जहां हिंदुओं की जनसंख्या गिरी है, वहां-वहां राष्ट्रवाद कमजोर हो रहा है।
देश में 54 ऐसे जिले हैं, जहां जनसंख्या की जनसांख्यिकी में बड़ा
बदलाव देखने को मिला है। इन 54 जिलों
में से 5 जिले केरल के, 9 पश्चिम बंगाल के, 12 असम, 4 बिहार, 17 उत्तर प्रदेश और 2 झारखंड के हैं। इन जिलों में हिंदुओं
की संख्या में भारी गिरावट आई है। केरल के मलप्पुरम जिले समेत इन जिलों में तो गैर
मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित है। वहीं केरल से 1300 ईसाई लड़कियां लव जिहाद के चलते गायब हो गईं। जब भारत और पाकिस्तान का
बंटवारा हुआ था, तब पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या 22 फीसदी थी। अब वहां हिंदुओं की आबादी
केवल 1 फीसदी रह गई है।
इसके विपरीत 1947 में भारत में मुस्लिम आबादी 8 फीसदी थी जी और हिंदुओं की आबादी 90 फीसदी थी। अब नए आंकड़ों में आया है कि
हिंदुओं की जनसंख्या 70 फीसदी हो गई है जबकि मुस्लिम आबादी 28 फीसदी से ज्यादा हो गई है। जनसंख्या
में इस बदलाव का भारतीय संस्कृति और धर्म पर विपरीत प्रभाव पड रहा है। धीरे-धीरे
देश में कौमियत हावी हो जाएगा। भारत में बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए एक
कानून नहीं है। भारत में जनसंख्या में तेजी से बदलाव के चलते राष्ट्रवाद खतरे में
है।
बहुसंख्यक समुदाय के जनसंख्या में कमी
से न केवल लोकतंत्र कमजोर हो रहा है, यह
देश में राष्ट्रवाद की परिभाषा को बदल देगा। 2010-2015 के बीच जन्म लेने वाले हिंदू शिशुओं की संख्या से 3.3 करोड़ कम होगी. भारत में घटती प्रजनन
दर से 2055-60 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी
गिरावट आएगी। दुनिया के 94 फीसदी हिंदू भारत में रहते हैं।
प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन का यह दावा है कि उसके अगले
दो दशक के अंदर दुनियाभर में मुस्लिम महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या
नवजात ईसाई शिशुओं से बढ़ने की संभावना है और इस तरह, 2075 तक इस्लाम दुनिया का सबसे बड़ा धर्म बन जाएगा।
वर्ष 2015 के उपरांत ईसाई और मुस्लिम महिलाओं के लगातार बढ़ती संख्या में
शिशुओं के जन्म देने की संभावना है, यह
रूझान 2060 के बाद भी जारी रहेगी. लेकिन मुस्लिम
शिशुओं की तेजी से बढ़ेगी। इतनी तेजी से कि वर्ष 2035 तक उनकी संख्या ईसाई नवजात शिशुओं से आगे निकल जाएगी।
इन दोनों पंथों के बीच शिशुओं की संख्या के बीच अंतर 60 लाख तक पहुंच सकती है, यानी मुस्लिामों के बीच 23.2 करोड़ शिशु बनाम ईसाइयों के बीच 22.6 करोड़ शिशु। उनके अध्ययन कहता है कि लेकिन इसके विपरीत 2015-60 के दौरान सभी अन्य बड़े पंथों में जन्म लेने वाले शिशुओं की कुल संख्या तेजी से गिरने की संभावना है। बदलते वैश्विक धार्मिक परिदृश्य’ नामक एक अध्ययन का मत है कि जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या में गिरावट खासकर हिंदुओं में होगी।
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