भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी अन्याय आज देश में ज्वालामुखी की तरह जवां होकर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों और नेताओं को ललकार रही है। नवीन भारत के निर्माता, एकता के शिल्पी और भारतीय जनमानस में किसान की आत्मा कहे जाने वाले पटेल के साथ हुए नाइंसाफी को लेकर आज देश ये सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या पटेल के साथ अन्याय हुआ है?
सवाल इसलिए भी जायज है कि क्योंकि आजादी के 66 साल बाद देश में एक बार फिर से धर्मनिरपेक्षता बनाम संप्रदायिकता की जंग अपने चरम सिमा पर है। साथ ही देश को तोड़ने वाली ताकतें आग में घी डाल राष्ट्रीय एकता और अखंडता को चुनौती दे रही है। ऐसे में पटेल की भूमीका आज के दौर में पहले से कही जयादा उपयोगी नजर आने लगी है। गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल की पलही प्राथमीकता थी 562 देसी रियासतों को भारत में मिलाना। इस चुनौति को उन्होने बखूबी निभाया। बिना कोई खून बहाये। मगर इनमे से सिर्फ एक राज्य को मिलाने का कार्य पंडीत नेहरू ने अपने हाथों में लिया जिसमें वे असफल रहे। केवल जम्मू एवं काश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने बिलय करने से इंकार कर दिया। जूनागढ के नवाब को जब पटेल ने हड़काया तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि क्या मर्जी है? राजा कांप उठा, और बिलय पर राजी हो गया।
किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह रियासत एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है। पटेल की यही काबिलियत और दूरदृश्टि नेहरू के आगे पटेल की छबी लौहरूश के रूप में प्रतीत होती है। विश्व के इतिहास में पटेल जैसा एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। यही करण है की मोदी इस दूरदृश्टा की उचाईयों को पूरे विश्व में सबसे उंचा स्थान देने चाहते है। पिछले चार सालों के दौरान यूपीए सरकार ने पटेल की जयंती पर 8.5 करोड़ रुपए खर्च किए हैं मगर एक भी मूर्ति कही पे नहीं लगवाये गये। दिल्ली में सिर्फ एक सड़क पटेल के नाम पर है जबकी गांधी नेहरू परिवार के नाम पर हजारों संस्थान और लाखों प्रतिमाएं देश भर में मौजूद है।
प्रांतिय चुनाव में प्रधानमंत्री बनाने के लिए सबसे जयादा वोट पटेल को मिले थे। खुद महात्मा गांधी सरदार पटेल को भारत के प्रधान मंत्री बनाने के लिए तैयार थे, साथ ही चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव रखा था। फिर भी इनसब बातों को नजर अंदाज करके नेहरू को प्रधान मंत्री बनाया गया। भारत के रक्तहीन क्रांति के योध्दा और हिन्दू ह्मदय के कूटनीतिज्ञ सरदार पटेल के साथ जिस प्रकार अन्याय हुआ उसको लेकरदेशवाशियों का ह्मदय दर्द और गुस्से में बार बार मन और दिल को कचोटता है। इस कचोट से निकली आवाज, आज ये सवाल खड़ा करता है कि पटेल के साथ वाकई अन्याय हुआ है?
1947 में दंगों के दौरान, पटेल ने सैकड़ों मुस्लिमों को लालकिले में रखा और वे उनकी रक्षा के लिए पुणे और मद्रास प्रांत से सेना को बुलाकर उनकी जान बचाई। मगर आज तथाकथित सेकुलर धर्मनिरपेक्षता की चोला ओढ़ कर पटेल को नजर अंदाज करने से नहीं चुक रहे है। नब्बे के दशक में कुर्मी समुदाय की हर रैली में सरदार पटेल का पोस्टर होता था। मगर आज उसी समुदाय के प्रतिनिधित्व करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आज पटेल संप्रदायिक दिखने लगे है। मतलब साफ है चाहे इतिहास हो या वर्तमान सब ने पटेल को प्यादा बनाया, और जब जरूरत पुरा हुआ तो इतिहास बता कर भूल गये। ऐसे में आज ये सवाल जायज हो चला है कि क्या पटेल के साथ अन्याय हुआ ?
नेहरू बनाम पटेल
जुना गढ़ और कश्मीर को भारत में मिलाने पर नेहरू ने विरोध किया था, जबकी पटेल ने समर्थन किया था। सोमनाथ मंदिर निर्माण प्रस्ताव को नेहरू ने संसद में विरोध किया था, जबकी पटेल ने समर्थन किया था। पटेल ने बिना किसी समस्या के 561 रियासतों को सफलता पूर्वक एक साथ मिलाया जबकी नेहरू सिर्फ कश्मीर को मिलाने का जिम्मा लिया मगर फिर भी उसे पूर्ण रूप से कामयाबि नहीं मिली। दिल्ली में सिर्फ एक सड़क का नाम पटेल के नाम पर है, जबकी नेहरू के नाम पर सैकड़ो संस्थान के नाम और मुर्ति मौजूद है। नेहरू कोई भी काम नियम षर्तो को नजर अंदाज कर फैसला लेना चाहते थे, जबकी पटेल हमेशा कानून के साथ नेहरू को चलने के लिए बाध्य करते थे।
अजमेर दंगा में नेहरू राजनीतिक हस्तक्षेप करना चाहते थे, जबकी पटले ऐसा करने से नेहरू को मना कर दिया। 1947 से लेकर 1950 तक लगातार नेहरू को मुस्लिम बिरोधी बताने का कांग्रेस पार्टी की ओर से होता रहा, जबकी नेहरू को मुस्लिमों का हितैषी! पटेल ने संविधान की धारा 294 और 292 में आरक्षण का विरोध किया था जबकी, नेहरू ने इसका समर्थन किया था। नेहरू ने दिल्ली के दंगा में पटेल को दोशी ठहराने की कोशिस की मगर, जबकी गलती नेहरू और दिल्ली पुलिस की थी।
नेहरू ने सिंध्द पाकिस्तान को देने के लिए तैयार थे मगर पटेल ने संसद में इसका विरोध्द किया था। बटवारे के समय नेहरू ने पाकिज्ञतान को को 55 हजार करोड़ रूपये देने की बात स्वीकार किए, जबकी पटेल ने इसका विरोध किया। चक्रचर्ती राजगोपालाचारी ने पटेल को प्रधान मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा जबकी नेहरू इसे नजरअंदाज कर खुद प्रधान मंत्री बन गए।
1950 में पंडित नेहरू को पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था जबकी नेहरू ने इसे नजर अंदाज किया था। मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना की तरफ से पाकिस्तान की मांग को नेहरू ने समर्थन किया था, जबकी सरदार पटेल ने उसका विरोध किया था। नेहरू की गलतनीतियों से देश 343 हजार करोड़ के विदेशी कर्ज से दब गया। सरदार पटेल चाहते थे कि हमारा देश कर्ज से मुक्त हो।
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