31 October 2013

सरदार के कितने दावेदार ?

सरदार सरोवर में लौहपुरुष की प्रतिमा बनाने के लिए देश भर से लोहा मांगा जा चुका है। लेकिन लोहा भले ही देश का हो, बनानेवाले कारीगर हाथ देशी नहीं बल्कि विदेशी होंगे। दुनिया की सबसे ऊंची सरदार की प्रतिमा तैयार करने जा रही गुजरात सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी भले ही देश के पांच लाख परिवारों से थोड़ा थोड़ा लोहा ले रहे हों लेकिन जब बात निर्माण की आती है तो नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को देश में कोई ऐसा कारीगर नजर नहीं आता जो सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का गौरव हासिल कर सके। इसलिए ढाई हजार करोड़ के इस संभावित व्यापार के लिए विदेशी कंपनियों को न्यौता भेज दिया गया है और अब तक थीम एण्ड एम्युजमेन्ट पार्क बनाने वाली दस कंपनियां गुजरात सरकार के पास हाजिरी लगा चुकी हैं। 

तो क्या स्टैचू आफ यूनिटी देश के सम्मान के साथ साथ विदेशी कंपनियों के लिए 2500 करोड़ का कारोबार भी है? और विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति बनाएंगे? यह सवाल इसलिए क्योंकि गुजरात सरकार भी मान रही है कि देश गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति बनाने के लिए ना मनी है, ना मैन पावर है और ना मशीनरी? वह शायद इसलिए क्योंकि सरदार सरोवर पर सिर्फ सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा ही नहीं लगाई जा रही है बल्कि सरदार की प्रतिमा के साथ साथ करीब आधा दर्जन एंटरटेनमेन्ट की परियोजनाएं भी लाई जा रही हैं जिसमें अंडरवाटर सी पार्क के अलावा लेजर एण्ड लाइट शो भी शामिल हैं। जाहिर है यह सब काम करनेवाली भारत में कोई थीम पार्क या एन्टरटेनमेन्ट कंपनी नहीं है जो योग्यता से इस महत्वाकांक्षी एन्टरटेनमेन्ट परियोजना को पूरा कर सके लिहाजा इस परियोजना में 10 विदेशी कंपनियों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है जो कि थीम पार्क और एन्टरटेनमेन्ट सेक्टर की दिग्गज कंपनियां है? सवाल यह है कि अगर नरेन्द्र मोदी सरकार सरदार सरोवर बांध पर एक थीम पार्क और एन्टरटेनमेन्ट सिटी बसाने जा रहे हैं तो फिर इसे सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा का राष्ट्रीय गौरव बताकर क्यों प्रचारित किया जा रहा है?

मोदी और उनकी सरकार को इस काम में महारत हासिल है। वे व्यवसाय के किसी सौदे को राष्ट्रवाद से जोड़ने की जुगत जानते हैं। गुजरात में मोदी ने वैसे भी कांग्रेस से महात्मा गांधी को छीनकर महात्मा गांधी के नाम से भव्य महात्मा मंदिर बना दिया है. महात्मा मंदिर के लिए भी राज्य से 1 मई 2010 को 18,000 गांव के सरपंचों ने मिट्टी के कलश में मिट्टी और पानी लाकर महात्मा मंदिर के लिए कार सेवा की थी, इस मंदिर के लिए मोदी ने सरेआम पर्यावरण का उल्लघंन कर 40,000 पेड़ कटवाकर और 700 से अधिक श्रमिकों को स्थातंरित कर नौ महीने में इस महात्मा मंदिर को तैयार किया गया था आज इस मंदिर में ना केवल अपनी ब्राडिंग और मार्केटिंग करते हैं बल्कि विदेशी मेहमानों से भी अपना गुणगान करवाते हैं लगता है अब रही सही कसर वे सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा बनवाकर पूरी करेंगे? क्योंकि सरदार के नाम से बने सरदार सरोवर बांध की नींव देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने रखी थी, वहां केवल विशाल प्रतिमा ही नहीं बनेगी बल्कि विशाल ऑडिटोरियम भी बनाए जाएंगे, सबसे प्रमुख बात यह है अगर महात्मा मंदिर की इस प्रतिमा से तुलना की जाए तो 60 हजार वर्गमीटर में बना यह भव्य महात्मा मंदिर 300 करोड़ की लागत से बनाया गया है जहां विशाल ऑडिटोरियम के अलावा कंवेंशन हॉल भी होंगे, ऐसे में सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिरकार सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए 2500 करोड़ का निवेश क्यो? 

इससे पहले भी मोदी ने 2007 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मतदाताओं को रिझाने के लिए ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का मुद्दा खेला था, प्रेस सम्मेलन में 1000 करोड़ में 182 मीटर प्रतिमा के निर्माण का दावा किया था इतना ही नहीं इस सम्मेलन में उन्होंने प्रतिमा के दर्शन के लिए अहमदाबाद से सरदार सरोवर तक बुलेट ट्रेन चलाने का दावा भी जोर-शोर से किया था, लेकिन घोषणा के पांच साल तक इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया गया, अब 2014 में जब मोदी को ‘प्रचार केम्पेन कमेटी’ का अध्यक्ष बनाया गया है, इसीलिए प्रचार युद्ध की रणनीति की शुरुआत करने से पहले ही मोदी ने सरदार पटेल की प्रतिमा निर्माण का राग आलाप दिया है, लेकिन इस घोषणा में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने का जोर-शोर से दावा तो है लेकिन इस दावे में बुलेट ट्रेन चलाने का वादा नदारद है. इतना ही नहीं मोदी जो भी कुछ करना चाहते हैं उसका श्रेय खुद लेना चाह्ते हैं गुजरात के आणंद जिले के दंतौली आश्रम के महाराज संच्चिदानंद कहते हैं कि सरदार सरोवर नर्मदा नहर में उन्होंने सरदार पटेल की विशाल मूर्ति लगाने की घोषणा से पहले वे मोदी से मिले थे और उन्हें सरदार पटेल की मूर्ति के निर्माण की पेशकश कर उन्हें बताया था कि इस प्रतिमा के लिए तो लोग खर्च करने को भी तैयार है.

सरकार को नर्मदा नहर से 3.2 कि. मी पर प्रतिमा की स्थापना करनी है उसे साधु बेट सरकारी  नाम दिया है, लेकिन वास्तव में यह आदिवासियों का धर्म स्थान है और आदिवासी इस क्षेत्र को ‘वर्ता वावा’ कहते हैं, इसीलिए आदिवासियों ने विरोध करना शुरु कर दिया है. आदिवासी समुदाय के वरिष्ठ दिनेश तवड़ी का कहना है ‘वर्ता वावा’ आदिवासी समाज का धर्मस्थान है, वे कहते हैं कि  आदिवासियों की ऐसी मान्यता है कि यहां आकर उनकी मुरादें भी पूरी होती है.’’ दूसरी प्रमुख बात यह है 1962 में जब यह सरदार सरोवर बांध बना उस समय म.प्र, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत कई गांवों की जमीन सरदार सरोवर बांध से प्रभावित हुई, इसे लेकर कई आंदोलन भी हुए, कुछ गांवों को मुआवजा भी दिया गया लेकिन आज भी नर्मदा से प्रभावित छ्ह गांव केवड़िया, कोठी, वाघड़िया, गोरा, नवागाम और लिमड़ी गांव के निवासियों के पुनर्वसन के लिए कांग्रेस की सरकार से लेकर मोदी सरकार ने सरदार सरोवर बांध के विकास के नाम पर इन गांववालों की काफी उपेक्षा की. पिछले 50 सालों से वे मुआवजे के लिए जूझ रहें हैं. लिंबड़ी के भूतपूर्व सरपंच उनाभाई तड़वी का कहना है कि हमलोग विकास के विरोध में नहीं है लेकिन सरकार को हम लोगों का पुनर्वसन करने की दिशा में हमारा ध्यान देना चाहिए. स्थानीय निवासियों में इस बात को लेकर काफी आक्रोश है. दिनेश भाई कहते हैं कि जिनकी 75 प्रतिशत जमीन पानी में डूब गई है उन्हें तो मुआवजा मिला लेकिन जिनकी 50 या 20 प्रतिशत जमीन पानी में गई उनका क्या?

कहने को यह सरदार सरोवर परियोजना एक बहुत बड़ी योजना है लेकिन इस परियोजना के पास सबसे पहला भूमलिया गांव आता हैं वहां उन लोगों को ही पानी नहीं मिलता है. पहले ये लोग नहर से जाकर पानी लेते थे लेकिन जब से सिंचाई कानून विधेयक 2013 सरकार ने पारित किया है तब से इन लोगों का पानी लेना भी दुश्वार हो गया है क्योंकि इस सरदार सरोवर बांध पर 24 घंटे नर्मदा बटालियन तैनात कर दी है. लेकिन जिनके घर, जमीन इस सरदार सरोवर बांध में गए उनकी माली हालत आज भी काफी खराब है. केवड़िया कोठी गांव का महेन्द्र सरदार सरोवर बांध में एक टूरिस्ट गाइड के तौर पर काम कर रहा है, सरदार सरोवर कॉलोनी बनाने में इनका घर इनकी जमीन चली गई. वे कहते हैं कोठी गांव में ऐसे 28 लोग हैं, जो आज भी अपने पुनर्वसन के लिए निरंतर जूझ रहे हैं. ताज्जुब की बात यह है कि यहां गाइड का काम करने वाले लोगों को वेतन भी नहीं मिलता जो टूरिस्ट यहां घूमने आते हैं वे जो कुछ देकर जाते हैं उससे ही रोजीरोटी चलानी पड़ती है यही हाल नवागाम की ज्योस्ना का है वे भी यहां गाइड हैं. वह पिछले छ्ह साल यह काम कर रही है. वह कहती है कि पहले सरकार वेतन देती थी लेकिन अब वेतन बंद कर दिया, सीजन में जो टूरिस्ट आते हैं जो दे जाते हैं बाकी थोड़ी बहुत खेती कर वे अपना घरबार चलाती हैं. लेकिन विडंबना की बात यह है कितनी जमीन सरदार सरोवर नहर में गई इस जमीन का रिकार्ड भी सरकार के पास उपलब्ध नहीं है.

इन छ्ह गांव के निवासियों का कहना है कि पुनर्वसन और मुआवजे के नाम पर राज्य की कांग्रेस से लेकर भाजपा सरकार अब तक केवल सात्वना ही दी है. इनका कहना है कि जब पीके लहरी सरदार सरोवर बांध के चेयरमेन थे तब भी उन्होंने 90 दिन में काम हो जाएगा कहा था लेकिन 50 सालों से ये छ्ह गांव पुनर्वसन और मुआवजे की लड़ाई लड़ रहे हैं. 1962 में सरदार सरोवर बांध में जब उनकी जमीनें डूब गई थी तब मुआवजे के रुप में उन्हें मात्र 60 रु ही मिले थे. उसके बाद उन्हें कुछ नहीं मिला. वे कहते हैं कि सरदार पटेल की प्रतिमा बनाई जाए लेकिन इन छ्ह गांवों के मुआवजे का प्रश्न अधर में लटका है उसे भी हल किया जाए. पर्यावरण मित्र के प्रमुख महेश पंड्या का कहना है कि मोदी सरदार पटेल की प्रतिमा का जहां निर्माण करने जा रहे हैं उससे आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत प्रभावित होगी. कांग्रेस और जीपीपी के नेता भी कहते हैं सरदार पटेल की प्रतिमा के नाम पर मोदी राजनीति कर रहें हैं. लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सरकार ने नाही आदिवासियों, या किसी विधायक या संसद के साथ विचार-विमर्श करना उचित नहीं समझा. आदिवासियों का कहना है कि उन्हें ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ से परहेज नहीं है प्रतिमा के लिए पंसद किए गए स्थान से है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरदार सरोवर बांध पर सरदार पटेल की प्रतिमा तो पहले से ही मौजूद है फिर नदी के बीच सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित करने की क्या आवश्यकता, यह महत्वपूर्ण सवाल है.

सरदार सरोवर मामले में अब पीआई एल दायर की गई है, पीआईएल दायर करने वाले जिग्नेश गोस्वामी का कहना है कि राजनीतिक मायलेज लेने के लिए मोदी सरदार पटेल की मूर्ति बनवा रहे हैं, जबकि देखा जाए तो यहां पहले से मूर्ति मौजूद है.

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