अगस्त 2013 नोएडा के कादलपुर गांव में एक मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में एक महिला एएसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किया गया था। कारण दुर्गा नागपाल ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध ढंग से बन रही एक मस्जिद गिरा दी थी। तब दुर्गा नागपाल को पूरे देशभर से हिन्दुओं का समर्थन मिला था.
प्रश्न खड़ा होता है कि सरकार को केवल अवैध मन्दिर ही क्यों दिखते हैं, वे अवैध मस्जिदें और मजारें क्यों नहीं दिखती हैं जो बीच चौराहों या सड़कों के किनारे तेजी से सरकारी जगह घेर कर अपना विस्तार कर रही हैं। संसद के आसपास भी तेजी से मजार और मस्जिदें बन रही हैं। दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में कई अवैध मस्जिदें और मजारें हैं। पूर्वी दिल्ली में देखें तो भजनपुरा के मेन रोड के बीचो-बीच मजार बनी है। हसनपुर डिपो के सामने व्यस्त स्वामी दयानंद मार्ग पर मजार है, वर्षो बाद भी इसे यहां से नहीं हटाया जा सका। पूरी दिल्ली में अवैध मजारों और मस्जिदों की एक तरह से बाढ़ आई हुई है पर उनकी ओर से कोर्ट ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। कौन नहीं जानता कि लालकिले के सामने सुभाष पार्क में 24 घंटे के अन्दर एक मस्जिद खड़ी हो गई थी। उच्च न्यायालय ने इस मस्जिद को गिराने का आदेश भी दिया था। किन्तु उस समय दिल्ली सरकार की कृपा से यह मस्जिद बचा ली गयी थी।
ये सिर्फ अकेली दिल्ली का हाल नहीं है यदि यहाँ से बाहर निकलकर उत्तरप्रदेश का रुख करें तो अमूमन ऐसे ही हालत हैं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि, पार्क और सड़क किनारे 28,355 मुस्लिम स्थल अवैध रूप से मौजूद हैं। राजधानी लखनऊ में ही 571 गैर कानूनी धार्मिक स्थल हैं। हाल ही में दिल्ली सरकार ने अवैध मजिस्द तोड़ने के लिए आदेश दिया था मगर फिर भी उसे नहीं तोड़ा गया.
दरअसल यह कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं है इसके कई कारण अहम् बिन्दुओं में छिपे हैं एक तो यह सरासर राजनीति का हिस्सा है जिससे धर्म को जोड़ दिया जाता है दबे शब्दों में ही सही कहा तो यह भी जाता है कि कुछ माफिया जमीन कब्जाने के लिए वहां पहले मस्जिद या मजार बनवाते हैं। धीरे-धीरे वह जगह धार्मिक स्थल का दर्जा पा जाती है। वोटों के सौदागर और नेताओं के दबाव के बीच अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। दिल्ली लोकनिर्माण विभाग के आदेश पर मस्जिद मजार नहीं टूटा मगर मंदिर डीडीए मिनटों में तोड़ देता है.
जिस कारण अशिक्षित पिछड़े गरीब कमजोर
लोगों की तरक्की को रोकने का यह धार्मिक षडयंत्र सफल हो जाता है। दूसरा
परिस्थितिवश यदि कोई सरकार तोड़ना भी चाहे तो मजहब के नाम पर संवेदनशील लोग इसे
अपने मजहबी गौरव पर आघात समझते हैं। तीसरा जब देश के बड़े नेतागण ही जानते हैं कि
वोट मस्जिदों के घालमेल से आते हैं तो इनके अत्यधिक निर्माण को नाजायज कौन कहेगा ?
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