22 November 2013

थिंक इंडिया या थिंक सेक्स ?

गोवा का मनोरम समुद्री किनारा। किनारे पर एक शानदार पंच सितारा होटल ग्रैण्ड हयात। उसी होटल के कांफ्रेस रूम में देश को संचालित करनेवाले कथित बुद्धिजिवीयों, पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों का लक दक जमावड़ा। देश की दशा और दुर्दशा पर बड़ी गहराई से विचार विमर्श करने के लिए जनपक्षधरता की पत्रकारिता का दावा करनेवाले तहलका की ओर से एक तीन दिवसीय कांफ्रेस रखी गई थी। 8 से लेकर 10 नवंबर। इस पूरे आयोजन को थिंक इंडिया 2013 का नाम दिया गया था। तहलका की पहल पर आयोजित इस वैचारिक विमर्श को सार्थक बनाने के लिए एक से एक लोगों को निमंत्रित किया गया। जिसमें देश के वित्त मंत्री पी चिदम्बरम से लेकर उद्योगपति विजय माल्या तक एक से एक जानी मानी हस्तियां शामिल थीं। जावेद अख्तर भी थे। अमिताभ बच्चन भी। मेधा पाटकर भी थीं तो मौलाना मदनी भी। योगेन्द्र यादव थे तो विनोद राय भी। विचार विमर्श के बाद टशन वाले गाने शाने और दारू शारू का भी भरपूर इंतजाम। 

इधर दिल्ली में देश के दो बड़े मीडिया समूहों इंडिया टुडे ग्रुप और हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप ने इस बात को स्थापित कर दिया है कि देश के बारे में विचार विमर्श करने के लिए न्यूज रूम बहुत बेकार सी जगह है। इसके लिए किसी पंचसितारा होटल में बैठना पड़ता है। वहां देश विदेश के कुछ चर्चित और बड़े नामों को बुलाना पड़ता है। तब राष्ट्रीय समस्याओं का बेहतरीन समाधान हमारे सामने आ पाता है। बिल्कुल इलिट तरीके से।

टुंटपुजिया पत्रकार या दो पांच सौ रूपये की जुगत लगाये पेडन्यूजिया पत्रकार ऐसी बातों को समझ नहीं सकते हैं इसलिए उसे बहुत हाई फाई तरीके से आयोजित भी किया जाता है और प्रचारित भी किया जाता है। क्योंकि ऐसे महान काम बिना कंपनियों और कारपोरेट घरानों को अंजाम नहीं दिये जा सकते इसलिए दिल्ली में दलाली के जरिए अपने फंसे काम निकलवाने की फिराक में बैठे अधिकांश कारपोरेट घराने तड़ से विज्ञापन देकर वहां पहुंचने का पास हासिल कर लेते हैं जहां राजनीति, नौकरशाह थोक में भरे रहते हैं। पंचसितारा माहौल में ज्ञान की बातों के बीच दलाली के दो चार काम भी आसानी से निपटा लिये जाते हैं।

बौद्धिक चिंतन का यह भरा पुरा 'इलिट मॉडल' इतना बुरा भी नहीं है। शायद इसीलिए आम आदमी की पत्रकारिता का दावा करनेवाले तहलका फाउण्डेशन ने चंदे के अलावा ऐसे इलिट आयोजन का बीड़ा उठा लिया। यह तीसरा साल था जब थिंक इंडिया का आयोजन किया गया। इंडिया टुडे और हिन्दुस्तान टाइम्स की तर्ज पर दिल्ली की बजाय गोवा को चुना गया। शायद मनोविदों की इस बात का पूरा ख्याल रखा गया कि मादकता के बिना बौद्धिक चिंतन अवरुद्ध हो जाया करता है। इसलिए गोवा के 'मादक माहौल' में देश की समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए आठ से दस नवंबर के दौरान कुल 65-70 ख्यातनाम वक्ताओं और प्रवक्ताओं ने गोवा में गहन चिंतन मनन किया। चिंतन मनन करने के बाद थक चुके वक्ताओं और बुद्धिजीवियों के लिए 'दारू शारू' का समंदर भी लहराया गया और किसी दिन आरिफ लोहार का जुगनी सुनाकर सुलाया गया तो किसी दिन रेमो फर्नांडीज का पंजाबी पॉप सुनाकर हिलाया डुलाया गया।

इसी हिलने डुलने के क्रम में शायद तहलका वाले तेजपाल भी हिल गये। अपने ही यहां काम करनेवाली एक नौजवान पत्रकार पर हाथ फेर बैठे। एक दिन नहीं, दो दिन। कोई कह रहा है कि वह नौजवान महिला पत्रकार उनके बेटी की दोस्त है तो कोई बता रहा है कि वह उनके दोस्त की बेटी है। बात जो भी हो, दोनों ही तर्कों में दो बातें समान है। बेटी और दोस्त। लेकिन तहलकावाले तेजपाल पर गोवा में बौद्धिंक चिंतन और कॉकटेल का नशा ऐसा मिश्रित हो गया कि न तो वे बेटी पहचान पाये और न ही दोस्त। और तो और वे यह भी भूल गये कि जिस लड़की के साथ वे जोर जबर्दस्ती कर रहे हैं वह शायद उन्हें पत्रकारिता का आदर्श मानकर ही तहलका में नौकरी कर रही होगी।

लेकिन इलिट चिंतन के दायरे में ऐसी छोटी मोटी बातों को बहुत महत्व नहीं दिया जाता। यह सब तो मिडिल क्लास और थर्ड क्लास मानसिकता है। बौद्धिक चिंतन इलिट क्लास का काम है जो कि बिना शराब और सेक्स के संभव नहीं हुआ करता है। संभावना अधिक से अधिक बनी रहे इसलिए पुरानी शराब और नये सवाब तक सबकुछ का जबर्दस्त इंतजाम किया जाता है। उम्र की सीमाएं और नैतिकता के बंधन से ऊपर उठकर बौद्धिक आदान प्रदान हुआ करता है। सब 'इलिट क्लास' की बाते हैं। दो जून की रोटी की जुगत में दोहरे होते जिस्मों के लिए ये सब आसमानी किस्से हैं। लेकिन शायद इस लड़की के अभी 'इलिट' हो जाने में कोई कसर रह गई थी, सो गोवा से लौटकर उसने तरुण की शिकायत सोमा से कर दी।

सोमा यानी सोमा चौधरी। तरुण तेजपाल के तहलका की प्रबंध संपादक। बात आंतरिक रूप से बढ़ी तो तेजपाल ने विदेशी अंदाज में किये गये पाप का देशी अंदाज में प्रायश्चित करने का ऐलान कर दिया। नतीजा छह महीने का अवकाश। शुद्धिकरण के इन छह महीनों की तपस्या का ऐलान तो शायद उन्होंने इसलिए किया होगा कि भूल चूक लेनी देनी हो जाएगी लेकिन भूल चूक वास्तव में उनके ऊपर लेनी देनी बनकर टूट पड़ा।

जिस गोवा में तेजपाल ने पैसा बटोरने के लिए कारपोरेट चिंतन शिविर का आयोजन किया था, तेजपाल के ही दुर्भाग्य से वहां बीजेपी की सरकार ठहरी। तेजपाल के प्रायश्चितनुमा पत्र को आधार बनाकर वहां की पुलिस ने स्वयं ही शिकायत दर्ज कर ली। जांच भी शुरू कर दी गई। बयान भी शुरू कर दिये गये। क्यों न हो, तेजपाल ने बीजेपी के दामन पर जो दाग लगाया था, उसको धोने का इससे शानदार मौका और क्या हो सकता है? बीजेपी के अलावा कांग्रेस बहुत सतर्क है। आमौतर पर बयान देकर पता नहीं क्या बोल जानेवाले मनीष तिवारी बयान देतेवक्त गोवा में ही थे, इसलिए उन्होंने कुछ बयान तो दिया है, लेकिन अपने बयान में उन्होंने क्या कहा है इसे समझने के लिए बहुत समझदारी से कोई जांच आयोग बिठाना पड़ेगा।

बीजेपी और कांग्रेस की कहानी तो अलग लेकिन तरुण तेजपाल को आसानी से सेक्स चिंतन से मुक्ति नहीं मिलेगी। दिल्ली की चलती हुई बस में शराब के शिकार कुछ नौजवानों ने एक युवती को अपना शिकार बनाया था, कुछ कुछ उसी अंदाज में तेजपाल ने भी धुत होकर बुत बन गये। काम तो उन्होंने भी वही किया जो दिल्ली की चलती हुई बस में कुछ 'दरिंदों' ने किया था, बस फर्क सिर्फ इतना है कि तरुण के हाथों में लोहे की छड़ की उनकी अपनी खुद की अंगुलियां मौजूद थी।

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