17 November 2013

भारत रत्न सचिन तेन्दुलकर !

वानखेड़े स्टेडियम पर, जब सचिन अपना अंतिम टेस्ट मैच खेलकर नम आँखों के साथ पैवेलियन की ओर लौट रहे थे, विशाल इलेक्ट्रॉनिक स्कोर बोर्ड पर लिखा था- लीडेंड्स नेवर रिटायर। कितना सही लिखा था किसी ने। बहुत जल्दी हम क्रिकेट के इस महानायक को किसी दूसरे रूप में देखेंगे- खेल और देश की सेवा करते हुए। आखिर सचिन सिर्फ एक क्रिकेटर ही तो नहीं हैं, एक सच्चे और जिम्मेदार, देशभक्त भारतीय पहले हैं और उनके लिए इस देश में अनगिनत भूमिकाओं की संभावनाएँ मौजूद हैं।

कुछ साल पहले सचिन तेंदुलकर ने जब खुद को 'भारतीय पहले और महाराष्ट्रियन बाद में' बताया तो बाल ठाकरे ने कहा था− ''सचिन तू अपनी पिच संभाल। सिंगल चुराने की कोशिश मत कर।'' यह महाराष्ट्रवाद के प्रतीक बनने का असफल प्रयास कर रहे एक राजनेता का भारतीय क्रिकेट की पहचान बन चुके उस क्रिकेटीय महानायक पर हमला था जो 'भारतीयता के सर्वोत्कृष्ट प्रतीकों' में से एक है। बल्ले के जरिए बात करने वाले सचिन को जवाब में कुछ कहने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका जैसी विश्व की दिग्गज क्रिकेट टीम के विरुद्ध दो सौ रन बनाकर न सिर्फ वनडे क्रिकेट को एक ऐतिहासिक उपलब्धि दे दी बल्कि अपने शतक को सभी भारतीय नागरिकों को समर्पित कर ऐसे तमाम विवादों को ओजपूर्ण शालीनता के साथ निरुत्तर कर दिया जिनमें असंदिग्ध देशभक्ति और सत्यनिष्ठा वाले इस महानायक को घसीटने की कोशिश की जाती है। उसके बाद 'सामना' के एक संपादकीय में बाल ठाकरे ने लिखा था कि 'सचिन तो पहले से ही 'भारत रत्न' हैं और उन्हें यह सम्मान पाने के लिए किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं है।'

महाराष्ट्र के प्रति सचिन तेंदुलकर की राज्यभक्ति असंदिग्ध है, उसी तरह जैसे मुंबई के प्रति उनकी शहरभक्ति और भारत के प्रति देशभक्ति। इन तीनों के बीच किसी विरोधाभास की तलाश राजनेताओं को तो हो सकती है, भारतीयता और उसके मूल्यों में विश्वास रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति को नहीं। सचिन तेंदुलकर को तो बिल्कुल नहीं। हाल ही में मुंबई के एक स्टे़डियम का नामकरण सचिन के नाम पर किए जाने का एक बार फिर शिवसेना ने विरोध किया, लेकिन शायद बहुत जल्द उसे अपना पिछला अनुभव याद आ गया और उसने इस विरोध से हाथ पीछे खींच लिए। कई लोग सचिन तेंदुलकर को एक वैश्विक स्तर के खिलाड़ी के उस दर्जे से बहुत छोटे शहरवादी या राज्यवादी खांचे में फिट करने की असफल कोशिशें करते रहते हैं। उसी तरह जैसे कुछ जातीय सम्मेलनों में महात्मा गांधी को वैश्य समाज के नेता और सरदार पटेल को पटेल समुदाय की हस्ती के रूप में याद तथा 'सम्मानित' किया जाता है। हमारे ये महापुरुष किसी भी जाति या समुदाय से ऊपर उठे हुए हैं। भारतीयता ही उनकी जाति और समुदाय है। आप इन्हीं महान भारतीयों की श्रेणी में सचिन को भी गिन सकते हैं।

बहरहाल, सचिन सिर्फ क्रिकेटीय उपलब्धियों के महानायक ही नहीं हैं। वे इंसानी पराक्रम और क्षमता की पराकाष्ठा तक पहुंचते खिलाड़ी भर नहीं हैं। वे एक अद्वितीय इंसान और विशुद्ध भारतीय मनीषा के प्रतिनिधि हैं। ऐसे प्रतिनिधि, जिनका अनुसरण करने के लिए अपने बच्चों को कहते हुए हमें गर्व होगा। वे हमारी राष्ट्रीयता को पहचान देने वाले गौरवशाली एवं उत्कृष्ट प्रतीकों में से एक हैं। ऐसे प्रतीक जिनका एक इशारा क्षुद्र स्वार्थों की राजनीति करने वाली विभाजक शक्तियों को शर्मिंदगी भरी चुप्पी ओढ़ने पर विवश कर सकता है। उस दिन सचिन ने जब ग्वालियर में दोहरा शतक जमाकर वनडे क्रिकेट का अधूरा मील−पत्थर पार किया तब दुनिया भर से तालियों का वह शोर उठा जिसमें संकीर्णतावादी लोग खुद अपनी आवाज भी नहीं सुन पाएंगे।

जिस सचिन तेंदुलकर के क्रिकेटर होने से स्वयं विश्व क्रिकेट गौरवान्वित महसूस कर रहा है, जिस सचिन का हमारी तरह ही भारतीय होना हमारे लिए गर्व से सीना तानने का पर्याप्त कारण है, जिस सचिन ने सफलता के शीर्ष पर जाकर भी भारतीयता को सर्वोपरि समझा, जिसने अपने राष्ट्र गौरव पर कभी कोई आंच न आने दी, और जिसने निजी एवं सामाजिक जीवन में सत्यनिष्ठा और विनम्रता के आदर्श कायम किए, उसके प्रति देश का भी कुछ उत्तरदायित्व बनता है। वे इस देश की सफलता का मूर्त रूप हैं। वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते ऊर्जावान भारत के प्रतीक हैं। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो अपने जीवनकाल में ही प्रेरणा बन जाते हैं। अपने इस 'लिटिल मास्टर' और 'मास्टर ब्लास्टर' को 'भारत रत्न' के लिए चुनकर देश ने यह दिखा दिया है कि हमें अपने महानायकों का सम्मान करना आता है।

आधिकारिक परिभाषा के अनुसार तो 'भारत रत्न' ऐसे व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में सर्वोत्कृष्ट योगदान दिया हो। कला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धि अर्जित करने वाले या लोक सेवा के क्षेत्र में उच्चतम आदर्श स्थापित करने वाले लोग इस श्रेणी में आते हैं। अपने क्षेत्र में सचिन की उपलब्धियां इतनी हो चुकी हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी बराबरी करने वाला अन्य कोई नहीं है। वे सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, वे समग्र खेल जगत में लिविंग लीजेंड का दर्जा पा चुके हैं। वैसा ही, जैसा मुक्केबाजी में मोहम्मद अली का, फुटबाल में पेले का, हॉकी में ध्यानचंद का, बास्केटबाल में माइकल जोर्डन का और क्रिकेट में डान ब्रैडमैन का है।

वनडे (18,426) और टेस्ट मैचों (15921) दोनों में विश्व में सर्वाधिक रन बनाने और दोनों ही श्रेणियों में सर्वाधिक शतक (49 और 51) जमाकर 40 वर्ष की उम्र में ही क्रिकेट के पितामह का दर्जा पा चुके सचिन के पास अब और सिद्ध करने के लिए क्या बचा है? बल्लेबाजी का लगभग हर मील-पत्थर उन्होंने पार किया है। भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने ग्वालियर वनडे में सचिन के दोहरे शतक के बाद कहा था कि वे उनके पांव छूना चाहेंगे। इंग्लैंड के कप्तान नासिर हुसैन कह चुके हैं कि सचिन क्रिकेट के लीजेंड डान ब्रेडमैन से भी बड़े हैं क्योंकि ब्रैडमैन सिर्फ एक ही फारमेट के गेम में उतनी ऊंचाई पर पहुंचे जबकि सचिन ने टेस्ट के साथ−साथ वनडे और ट्वेंटी 20 फारमेट में भी अद्वितीय प्रतिभा के प्रतिमान स्थापित किए हैं। स्वयं डान ने अपने निधन से पहले उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और कहा था कि उनमें उन्हें अपनी ही झलक दिखाई देती है। ब्रिटिश अखबार 'गार्जियन' की ओर से कराए गए मतदान में लगभग 92 फीसदी क्रिकेट प्रेमियों ने सचिन को सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर करार दिया। चंदू बोर्डे, मिल्खा सिंह, सुशील कुमार और कई दूसरे खेल-दिग्गजों ने उन्हें खेल मंत्री बनाने की मांग की है। विलक्षण योग्यता और प्रतिभा के आखिर कितने प्रमाण चाहिए!

सचिन को कुछ दिन में 'भारत रत्न' से अलंकृत कर दिया जाएगा। किंतु वे अभी भी भारत के एक रत्न हैं। वे भारत की एकता को मजबूत करने वाली, उसे जोड़ने वाली शक्ति भी हैं। वे अपने निजी हितों की चिंता किए बिना देश के लिए स्टैंड ले सकते हैं। बाल और राज ठाकरे के विस्फोटक मुंबईवादी बयानों के सामने वे यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि वे एक भारतीय नागरिक पहले हैं और मुंबईकर बाद में। ऐसे देश में, जिसमें खुद सरकारें तक ऐसे तत्वों के बरक्स कोई साफ स्टैंड लेने से कतराती हैं। एमएफ हुसैन की भारत वापसी उनके जीवन के अंतिम क्षणों तक नहीं हो सकी क्योंकि राजग से लेकर संप्रग तक कोई सरकार ऐसा करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थी। ऐसे निराशाजनक माहौल में सचिन तेंदुलकर और आशा भोंसले जैसे देश के हक में निडरता से खड़े होने वाले व्यक्तित्व यकायक ही महापुरुषों की कतार में खड़े हो जाते हैं। उन्हें औपचारिक रूप से भारत रत्न न दिया जाता तब भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। उनकी उपलब्धियों, राष्ट्र के प्रति योगदान और आचरण ने तो उन्हें पहले ही 'भारत रत्न' बना दिया था।

सचिन सिर्फ इसलिए विशेष नहीं हैं कि उन्होंने अनेक दिग्गज खिलाडि़यों के रन औसत से ज्यादा रिकॉर्ड बना दिए हैं। वे इसलिए भी महान खिलाड़ी हैं कि सिर्फ 16 वर्ष की आयु में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने के बाद वे इक्कीस साल तक मैदान पर डटे रहने का दम रखते हैं। जरा याद कीजिए कि अपने कैरियर के अंतिम दिनों में कपिल देव और गावस्कर जैसे महान खिलाडि़यों का प्रदर्शन भी कितना गिर गया था! लेकिन सचिन ने तो 24 साल क्रीज पर खड़े रहने के बाद भी अपनी अंतिम पारी में अर्धशतक जमाया है। क्या उनका टिकाऊपन मानवीय क्षमताओं के चरमोत्कर्ष का प्रतीक नहीं है! और फिर उनके आचरण को देखिए। विश्व के महानतम खिलाड़ी होने के बावजूद शतक या दोहरा शतक जमाने के बाद न बल्ले को फटकारना, न शर्ट उतारकर लहराना और न गर्व से मुट्ठियां तानना। बस आसमान की ओर देखते हुए ईश्वर को धन्यवाद और दर्शकों का एक विनम्र अभिवादन। लोकप्रियता के किसी भी पैमाने पर वे भारत की बड़ी−बड़ी हस्तियों से ऊपर हैं। एक ब्रिटिश अखबार ने उन्हें 'गांधी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय भारतीय' की उपमा दी थी और संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि क्रिकेट में उनकी कमी खलेगी।

लेकिन इतनी उपलब्धियों और लोकप्रियता के बावजूद सचिन न तो टाइगर वुड्स या जान टेरी की तरह के किसी यौन−विवाद में फंसे हैं तो न हैंसी क्रोन्ये और अजहरूद्दीन की तरह मैच फिक्सिंग का आरोप ही उन पर लगा है। बल्कि राजसिंह डूंगरपुर को दिया गया उनका वह आश्वासन तो हम कभी नहीं भूल पाएंगे जब उन्होंने फिक्सिंग के कारण भारत के हारने की आशंका से चिंतित श्री डूंगरपुर से कहा था कि आप निश्चिंत रहें, मैं पराजय के शिकंजे से भारत की जीत को बाहर निकाल लाऊंगा। राजसिंह को इस बात का अहसास था कि धुरंधर सचिन अपने ही दम पर भारत को मैच जिता सकते हैं और इसीलिए उन्होंने कहा था कि ऐसे सत्य निष्ठा वाले खिलाडि़यों के होते मैच फिक्सिंग की बुराई भारत का क्या बिगाड़ेगी!

सचिन को 'भारत रत्न' देकर उनकी अद्वितीय प्रतिभा और देशभक्ति का सम्मान किया गया है। यह उनके उस दर्जे पर औपचारिकता की मोहर लगाएगा जो देश की जनता उन्हें अपने हृदय में पहले ही दे चुकी है। इसके लिए सर्वाधिक अनुकूल अवसर यही था जब सचिन ने वनडे और टेस्ट मैचों में शतकों का शतक लगाकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से गौरवशाली विदायी ली है।

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