27 December 2024

पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह का दिल्ली के एम्स में 92 साल की उम्र में निधन, आर्थिक सुधारों से देश को इस संकट से उबारा, परमाणु समझौते के लिए दांव पर लगा दी थी सरकार, आर्थिक सुधारों के शिल्पकार थे डॉ. मनमोहन सिंह

देश के जाने माने अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उनके आवास पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। साथ ही केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में पूर्व पीएम को श्रद्धांजलि दी गई और शोक प्रस्ताव पारित किया गया। मनमोहन सिंह लंबे समय से बीमार थे। घर पर बेहोश होने के बाद उन्हें रात 8:06 बजे दिल्ली AIIMS लाया गया था। रात 9:51 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। मनमोहन सिंह 2004 में देश के 14वें प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने मई 2014 तक इस पद पर दो कार्यकाल पूरे किए थे। वे देश के पहले सिख और सबसे लंबे समय तक रहने वाले चौथे प्रधानमंत्री थे।

 

डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन परिचय

 

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब के गाह में हुआ था

 

पिता का नाम गुरुमुख सिंह और मां का नाम अमृत कौर था

 

डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं

 

देश के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत चला आया

 

पंजाब विश्वविद्यालय से ग्रेजुऐशन और PG पूरा किए

 

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड से डी.फिल भी की

 

पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रहे

 

1966-1969 के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए आर्थिक मामलों के अधिकारी चुने गए

 

1971 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर कार्य किया

 

1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया

 

1982 से 1985 तक RBI के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और UGC के अध्यक्ष भी रहे

 

1991 से 1996 तक प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे

 

2004 से लेकर 2014 तक 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे

 

डॉ. मनमोहन सिंह न केवल भारत के प्रधानमंत्री रहे, बल्कि वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया। उनके नाम पर कई उपलब्धियां हैं। जब देश 90 के दशक में बड़े आर्थिक संकट में था, तब वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने ऐसे बड़े फैसले लिए, जिसके चलते देश की पूरी अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल दी। आर्थिक उदारीकरण में उनका विशेष योगदान रहा। ग्राफिक्स के जरिए आपको बताते हैं मनमोहन सिंह के कुछ बड़े फैसले जिनके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

 

मनमोहन सिंह के बड़े फैसले

 

डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री रहते हुए ऐसी नीतियां बनाईं, जो देश की इकोनॉमी के लिए मील का पत्थर साबित हुईं

 

इन नीतियों ने लाइसेंस राज को खत्म कर दिया, अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया

 

ग्लोबलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और उदारीकरण के एक ऐसे युग की शुरुआत की, जिसने देश की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया

 

जुलाई 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत के सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया था और अपनी सूझ-बूझ से इससे देश को निकाला था

 

1991 ऐसा समय था जब विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया था, देश में महंगाई दर कंट्रोल से बाहर हो गई थी

हालात यहां तक खराब हो गए थे कि देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था

 

उस समय केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी और आर्थिक संकट के बीच भारतीय करेंसी रुपया क्रैश हो चुका था

 

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 18% तक लुढ़क गया था, खाड़ी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमत आसमान पर पहुंच गई थी

 

ये ऐसा समय था जबकि भारत के पास महज 6 अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व बचा था

 

राजकोषीय घाटा करीब 8 फीसदी और चालू खाता घाटा 2.5 फीसदी पर पहुंच गया था

 

ऐसे हालातों में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 में आर्थिक उदारीकरण के लिए बड़े ऐलान किए

 

RBI द्वारा बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत अन्य संस्थानों के पास भारतीय सोना गिरवी रखने का फैसला किया गया और लगभग 60 करोड़ डॉलर की रकम जुटाई गई

 

साल 2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने चुनाव जीता तो माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी। एक तरफ कांग्रेस पार्टी पूरा जोर लगा रही थी कि सोनिया गांधी पीएम पद स्वीकार करें जबकि विपक्ष उनके विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर विरोध कर रहा था। इस उधेड़बुन के बीच पूर्व वित्त मंत्री और प्रगाढ़ अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान किया गया।

 

बड़े फैसलों ने बदल दी भारत की तस्वीर

 

जुलाई 1991-  अर्थव्यवस्था में उदारीकरण, औद्योगिक लाइसेंसिंग खत्म

जून 2005-  सूचना का अधिकार

सितंबर 2005-  रोजगार गारंटी योजना

मार्च 2006- अमेरिका से न्यूक्लियर डील

जनवरी 2009-  आधार स्कीम

अप्रैल 2010-  शिक्षा का अधिकार

 

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है भारत-अमेरिका परमाणु समझौता पर हस्ताक्षर करना। भारत और अमेरिका के बीच इस समझौते की रूपरेखा मनमोहन सिंह और संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा एक संयुक्त बयान में बनाई गई थी। समझौते के तहत, भारत अपनी नागरिक और सैन्य परमाणु सुविधाओं को अलग करने के लिए सहमत हुआ और सभी नागरिक परमाणु सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अधीन रखा जाएगा। इस समझौते पर 18 जुलाई 2005 को हस्ताक्षर किए गए थे।

 

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता दांव पर सरकार

 

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद रखा जाएगा

 

इस समझौते के लिए उन्होंने अपनी सरकार दांव पर लगा दी थी, लेकिन अपने फैसले पर अटल रहे

 

2008 में अमेरिका के साथ हुआ भारत का ऐतिहासिक नागरिक परमाणु समझौते से मनमोहन की दृढ़ता को पूरी दुनिया ने देखा था

 

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन इस ऐतिहासिक समझौते के भविष्य के परिणामों के बारे में इतने आश्वस्त थे

 

संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपनी सरकार का अस्तित्व दांव पर लगा दिया

 

असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते को रणनीतिक साझेदारी में बदलने का मार्ग प्रशस्त किया

 

तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से डॉ. मनमोहन सिंह कुछ दलों को मनाने में सफल रहे

 

वामपंथी दलों ने इस डील का पुरजोर विरोध किया और सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया

 

समाजवादी पार्टी ने पहले वाम मोर्चे का समर्थन किया था, लेकिन बाद में उसने अपना रुख बदल लिया

 

अविश्वास प्रस्ताव में डॉ. मनमोहन सिंह अपनी सरकार बचाने में भी सफल रहे

 

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अपने जीवन में एक सफल अर्थशास्त्री, पॉलिसी मेकर और एक राजनेता के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे तो वे भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने वाले महानायक भी रहे। एक ऐसे महानायक जिनका लोहा पूरी दुनिया मानती है। उन्हें देश उन्हें कई तरह से याद रखेगा। वह अर्थशास्त्री थे इसीलिए शायद नेताओं की तरह भाषण कला उन्हें नहीं आती थी लेकिन कई बार संसद में उन्होंने अपने शायराना अंदाज से भाजपा नेताओं को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था। आज भी लोग वो किस्सा याद करते हैं, जब संसद में भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज और उनके बीच शेरो-शायरी हुई थी। दोनों नेताओं ने शेरो-शायरी के जरिए एक-दूसरे को जवाब दिया था। किस्सा 23 मार्च, 2011 का है। लोकसभा में वोट के बदले नोट विषय पर विषय पर चर्चा हो रही थी और मनमोहन सिंह विपक्ष पर सवालों पर जबाव दे रहे थे। इस दौरान नेता विपक्ष सुषमा ने उन पर कटाक्ष करते हुए कहा था- ''तू इधर उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।'' इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था- ''माना के तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख मेरा इंतजार तो देख।'' सुषमा स्वराज की तरफ कैमरे ने फोकस किया तो भाजपा नेता सीट पर बैठीं मुस्कुरा रही थीं। मनमोहन सिंह के इस जवाब पर सत्ता पक्ष ने काफी देर तक मेज थपथपाई थी, वहीं विपक्ष खामोश बैठा रहा था।

 

ऐसा ही एक दूसरा किस्सा 27 अगस्त, 2012 का है जब संसद का सत्र चल रहा था। मनमोहन सरकार पर कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। तब मनमोहन सिंह ने कहा कि कोयला ब्लाक आवंटन को लेकर कैग की रिपोर्ट में अनियमितताओं के जो आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं। उन्होंने लोकसभा में बयान देने के बाद संसद भवन के बाहर मीडिया में भी बयान दिया। उन्होंने उनकी 'खामोशी' पर ताना कहने वालों को जवाब देते हुए शेर पढ़ा, ''हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।''

 

2013 में भी लोकसभा में एक बार शायराना सीन देखने को मिला जब मनमोहन ने कहा, 'हमें उनसे वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।' जवाब में भाजपा की तरफ से एक बार फिर सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला और कहा कि पीएम ने बीजेपी को मुखातिब होकर एक शेर पढ़ा है। शायरी का एक अदब होता है। शेर का कभी उधार नहीं रखा जाता। मैं प्रधानमंत्री का ये उधार चुकता करना चाहती हूं। आज डॉ. मनमोहन सिंह भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उन्हें  भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार के रूप में देश हमेशा याद रखेगा।


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