीए के 17 साल पुराने साथी जनता दल यूनाइटेड ने उसका साथ छोड़ ही दिया। वैसे तो पहले से ही इस बात का अंदेशा था कि नरेंद्र मोदी को मिलने वाली प्राथमिकताओं के कारण नीतीश भाजपा से खफा थे, वह किसी भी हाल में मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नहीं देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने भाजपा को नरेंद्र मोदी पर उसका स्टैंड स्पष्ट करने को कहा था। लेकिन भाजपा ने उनका कहा नहीं माना और अंतत: जदयू ने भाजपा और एनडीए से खुद को अलग कर लिया। अब जब मिशन 2014 नजदीक आता जा रहा है ऐसे में जदयू का खुद को एनडीए से अलग करने जैसा नीतीश कुमार का निर्णय विभिन्न सवालों के घेरे में आ गया है कि भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार को आगामी लोकसभा चुनावों में फायदा होगा या नुकसान?
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग नीतीश कुमार के इस कदम को सीधे-सीधे उनके लिए फायदे का सौदा मान रहा है। इनका कहना है कि नीतीश कुमार ने सही समय पर खुद को एनडीए से अलग कर लिया क्योंकि अगर कहीं लोकसभा चुनावों के समय भाजपा नरेंद्र मोदी, जिन्हें एक कट्टर और सांप्रदायिक नेता के तौर पर जाना जाता है, को अपना प्रत्याशी घोषित करती तो इसका नुकसान नीतीश को अपने परंपरागत वोटबैंक जो कि मुसलमान हैं, को खोकर उठाना पड़ता। जाहिर है नीतीश और जदयू के लिए यह एक घाटे का सौदा होता और यह जानने के बावजूद की एनडीए के साथ रहने से उनकी हार निश्चित है वह खुद को एनडीए से अलग कर पाने की हालत में नहीं होते। उस धर्म संकट की घड़ी से खुद को बचाए रखने के लिए जदयू का यह निर्णय सही ही है। कम से कम अब उनके पास कांग्रेस के साथ गठबंधन कर या फिर अपने वोटबैंक का विश्वास जीतने जैसे कुछ विकल्प मौजूद हैं जिसके अनुसार यह संभावना कम ही है कि उन्हें बिहार में कोई नुकसान उठाना पड़े।
वहीं दूसरी ओर वे लोग हैं जिनका यह मानना है कि एनडीए गठबंधन से खुद को अलग कर नीतीश ने खुद अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। उनका कहना है कि सबसे पहले तो बिहार में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा की ही तूती बोलती है इसीलिए यह सोच लेना कि कांग्रेस के साथ मिलकर नीतीश वहां अपनी जीत दर्ज करवा पाने में सक्षम हो पाएंगे यह खुद को जैसे धोखे में ही रखने वाली बात है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार अगर अकेले अपने दम पर भी चुनाव लड़ते हैं तो भी बिहार में उन्हें सिर्फ मुस्लिम और अति पिछड़ा वोट ही हासिल हो पाएंगे, जबकि बिहार के सवर्ण हिंदुओं का वोट तो भाजपा के ही पाले में जाएगा। नीतीश कुमार को काफी हद तक मुस्लिम हितैषी माना जाता है और उन्हें अपनी इस छवि का नुकसान चुनावी मैदान में जरूर भुगतना पड़ेगा।
वहीं दूसरी ओर वे लोग हैं जिनका यह मानना है कि एनडीए गठबंधन से खुद को अलग कर नीतीश ने खुद अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। उनका कहना है कि सबसे पहले तो बिहार में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा की ही तूती बोलती है इसीलिए यह सोच लेना कि कांग्रेस के साथ मिलकर नीतीश वहां अपनी जीत दर्ज करवा पाने में सक्षम हो पाएंगे यह खुद को जैसे धोखे में ही रखने वाली बात है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार अगर अकेले अपने दम पर भी चुनाव लड़ते हैं तो भी बिहार में उन्हें सिर्फ मुस्लिम और अति पिछड़ा वोट ही हासिल हो पाएंगे, जबकि बिहार के सवर्ण हिंदुओं का वोट तो भाजपा के ही पाले में जाएगा। नीतीश कुमार को काफी हद तक मुस्लिम हितैषी माना जाता है और उन्हें अपनी इस छवि का नुकसान चुनावी मैदान में जरूर भुगतना पड़ेगा।
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