देश
में जिहादी विचारों को विराम देने के लिए मुहीम तेज हो गई है. बड़े संख्या में आये
दिन मुस्लिम समाज के लोग हिन्दू धर्म और रीतिरिवाजों को अपना रहे हैं. एक ऐसा ही
वाक्या सामने आया हैउत्तर परदेश के बिलासपुर से. पूर्व केंद्रीय मंत्री क़ाज़ी
रशीद मसूद का अंतिम संस्कार और रस्म पगड़ी को इमरान मसूद और उनके पुत्र ने अधूमधाम
से पूरा किया. इसमें सबसे बड़ी बात ये है की जिस काजी रशीद की अंतिम संस्कार हिन्दू
रीतिरिवाजों से की गई वह कांग्रेस का UP में मुस्लिम नेता थे.
बिलासपुर
में हिंदू समाज द्वारा काजी रशीद मसूद की तेरहवीं कार्यक्रम में मंत्रोच्चारण के
उपरांत शाजाद मसूद को पगड़ी पहनाई गई। मगर इस्लाम के ठेकेदार इस पर भड़के हुए हैं.
झंडाबरदार मौलबी-मौलाना इस तरह के कार्यक्रमों में शिरकत करना नाजायज बता रहे हैं.
मगर इस झंडाबरदार ठेकेदारों को जवाब देते हुए पूर्व विधायक इमरान मसूद ने उलमा की
प्रतिक्रिया पर कहा कि हम और हमारा अल्लाह बेहतर जानने वाला है, क्योंकि हम कलमे
के मानने वाले लोग हैं। इसलिए हमें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. नौ बार
सांसद और हिदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहे काजी रशीद मसूद का पांच अक्टूबर को निधन
हो गया था.
जामिया
शेखुल हिद के मोहतमिम मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि घर के किसी बड़े को चुनना या
पगड़ी बांधना बुरी बात नहीं है, पूर्व कांग्रेस विधायक तथा मरहूम रशीद मसूद के
भतीजे इमरान मसूद ने कहा कि हिदू समाज द्वारा आयोजित रस्म पगड़ी तथा शोकसभा पर सवाल
उठाने वालों के तर्क से वह सहमत नहीं हैं. पगड़ी रस्म के आयोजनकर्ता रतन लाल ने कहा
की अगर हिदू समाज ने काजी रशीद मसूद की रस्म पगड़ी का आयोजन कर उन्हें सम्मान दिया
है तो मुझे नहीं लगता इसमें कोई विरोध वाली कोई बात है. किसी को भी इस पर दिक्कत
नहीं होनी चाहिए. फिर भी ये रस्म जिहादी मानसिकता से ग्रसित मौलानओं हजम नहीं हो
रह है.
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