10 November 2013

आपदा की आड़ में धर्मांतरण की बाढ़ !

देहरादून और टिहरी में बहुत दूरी नहीं है। लेकिन इन दोनों ही जगहों से एक जगह बहुत दूर है जिसका नाम केदारनाथ है। इसलिए केदारघाटी में आपदा आई तो उसका असर न टिहरी पर पड़ा और न ही देहरादून पर। असर भले ही तराई तक न आया हो लेकिन यह आपदा भी एक अवसर लेकर आई है। ईसा भक्तों के लिए। ईसाई धर्म प्रचारक उत्तराखण्ड में जगह जगह अपने धर्मांतरण अभियान के तहत अब उत्तराखण्ड आपदा का जिक्र करते हुए यह समझा रहे हैं कि अगर हिन्दुओं के भगवान होते तो ऐसी आपदा क्यों आती? हिन्दुओं के भगवान नाकाम हो गये जिसके कारण यह आपदा आई। ऐसी आपदाओं से बचना है ईसा की शरण में जाना पड़ेगा क्योंकि इस तबाही का जिक्र आज से 3500 साल पहले लिखी बाइबल में किया जा चुका था।

दून में धर्मांतरण की धूम

देहरादून में धर्मांतरण अभियान के एक उदाहरण से यह बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि कुछ ईसाई संगठन सुनियोजित तरीके से गरीब और नासमझ लोगों के मनोविज्ञान से खेलकर धर्मांतरण करा रहे हैं। देहरादून में कैनाल रोड स्थित रमोला परिवार के सभी सदस्य बड़े संदेहास्पद और संगठित तरीके से लोगों को धर्मांतरण करा रहे हैं। इसका एक ज्वलंत उदाहरण देखिए।

केदारनाथ मंदिर में 16-17 जून को आयी भयंकर आपदा के क्या कारण थे? क्या यह आपदा भगवान के नाकाम हो जाने के कारण आई? उत्तराखंड में जेहादी तौर पर धर्म परिवर्तन के काम में जुटे ईसाई धर्म प्रचारक तो कम से कम यही समझा रहे हैं। उनका साफ कहना है कि 3500 साल पहले लिखी गई बाईबिल में केदारनाथ की तबाही का ब्यौरा लिखा गया है।

ईसाई प्रचारक इन दिनों आपदा के जख्म झेल रहे उत्तराखंड के दुखी व पीडि़त लोगों को इस तर्क की आड़ में फुसला रहे हैं। देहरादून के कैनाल रोड स्थित एक नई नवेली चर्च के ईसाई प्रचारक दीपक रमोला ने तो यहां तक कह दिया कि हिन्दु देवी-देवता चाहकर भी इस आपदा को टाल नहीं सकते थे। क्योंकि उनके पास तो यह अधिकार ही नहीं है। नए-नए प्रचारक बने दीपक यहीं नहीं रुके उन्होंने यह भी कहा कि जब देवता अपने मंदिर को नहीं बचा सके तो हिन्दुओं को क्या बचाएंगे?

यह बात बिल्कुल साफ है कि धर्म परिवर्तन के लिए किया जा रहा यह व्यवहार भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के बिल्कुल उलट है। धर्म परिवर्तन के लिए बहकाने, धर्म के नाम पर डराने, प्रोपेगेंडा करने की आजादी भी किसी धर्म प्रचारक को हासिल नहीं है। बावजूद इसके मौत का डर दिखाकर लोगों को इसाई बनाने का काम हो रहा है।

कैनाल रोड के आखिरी छोर पर इंडेन गैस गोदाम के सामने बने चर्च के गेट पर  छोटे से बोर्ड पर चर्च के साथ-साथ प्रार्थना भवन का भी जिक्र किया गया है। गेट पर दस्तक देने पर भीतर की तरफ से आई महिला ने हमारा परिचय अमित नाम के एक युवक से कराया। जिससे जानकारी हुई कि इस प्रार्थना भवन तथा चर्च की स्थापना 2006 में की गई है और पास्टर रमोला इस चर्च का संचालन करते हैं। अमित ने बताया कि उसने डेढ़ साल पहले ही ईसाई धर्म अपनाया है। वह देहरादून में सेलाकुई के निकट हरबर्टपुर ग्राम पंचायत का रहने वाला है और उसके पिता का नाम महेंद्र पाल है। अमित कुमार अब इसी चर्च में रहता है और इसी बिल्डिंग के गेट से लगी चिकन मटन की दुकान चलाता है। ईसाई धर्म अपना रहे लोगों की जिंदगियों में आ रहे आर्थिक-सामाजिक प्रभाव के बारे में न तो अमित को कुछ मालूम है और न वह इस सवाल पर बात करना चाहता है। अमित का कहना है कि जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाकर मार डाला गया और उन्हें कब्र में डाल दिया गया, उसके तीन दिन बाद ईशु जी उठे और 4० दिनों तक लोगों को दिखाई देते रहे। अमित पूरी तरह से इस चमत्कार के वश में है और पूछता है आपने ऐसा चमत्कार क्या किसी दूसरे धर्म में कभी सुना या देखा है?

बातों-बातों में पता चला कि पास्टर रमोला का पूरा परिवार ही गरीब और वंचित लोगों को ईसाई बनाने के मिशन में जुटा हुआ है। मूल रूप से टिहरी जिले की भिलंगना घाटी निवासी पास्टर रमोला पिछले 15 सालों से देहरादून के चुक्खु मोहल्ला स्थित इंदिरा कालोनी में रहता है, लेकिन उसके जानकार उसके अलग-अलग ठिकानों का जिक्र करते हैं।

कैनाल रोड का यह चर्च भी पास्टर रमोला की  संपत्ति है, लेकिन उनका परिवार नये संपर्क में आए किसी भी व्यक्ति के सामने यह बात जाहिर नहीं होने देता। इस चर्च का धर्म प्रचारक पास्टर रमोला का बेटा दीपक रमोला है, जो कि खुद को इतिहास, भूगोल और धर्म शास्त्र का बड़ा ज्ञाता बताता है। लेकिन बाप-बेटे और परिवार के अन्य सदस्य प्रार्थना के दौरान अलग-अलग स्थानों पर बैठकर प्रार्थना का संचालन करते हैं और अपने मुताबिक लोगों को ढालते चलते हैं। अमित के अलावा इस चर्च में उत्तरकाशी और हरबर्टपुर का एक और लडक़ा, जिनका हाल-फिलहाल में धर्म परिवर्तन कराया गया है, रह रहे हैं। इतना ही नहीं पास्टर रमोला ने अपने पुत्र की शादी भी गढ़वाल के एक चौहान परिवार में की है।

चूंकि मिशन और उसकी गतिविधियों से जुड़ी अधिक जानकारी देने के पक्ष में यह लोग नहीं थे तो उन्होंने हमें पास्टर रमोला का मोबाइल नंबर देकर यह बताते हुए विदा किया कि अगले दिन रविवार को प्रार्थना सभा होगी। अगर हम पहुंचें तो पास्टर रमोला से हमारी मुलाकात होने के साथ ही हम इस प्रक्रिया को समझ सकते हैं।

अगले दिन 25 अगस्त को सुबह के करीब 11 बजे हम फिर वहीं पहुंच गए। रविवार को इस भवन के बेसमेंट में बना एक हाल लगभग भरा हुआ था। प्रार्थना के समय हाल में 23 पुरुष, 19 महिलाएं और 5 बच्चे मौजूद थे। पास्टर रमोला से मिलने की बात कहकर हम आसानी से हाल में दाखिल हो गए, जहां हमें बताया गया कि प्रार्थना के मध्यान्ह काल तक पास्टर रमोला से मिलना संभव नहीं है। प्रार्थना के लिए लोग घनसाली, हरबर्टपुर, राजपुर और कैनाल रोड में चर्च के आस-पास से जमा हुए थे। मंच पर पास्टर रमोला का बेटा दीपक रमोला धर्म प्रचारक के रूप में सभा को संबोधित कर रहा था। जोश-खरोश के साथ अपने अंग-प्रत्यंग हिलाते हुए वह अध्याय दर अध्याय बाइबिल के चरित्रों को वहां मौजूद लोगों को समझा रहा था। इस बीच एक बड़े मॉनीटर में ईसा मसीह के शूली में चढ़ाए जाने के दौरान के चित्र बार-बार लोगों को दिखाए जा रहे हैं।

सबसे बड़ा प्रोपेगेंडा यह है कि जैसे ही वह बाइबिल में बताई किसी अच्छाई या बुराई का ब्यौरा लोगों को बताता, सबसे पहले मंच के बायीं तरफ कुर्सी में आराम से बैठे पास्टर रमोला सबसे जोर से कहते-‘सच है, यहोवा, यह सच है, सच कहा’, ऐसा ही फिर प्रार्थना सभा में मौजूद दूसरे लोग भी कहते। हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं का जिक्र भी प्रचारक दीपक रमोला ने अनेक बार किया। उसका कहना था कि लोगों को अपनी जान बचाने के लिए हिन्दू धर्म को छोडक़र ईसा मसीह की शरण में आना ही पड़ेगा। साथ ही उसने यह भी जोड़ा कि जब भगवान केदारनाथ की तबाही को नहीं रोक पाए तो वे हिन्दुओं की रक्षा कैसे करेंगे?

ईसाई धर्म के अलावा अन्य धर्म के लोगों को शैतान की संज्ञा देना भी दीपक रमोला नहीं भूला। प्रार्थना सभा में मौजूद आम लोगों को जोडऩे के लिए रमोला परिवार का सबसे बड़ा ढोंग यह है कि पास्टर रमोला प्रार्थना के दौरान बीच-बीच में मंच पर चढक़र दीपक को गले लगाते और उसकी सराहना करते। प्रचारक बीच-बीच में जोर देकर इस बात को कहता, आज न्याय का दिन है और यहां मौजूद लोगों को ईशु ने इस दिन के लिए चुना है।’ साथ ही उसने कहा कि आज न्याय की देवी ने अपना दरबार लगाया है और लोगों की ओर इशारा करके वह कहता, कि आपको, आपको और आपको इसके लिए चुना गया है। ईसा मसीह को सूली में चढ़ाने के बाद जब प्रसंग में वह जी उठा तो प्रचारक ने जोर से कहा कि ‘और ईशु जी उठा’। मार डाले गए ईशु के चमत्कारिक ढंग से जी उठने के प्रसंग के बाद वहां मौजूद महिलाओं ने रोना शुरू कर दिया, लेकिन सबसे पहले रमोला परिवार की बहू ने ही रोना शुरू किया। बेसमेंट में बनाए गए इस चर्च को इस तरह से बनाया गया है, जैसे कोई कोल्ड स्टोर। बस्ती के बीच में बने इस चर्च के हॉल की बंद खिड़कियों को अंदर से परदों से सील किया गया है। इतना ही नहीं ‘ईगल्स डेल’ नाम के इस हॉल को चारों तरफ से सीलबंद करने का काम भी तेजी से चल रहा है। ईंटों की मजबूत दीवार लगाकर हॉल को एयर टाइट बनाया जा रहा है।

प्रार्थना सभा में मौजूद घनसाली, टिहरी के धनपत सिंह जो कि 6 महीने पहले ही ईसाई बने हैं, उनका कहना है कि बहते पानी के बीच जैसे उन्हें तिनके का सहारा मिला है। हिन्दू धर्म में रहते हुए उनके घर के सभी सदस्य लगातार बीमार रहते थे और देवी-देवताओं की पूजा और इलाज में बहुत सारा पैसा खर्च होता था, लेकिन अब सब ठीक हो गया है। लेकिन यह पूछने पर कि ईसाई बनने पर देवता पूजना तो कम हो सकता है, लेकिन बीमार लोग कैसे ठीक हुए, इसका जवाब वह नहीं दे पाए। प्रार्थना के बाद पास्टर रमोला से बात करने पर उन्होंने सबसे पहले फंड की  व्यथा सुनाई। खुद को फंड के फेर से दूर बताते हुए उन्होंने कहा कि एड तो एड्स की बीमारी जैसी होती है। और हम ‘फंड में ठंड करो’ से दूर हैं। नए-नए ईसाई बन रहे युवकों और महिलाओं पर इन बाप-बेटे का इतना असर है कि बातचीत के दौरान भी यह लोग उन्हें घेरे रहते हैं।

दूसरे दिन जब दीपक रमोला से मिलने आए तो देखा, आज उनकी चाल और अंदाज बिल्कुल बदला हुआ है। एक आम शहरी की तरह वह अपने पारिवारिक चर्च की नई बन रही चहारदीवारी का काम करवा रहा है। बातचीत की शुरुआत में ही वह केदारनाथ के प्रसंग को जोड़ते हुए हिन्दू देवी-देवताओं को त्रासदी न रोक पाने के लिए जिम्मेदार बताते हुए कहता है कि यह त्रासदी पहले ही बाइबिल में लिखी गई है और इसे हिन्दू देवी-देवता रोक नहीं पाए। साथ ही पावर टू चूज, सोल एण्ड स्प्रिट के साथ ही प्यार, लगाव, सेवा जैसी अनेक बातों को समझाते हुए वह कहता है कि आज पूरा हिन्दुस्तान और दुनिया का एक बड़ा भाग रोमन कैथोलिक के मुताबिक चल रहा है। यहां तक कि कैलेंडर, कम्प्यूटर और शेयर बाजार भी रोमन के मुताबिक ही है। इस तरह से वह कहता है कि रोमन कैलेंडर यूज करने वाले लोग रोमन कैथोलिक ही तो हुए।

एक और बात जिसे वह जोर देकर समझाता है कि 6०6 ई.पूर्व दुनिया के 127 देशों में मादी फारसी सभ्यता के अहोसोरस राजा का राज था। भारत भी इसी राज्य का हिस्सा था और ग्रे गोरियस कैलेंडर, जो कि तारों-सितारों पर आधारित है, वह मादी-फारसी सभ्यता की ही देन है। इस तरह वह जोडक़र कहता है कि ऐसे भी तो पूर्व में गढ़वाल में ईसाई शासन रह चुका है और लोग ईसा के पास लौट रहे हैं। उत्तराखंड में चर्च की गतिविधियों पर दीपक रमोला कहते हैं, हम कोई एनजीओ या समाजसेवा की संस्था नहीं हैं। हम तो धर्म प्रचारक हैं। हम लोगों को समझाते हैं ‘अपनी जिंदगी बचाके भागो।’

खाड़ी गांव में खड़े ईसा

टिहरी में नरेंद्रनगर ब्लॉक से 30 किमी. आगे खाडी गांव है। यूं तो यह जगह कई सामाजिक आंदोलनों की जनक रही है, किंतु पिछले कुछ समय से यहां एक धार्मिक आंदोलन गुपचुप पैर पसार रहा है। एक इतवार की सुबह हम यहां पहुंच गए। खाड़ी से 2 किमी. पहले जाजल से बायीं ओर एक रास्ता उदखण्डा गांव को जाता है। इस रास्ते पर कई लोग झुण्ड बनाकर चल रहे थे। महिलाएं, बच्चे, बूढे, जवान सब। पहले तो हमें लगा कि आसपास गांव में कोई मेला लगा है। जिज्ञासावश हम भी उनके साथ-साथ चलने लगे। एक महिला को हमने पूछा कि आप लोग कहां जा रहे हैं? तो वह बोली कि हम सत्संग में जा रहे हैं। हमने पूछा कि राधास्वामी के सत्संग में? इस बार वह थोड़ा शर्माते और मुस्कराते हुए बोली, नहीं! क्रिश्चियन के सत्संग में।

कुछ ही दूर चलने पर जंगल के बीच में हमें एक सफेद रंग का बड़ा सा मकान दिखाई दिया। मकान से पहले ही काली पैंट सफेद कमीज पहने एक आदमी दिखा। हम उसी आदमी की ओर आगे बढ़े और दुआ-सलाम हुई। उसने बताया कि हम सब लोग यहां पर हर रविवार ईशु की प्रार्थना करने आते हैं। वह उत्साहित होकर कहने लगा- ‘‘ईशु की प्रार्थना में बड़ी शक्ति है साब। मैंने जीवन में हमेशा 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा की, लेकिन मैं हमेशा परेशान रहा। अब देखो साब, केदारनाथ में इतनी बड़ी आपदा आई। हजारों लोग मारे गए, तो बताओ साब कहां गए इतने करोड़ देवी-देवता।’’

सब लोग पास के ही गांव पिपलेथ, टिपली, जाजल, आमसेरा और सिलासौढ,  के रहने वाले हैं। ये सभी अनुसूचित जाति के बहुल गांव हैं। मान सिंह ने यह भी बताया कि ये सब वे लोग हैं जो इस समाज की धार्मिक मान्यताओं से खिन्न हो चुके हैं। अब सब लोग अपनी राह बदलना चाहते हैं। प्रभु ईशु की शरण में आना चाहते हैं। उसने अपना पूरा नाम मान सिंह रौतेला बताया। वह पास के ही गांव रामपुर का रहने वाला है। उसने बताया कि कई साल पहले पास के गांव की एक लडक़ी को वह बहुत चाहता था, किंतु वह हमारी जाति से थोड़ी छोटी जाति की थी। हमारे रिश्तेदार और गांव वालों ने इस बात का विरोध किया कि मैं उस छोटी जाति की लडक़ी से शादी करने वाला हूं। कई जिल्लतें सहने के बाद मैंने उसी लडक़ी से शादी की। गांव से मेरा बहिष्कार कर दिया गया।  तभी से मेरा जाति व्यवस्था से विश्वास टूट गया साब। इस बात को 10-12 साल हो गए साब। तब से अब तक आसपास के चार-पांच सौ लोग प्रभु ईशु की शरण में आ चुके हैं। रौतेला ने बताया कि अभी कुछ महीने पहले ही प्रभु ईशु की कृपा से हमने यहां पर यह प्रार्थना भवन बनाया है।

हमने प्रार्थना भवन की ओर देखा तो लगभग 100 से ज्यादा लोग अंदर हाल में बैठ चुके थे। सब लोग मंत्रमुग्ध होकर भजन में लीन थे। पीछे एक बैनर टंगा था, ‘हे सारी पृथ्वी के लोगों, यहोवा की जय-जयकार करो। आनंद से यहोवा की आराधना करो। जय-जयकार के साथ उसके सामने आओ।’ सब लोग जोर-जोर से ईशु का भजन गा रहे थे। बीच में खड़ी लडक़ी क्रास का चिन्ह वाले डायस पर रखी एक किताब देखकर बीच-बीच में भजनों का अर्थ समझा रही थी। एक-डेढ़ घंटे में चार से छह भजन पूरे हो चुके थे। अब सब अपनी-अपनी जगह पर खडे हो गए। पास्टर मान सिंह ने सामने डायस पर आकर उपदेश देना शुरू किया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ईशु ही सच है, बाईबिल ही सच है। आज न्याय का दिन है, ईशु ने तुम्हें चुना है।’ आदि आदि। कुछ महिलाएं भावुकता के उफान में रोने लगी। बैकग्राउंड में भजन भी चल रहे थे। पास्टर मान सिंह ईशू का महिमामंडन कर रहा था। ईसा का आशिर्वाद चारों तरफ बरस रहा था। देवभूमि को 'हिन्दू देवताओं' से मुक्त कराने का ईसाई अभियान जारी है।

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