अंग्रेजी में एक शब्द है ‘‘डोनेशन’’ जिसका
हिन्दी में अर्थ दान और चन्दा होता है, लेकिन दोनों के अर्थ सर्वथा एक
दूसरे से भिन्न है। मसलन, दान बिना मांगे, श्रृद्धा से दिया जाता है।
शास्त्रों में इसका अपना एक महत्व हैं एवं इस बाबत् यहां तक कहा गया है कि
दान देते वक्त दाएं हाथ का बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। दानदाता की
नजर नीची एवं हाथ ऊपर होता है, वही चन्दा मांगा जाता है कुछ डर एवं भय से
तो कुछ स्वार्थ पूर्ति एवं सिद्धि के लिए देते हैं। राजनीति में चन्दा एक
इन्वेस्टमेंट है, चन्दा आगे काम कराने के लिए घूस है? चन्दा अधिकारत्व को
बढ़ाता है, चन्दा उद्योगपतियों के लिए मनमाफिक कार्य एवं नीति बनाने के लिए
पूर्व भुगतान हैं?
6 राष्ट्रीय दलों की बढ़ती अकूत धन सम्पदा का तिलिस्मी खजाना अब
आम आदमी की नजरों में न केवल एक पहेली बनता जा रहा है बल्कि इस तिलिस्म को
तोड़ने एवं रहस्यों को जानने की उत्सुकता, राजनीतिक पार्टियों के लिए
भविष्य में एक संकट के रूप में भी जानकार इसे देख रहे हैं।
यूं तो जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 298 के तहत् राजनीतिक पार्टियां किसी भी व्यक्ति, कम्पनी से चन्दा ले सकती है लेकिन देश के बाहर से विदेशी भागीदारी रेग्यूलेशन एक्ट 1976 सेक्शन-2 (ई) के तहत् कोई भी राशि चन्दा के रूप में स्वीकार नहीं कर सकेंगे। इसी के साथ जनप्रतिनिधित्व एक्ट के सैक्शन 29 के तहत् प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 20 हजार से ज्यादा प्राप्त धन राशि की रिर्पोट तैयार करनी होगी, साथ ही साथ इसी एक्ट के 29 (स) के तहत् 20 हजार से ज्यादा प्राप्त चन्दा देने वालों की राशि को चुनाव आयोग के साथ इनकम टैक्स विभाग को भी फार्म 24 (अ) टैक्स छूट के लिए जमा करना होता है। म्पनी एक्ट 1956 के सेक्शन 293 (अ) के अनुसार कोई भी कम्पनी उसके अस्तित्व के 3 वर्ष बाद ही चन्दा दे सकेगी पहले नहीं। तीन वर्ष बाद भी कम्पनी अपने लाभ का 5 प्रतिशत तक ही चन्दा दे सकती है। इस बात को कम्पनी को कम्पनी एक्ट 293 (अ) के तहत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की अनुमति के साथ उजागर करना होगा वहीं कम्पनी एक्ट 293 अ (प) के अनुसार शासकीय कम्पनी से चन्दा राजनीतिक पार्टियों से नहीं ले सकेगी।
यूं तो जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 298 के तहत् राजनीतिक पार्टियां किसी भी व्यक्ति, कम्पनी से चन्दा ले सकती है लेकिन देश के बाहर से विदेशी भागीदारी रेग्यूलेशन एक्ट 1976 सेक्शन-2 (ई) के तहत् कोई भी राशि चन्दा के रूप में स्वीकार नहीं कर सकेंगे। इसी के साथ जनप्रतिनिधित्व एक्ट के सैक्शन 29 के तहत् प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 20 हजार से ज्यादा प्राप्त धन राशि की रिर्पोट तैयार करनी होगी, साथ ही साथ इसी एक्ट के 29 (स) के तहत् 20 हजार से ज्यादा प्राप्त चन्दा देने वालों की राशि को चुनाव आयोग के साथ इनकम टैक्स विभाग को भी फार्म 24 (अ) टैक्स छूट के लिए जमा करना होता है। म्पनी एक्ट 1956 के सेक्शन 293 (अ) के अनुसार कोई भी कम्पनी उसके अस्तित्व के 3 वर्ष बाद ही चन्दा दे सकेगी पहले नहीं। तीन वर्ष बाद भी कम्पनी अपने लाभ का 5 प्रतिशत तक ही चन्दा दे सकती है। इस बात को कम्पनी को कम्पनी एक्ट 293 (अ) के तहत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की अनुमति के साथ उजागर करना होगा वहीं कम्पनी एक्ट 293 अ (प) के अनुसार शासकीय कम्पनी से चन्दा राजनीतिक पार्टियों से नहीं ले सकेगी।
एडीआर 2004-05 से जुलाई 2012 तक पांच राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा
प्राप्त चन्दे का विश्लेषण कर रिपोर्ट बनाई जिसके अनुसार विगत 7 वर्षों में
कांग्रेस 2008 करोड़ रूपये भाजपा 994 करोड़ रूपये, बसपा 484 करोड़ रूपये,
सी. पी. एम. 417 करोड़ रूपये, सपा 279 करोड रूपये, इकटठा किया। 2009-10 एवं
2010-11 में राजनीतिक पार्टियों ने कुल आय का भाजपा 22.76 प्रतिशत, 11.89
कांग्रेस एवं एन. सी. पी. 4.64 प्रतिशत, सी.पी.एम. 1.29 प्रतिशत ने ज्ञात
स्रोत को ही बताया। वही बसपा ने 20 हजार से ज्यादा किसी से धन लिया ही नहीं
जबकि 2009-10 एवं 2010-11 में 172.67 करोड रूपये, चन्दा एकत्रित करने का
आंकड़ा दर्शा रही है। सी. पी. एम. ने 57.02 प्रतिशत 20 हजार से ज्यादा दान
दाताओं को ही दिखाया हैं।
एडीआर के उक्त आंकडो से एक बात तो साफ उभर कर आती है कि सभी राजनीतिक पार्टियां अज्ञात धन के स्त्रोतों को तो छिपाना ही चाहती है। कही यही तो ‘‘काला धन’’ नहीं है? पारदर्शिता का जमाना है लोग जागरूक हो रहे है। होना तो यह भी चाहिए कि प्रत्येक दानदाता/चन्दा देने वाले का नाम पार्टी की वेब साइट पर प्रदर्शित किया जावें ताकि आयकर विभाग को भी सही आंकलन करने में न केवल सुगमता हो बल्कि देश के विकास की योजनाओं को भी सही-सही आंकलन कर बनाया जा सकें।
यूं तो अरविन्द केजरीवाल पर विदेशी चन्दा को ले जांच चल रही है लेकिन केजरीवाल ने वेबसाइट पर सभी चन्दा देने वालों को नाम डाल कर अन्य पार्टियों के सामने न केवल चुनौती दे एक बड़ी समस्या को अनजाने में ही खडी कर दी है बल्कि उनके द्वारा वर्षों से चन्दे इकटठा करने की प्रक्रिया एवं उनके द्वारा एकत्रित धन राशि से पर्दा हटाने के लिए मजबूर करने का भी दुःसाहस किया है। इसी के चलते बड़े-बडे राजनीति के मगरमच्छों ने केजरीवाल को कभी सीधे तो कभी अन्ना आंदोलन में एकत्रित चन्दे के माध्यम से घेरना शुरू कर दिया हैं।
दिये गये चन्दे की राशि 1 रूपया हो या लाख, करोड़ या इससे भी अधिक हिसाब तो हिसाब होता है। बड़ी पार्टियों का यह कुर्तक कि ‘‘आप’’ जैसी छोटी पार्टियों को लेखा-जोखा वेबसाइट के माध्यम से प्रदर्शित करना आसान है लेकिन बड़ी पार्टियों को मुश्किल है, मुश्किल हो सकता है। लेकिन असंभव नहीं है। आज आम आदमी को यह जानने का पूरा हक है कि चन्दा दाता कौन-कौन और कितने है ताकि चन्दा देने वाले एवं लेने वलों के आयकर रिर्टन, आय-व्यय के बीच काले धन के प्रवाह की संजीवनी अच्छे-अच्छे जनहित के निर्णय दे रही है जिससे घाघ राजनीतिक पार्टियां भी खतरा महसूस कर रही है। दिल्ली हाईकोर्ट का 23 अक्टूबर 2013 का ‘‘आम’’ पार्टी के विदेश से मिले चन्दे के स्त्रातों की जांच का फैसला देर सबेर, ‘‘चन्दे की जमा खोरी’’ के इतिहास में एक ’’मील का पत्थर’’ साबित होगा। अब वक्त आ गया है कि निर्वाचन आयोग को भी अपने कानूनों में पारदर्शिता के लिए बदलाव लाना होगा। मसलन प्रत्येक चन्दा दाता का नाम उजागर करने की बाध्यता होनी ही चाहिए।
एडीआर के उक्त आंकडो से एक बात तो साफ उभर कर आती है कि सभी राजनीतिक पार्टियां अज्ञात धन के स्त्रोतों को तो छिपाना ही चाहती है। कही यही तो ‘‘काला धन’’ नहीं है? पारदर्शिता का जमाना है लोग जागरूक हो रहे है। होना तो यह भी चाहिए कि प्रत्येक दानदाता/चन्दा देने वाले का नाम पार्टी की वेब साइट पर प्रदर्शित किया जावें ताकि आयकर विभाग को भी सही आंकलन करने में न केवल सुगमता हो बल्कि देश के विकास की योजनाओं को भी सही-सही आंकलन कर बनाया जा सकें।
यूं तो अरविन्द केजरीवाल पर विदेशी चन्दा को ले जांच चल रही है लेकिन केजरीवाल ने वेबसाइट पर सभी चन्दा देने वालों को नाम डाल कर अन्य पार्टियों के सामने न केवल चुनौती दे एक बड़ी समस्या को अनजाने में ही खडी कर दी है बल्कि उनके द्वारा वर्षों से चन्दे इकटठा करने की प्रक्रिया एवं उनके द्वारा एकत्रित धन राशि से पर्दा हटाने के लिए मजबूर करने का भी दुःसाहस किया है। इसी के चलते बड़े-बडे राजनीति के मगरमच्छों ने केजरीवाल को कभी सीधे तो कभी अन्ना आंदोलन में एकत्रित चन्दे के माध्यम से घेरना शुरू कर दिया हैं।
दिये गये चन्दे की राशि 1 रूपया हो या लाख, करोड़ या इससे भी अधिक हिसाब तो हिसाब होता है। बड़ी पार्टियों का यह कुर्तक कि ‘‘आप’’ जैसी छोटी पार्टियों को लेखा-जोखा वेबसाइट के माध्यम से प्रदर्शित करना आसान है लेकिन बड़ी पार्टियों को मुश्किल है, मुश्किल हो सकता है। लेकिन असंभव नहीं है। आज आम आदमी को यह जानने का पूरा हक है कि चन्दा दाता कौन-कौन और कितने है ताकि चन्दा देने वाले एवं लेने वलों के आयकर रिर्टन, आय-व्यय के बीच काले धन के प्रवाह की संजीवनी अच्छे-अच्छे जनहित के निर्णय दे रही है जिससे घाघ राजनीतिक पार्टियां भी खतरा महसूस कर रही है। दिल्ली हाईकोर्ट का 23 अक्टूबर 2013 का ‘‘आम’’ पार्टी के विदेश से मिले चन्दे के स्त्रातों की जांच का फैसला देर सबेर, ‘‘चन्दे की जमा खोरी’’ के इतिहास में एक ’’मील का पत्थर’’ साबित होगा। अब वक्त आ गया है कि निर्वाचन आयोग को भी अपने कानूनों में पारदर्शिता के लिए बदलाव लाना होगा। मसलन प्रत्येक चन्दा दाता का नाम उजागर करने की बाध्यता होनी ही चाहिए।
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