17 November 2020

सरकारी तंत्र की जंजीरों से प्रेस को आजादी कब ?

आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस है जिसे आज पूरा पत्रकारिता जगत बधाई संदेशों और शुभकामनाओं सहित मना रहा है. चार जुलाई, 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई थी, जिसने 16 नवम्बर, 1966 से अपना पूर्ण रूप से कार्य शुरू किया था। तभी से 16 नवम्बर को 'राष्ट्रीय प्रेस दिवस' के रूप में मनाया जाता है। मगर आज इसी प्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है की सरकारी तंत्र की जंजीरों से आखिर कब मिलेगी प्रेस को आजादी ? क्योंकी ये आजादी कोई एक-आध दिन की बात नहीं है, बल्कि इसका एक लंबा इतिहास है.



प्रेस के अविष्कार से लेकर इसके नवजागरण तक एक सशक्त हथियार के रूप में हमेशा से हीं उपयोग होता रहा है. भारत में प्रेस ने आजादी की लड़ाई में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था. बालगंगाधर तिलक से लेकर सुभाष चंद्रबोश और लाला लाजपत राय तक सबसे प्रेस को एक अचूक अस्त्र के रूप प्रयोग किया. मगर आज इसी प्रेस की आजादी पर अब सरकारी तंत्रों का कब्ज़ा है. आए दिन किसी भी छोटे-मोटे मुद्दे पर आज संपादक को सरकारी नोटिस थामा दिया जाता है. तो कभी किसी पत्रकार को पुलिस प्रशासन जब चाहता है घर से उठा लेता है. जिसे आज गुलामी वाली तंत्रों से मुक्त करने की आवश्कता है. प्रेस की आजादी को लेकर आज कई सवाल उठ रहे हैं। पत्रकार और पत्रकारिता के बारे में आज एक विशेष धारणा बना दिया गया है जिसे तोड़ने की जरूरत है.



मीडिया आज के समय में सबसे बड़ा और प्रभावशाली हथियार है, जिसके जरिये किसी भी संस्था या सत्ता को बेपर्दा किया जा सकता है. शायद यही कारण है की अब राष्ट विरोधी ताकतें भी मीडिया का सहारा ले रही है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट यानी आई.एफ.जे. के सर्वे के अनुसार 2016 से लेकर अबतक लगभग हजारों पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. ये प्रेस की आजादी और उसके बढ़ते प्रभाव का नतीजा है. जान से मारने व डराने की धमकी आज पत्रकारों के लिए आम बात हो गयी है.



वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत तीन पायदान पीछे होते हुए 136 नंबर पर आ गया है। ये आकड़े बताने के लिए काफी है की भारत में प्रेस की आजादी पर बहुत बड़ा संकट है। सत्ता और मीडिया में हमेशा से हीं छत्तीस का आंकड़ा रहा है। लेकिन कई बार शक्तिशाली सत्ताएं प्रेस की गला घोटने से भी परहेज नहीं करती। जिसका सबसे बड़ा उदहारण 1975 का आपातकाल है. 



आज पत्रकारिता जगत को सरकारी तंत्र सत्ता और बाजार के हाथों की कठपुतली बनाना चाहता है. अगर कोई मीडिया संस्थान इसके इतर जाने का प्रयाश करता है तो फिर या तो उसे दबाने की कोशिश की जाती है या फिर गुलामी की तंत्रों से उसे जकड़ने की भरपूर प्रयास होती है. फिर भी देश में आज भी बहुत से ऐसे राष्ट्रीयवादी मीड़िया संस्थान हैं जो राष्ट्र की एकता और अखंडा के लिए अपने मुनाफे की प्रवाह किये हर रोज जिहादी ताकतों से लड़ रहे हैं...और कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की अधिकारों की लड़ाई भी अपने जान की प्रवाह किये बगैर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। एडविन वर्क द्वारा मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया। 



वहीं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है। यानी की प्रेस की आजादी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है। फिर भी समय-समय पर सरकार इस पर प्रतिबंध के जरिये जकड़ने की प्रयास करती है जो प्रेस की आजादी के लिए बेहद ही घातक है. इसलिए आज हम पूछ रहे हैं की सरकारी तंत्र की जंजीरों से प्रेस को आजादी कब ?

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