जो व्यक्ति जनता को झूठा सपना दिखाए और अपने
उत्तम चरित्र का बखान करते हुए देश के भ्रष्टाचारियों को समूल नष्ट करने के
नारे लगाए, बाद में प्रपंच का सहारा लेकर जब वही व्यक्ति अपने मूल चरित्र
में आ जाए, तो उसे आप क्या कहेंगे? कम से कम झूठा और धोखेबाज तो कहेंगे ही।
आम आदमी पार्टी की सबसे अमीर उम्मीदवार शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास की
सच्चाई सामने आने के बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अब इसी
श्रेणी में शामिल होते दिख रहे हैं। भले ही वे अपने आपको आम आदमी का
उम्मीदवार बताते हों लेकिन वास्तव में वे खास लोगों के सिपहसालार हैं।
संसद और विधानसभाओं में पहुंचे करोड़पतियों को लानत भेजने और इन
करोड़पतियों के हाथ लोकतंत्र को बेचने का आरोप तमाम पार्टियों पर लगाने वाले
केजरीवाल अब उसी रास्ते पर चल निकले हैं। करोड़पति नेताओं पर बात-बात में
उंगली उठाने वाले केजरीवाल खुद तो करोड़पति हैं ही, दिल्ली विधानसभा चुनाव
में सरकार बनाने का दावा करने उनकी पार्टी के दो दर्जन से ज्यादा ऐसे
उम्मीदवार चुनाव में हैं, जो दूसरी पार्टियों के करोड़पतियों को भी मात दे
रहे हैं। सच्चाई यही है कि आप पार्टी के 24 उम्मीदवार करोड़पति क्लब के
सदस्य हैं। करोड़पतियों की मुखालफत करने वाले केजरीवाल के इस दोहरे चरित्र
का हम खुलासा करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछ और जानकारियां ले लें।
देश के अन्य राज्यों के मुकाबले दिल्ली में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय
2.01 लाख रुपये है, तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की दौलत होश उड़ाएगी ही।
पिछले सप्ताह दिल्ली में नामांकन दाखिल करने वाले करीब 66 फीसदी उम्मीदवार
करोड़पति हैं। विदेशों से मिल रहे चंदे को लेकर आरोपों से घिरी उलझी आम
आदमी पार्टी के भी करीब 24 उम्मीदवार करोड़पति क्लब के सदस्य हैं। राजधानी
में रण के लिए मैदान में उतरे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कांग्रेस से
शीला दीक्षित, आप से अरविंद केजरीवाल व भाजपा से डॉ़ हर्षवर्धन की बात की
जाए, तो तीनों ही उम्मीदवार करोड़पति हैं। बिजवासन से भाजपा उम्मीदवार
सत्यपाल राणा पिछले चुनाव के मुकाबले सोलह सौ फीसदी वृद्घि कर 100 करोड़ के
क्लब में शामिल हो गए हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष अमरीश तो पिछले चुनाव में
8़3.5 लाख रुपये के स्वामी थे, जिनकी संपत्ति इस बार बढ़कर 1.15 करोड़ रुपये
तक पहुंच गई है।
आम आदमी पार्टी की सबसे अमीर उम्मीदवार का नाम है शाजिया इल्मी। शाजिया
इल्मी और उनके पति के पास लगभग 32 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है। इनके
अलावा उत्तम नगर से प्रत्याशी देशराज राघव के पास 12 करोड़ रुपये की
संपत्ति, नरेला से चुनाव लड़ रहे बलजीत सिंह मान के पास 8 करोड़ 67 लाख
रुपये, महरौली के नरेंद्र सिंह के पास 3 करोड़ 7 लाख रुपये, मादीपुर से
गिरिश सोनी के पास 1 करोड़ 25 लाख रुपये, राजौरी गार्डन से प्रीतपाल सिंह के
पास 1 करोड़ 70 लाख रुपये, तिलक नगर से जरनैल सिंह के पास 1 करोड़ 70 लाख
रुपये, विकासपुरी से महेन्द्र यादव के पास 1 करोड़ 57 लाख रुपये, कालकाजी से
धर्मवीर सिंह के पास 1 करोड़ 4 लाख रुपये की चल-अचल संपत्ति है। आप के 34
प्रत्याशियों में से लगभग 45 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं।
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कल तक दूसरी पार्टियों के
नेताओं और करोड़पतियों की पोल खेलने के लिए जाने जाते थे, मगर आज उनकी
पार्टी ही करोड़पतियों को टिकट देकर चर्चा में है। आप के नेता अरविंद
केजरीवाल को आप इसी श्रेणी में रख सकते हैं। आयकर विभाग की नौकरी छोड़कर
राजनीति करने वाले केजरीवाल 2004 से लेकर 2011 तक 8 अवार्ड जीत चुके हैं।
इस अवार्ड में मेग्सैसे पुरस्कार भी शामिल है। लगता है कि केजरीवाल इसी
अवार्ड को बेचकर लोगों में अपनी ईमानदारी का सबूत देते फिर रहे हैं, लेकिन
सवाल है कि क्या ईमानदार लोगों को ही मैग्सेसे अवार्ड मिलते हंै। इस अवार्ड
को लेने वाले कई लोगों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। आरोप के घेरे
में तो केजरीवाल भी हैं। आयकर विभाग में नौकरी करते हुए केजरीवाल 2002 से
2004 तक के लिए 2 साल की पढ़ाई करने विदेश गए थे। सरकारी पैसे पर पढ़ाई करने।
जनता के पैसों पर ज्ञान लेने, लेकिन वहां से लौटे, तो इन्हें नौकरी से
विरक्ति हो गई। ज्ञान लेने के बाद कानूनन इन्हें दो साल तक नौकरी में रहते
हुए देश की सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन इन्होंने नहीं की। एनजीओ बनाकर जनता
की जज्बात से खेलने लगे। सरकार ने इन्हें नोटिस दिया कि ट्रेनिंग लेने के
बाद उन्हें कानून के मुताबिक दो साल की नौकरी करनी थी। अगर वे ऐसा नहीं
करते, तो विदेश में उनके ज्ञान प्राप्ति के लिए लगभग नौ लाख रुपये खर्च किए
गए हैं, वह वापस ली जाएगी। याद रहे केजरीवाल विदेश से 2004 में वापस लौट
गए थे, लेकिन 2006 तक ये नौकरी से इस्तीफा नहीं दे पाए थे। क्या यह कानून
का उल्लंघन नहीं था? क्या देश की जनता के धन के साथ धोखा नहीं था? याद रहे
इसी धोखे के समय में उन्हें मैग्सेसे अवार्ड भी मिला। क्या एक धोखेबाज को
मैग्सेसे आवार्ड मिल सकता है? फिर इसी केजरीवाल ने सरकार से नोटिस मिलने के
बाद उतनी राशि वापस भी की, जितनी राशि उन पर विदेशों में खर्च हुई थी। अगर
सरकार की ओर से उन्हें नोटिस नहीं मिलता, तो क्या वे राशि अपने मन से
लौटाने वाले थे? इस पूरे खेल के बाद उनका तर्क था कि वे जिस पद पर सरकारी
नौकरी कर रहे थे, वह कमाऊ पद था, लेकिन उन्होंने जनता की सेवा के लिए उसे
ठुकरा दिया।
क्या केजरीवाल बता पाएंगे कि देश में उनके जैसा और ईमनादार अधिकारी जनता
की सेवा करने के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति करने लगे? जिस भ्रष्टाचार
के खिलाफ वे आवाज उठा रहे हैं, अपने विभाग में रहकर वहां के भ्रष्टाचार को
उन्होंने समाप्त क्यों नहीं किया? क्या खेमका जैसे अधिकारी अपना काम नहीं
कर रहे हैं? लगता है कि केजरीवाल ने अन्ना का भी केवल यूज ही किया है।
अन्ना के साथ रहते हुए वे राजनीति का विरोध करते रहे और जब देखा कि अब उनके
खेल के मुताबिक, माहौल तैयार हो चुका है, तो राजनीतिक पार्टी लेकर मैदान
में उतर आए। जिस लोकपाल बिल लाने की बात केजरीवाल और उनके साथी कर रहे हैं,
उसकी रूपरेखा तो 1966 में ही बनी थी। शांति भूषण ने इस पर काम किया था।
वही शांति भूषण 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मंत्री भी थे, लेकिन वे
वहां इस पर अमल नहीं कर पाए। आज केजरीवाल जो भी राजनीति करते दिख रहे हैं,
उसमें केवल उनकी एक अलग नई पार्टी का उदय तो माना जा सकता है, लेकिन उनके
वोट जुटाने के जो भी तिकड़म हैं, वे सभी दलों से ज्यादा झूठ पर आधारित हैं।
इन्हीं केजरीवाल की पार्टी की एक उम्मीदवार है शाजिया इल्मी। पेशे से
बेहतर पत्रकार रही साजिया की राजनीति कितनी बुलंद होगी, कहना मुश्किल है,
लेकिन इतना तय है कि 2011 के जिस अन्ना आंदोलन की वह हिस्सा बनी थीं और
अपनी छवि को जनता के सामने पेश किया था, अब उसमें भी वह बात नहीं रह गई है।
भ्रष्टाचार और अमीरों की राजनीति पर अंगुली उठाने वाली शाजिया की
पारिवारिक पृष्ठभूमि तो राजनीति की ही रही है। कानपुर की रहने वाली साजिया
के पिता उर्दू अखवार सियासत जदीद के संपादक रहे हंै। बचपन में ही साजिया को
कैफी आजमी और राजनारायण जैसे नेता की राजनीति देखने को मिली है। बेहतर
स्कूल कॉलेजों में पढ़ाई कर पहले पत्रकार और फिर सामाजिक कार्यकर्ता के साथ
राजनीति में उतरने वाली साजिया की शादी एक गुजराती बैंकर से हुई। साजिया अब
सवालों के घेरे में हैं। पानी पी-पी कर करोड़पतियों को कोसने वाली शाजिया
को पहले यह नहीं मालूम था कि उसे राजनीति भी करनी है। जब वह राजनीति में
आर्इं, तो दिल्ली वालों की नजरें अब उनकी संपत्ति पर चली गई है। वे लगभग 30
करोड़ से ज्यादा की संपत्ति की मालकिन हैं। भला एक करोड़पति गरीबों और आम
लोगों की राजनीति कैसे कर सकती है? केजरीवाल टीम में और भी ऐसे लोग हैं,
जिनकी सच्चाई चुनाव के बाद सामने आएगी।
केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह के उम्मीदवार उतारे हैं,
उसे देखकर तो उनकी ईमानदारी पर तो सवाल उठेंगे ही। दिल्ली की राजनीति में
एक नई राजनीति का दम भरने वाले आप पार्टी के नेता केजरीवाल जनता को बरगलाने
वाले ज्यादा लग रहे हैं। जो व्यक्ति राजनीति में आने से पहले देश की जनता
के साथ भ्रष्टाचारियों और करोड़पतियों के खिलाफ आवाज उठाकर जनता की भावना को
दोहन करता है और बाद में अपने मूल चरित्र में आकर उन्हीं भ्रष्टाचारियों
और करोड़पतियों के साथ चुनावी मैदान में नर्तन करने के लिए उतरता है, उस
चरित्र का और आप पार्टी का अंजाम क्या होगा, यह देखने की बात होगी। विचित्र
है हमारा समाज और समाज के लोग। यह समाज अपने ही बनाए कानून को कभी तोड़ता
है, तो कभी सामाजिक नैतिकता की बात करता है। दूसरे को चोर और अपने को साधु
बताने की परंपरा हमारे समाज की विशेषता है। मगर चोर और साधु जैसे शब्दों का
प्रयोग तब तक किया जाता है, जब तक कि किसी को डैमेज करने और अपने को शीर्ष
पर ले जाना हो। इस खेल में मूर्ख हमेशा जनता को ही बनाया जाता है। सच यही
है कि हमारे देश की जनता सदा से ही नेताओं के इशारों पर मूर्ख बनती रही है।
केजरीवाल ने जनता को मूर्ख बनाया है और संभव है कि जनता उन्हें महामूर्ख
बना दे।
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