बिहार की राजधानी पटना प्राचीन काल से ही
सत्ता का केंद्र रही है. समय-समय पर इसके नाम बदलते रहे हैं. मसलन,
पाटलिपुत्र, पाटलिपट्टन, पाटलिग्राम, कुसुमपुर, पुष्पपुर, अजीमाबाद आदि.
गंगा, गंडक और सोन नदी के संगम पर अवस्थित इस ऐतिहासिक नगर को हर्यक वंश के
राजा अजातशत्रु द्वारा पांचवीं ई.पू. में बसाया गया था. उस समय इस शहर की
लंबाई एवं चौड़ाई महज 14 व 3 किलोमीटर थी. पूरा शहर खाईयों व दीवारों से
घिरा हुआ था. दीवारों में जगह-जगह टावर एवं गेट बने हुए थे. इनकी संख्या
क्रमशः 570 और 64 थी.
विदित हो कि इस शहर का विकास सैनिक शिविर के रूप में किया गया,
क्योंकि मगध शुरू से ही सत्ता का केंद्र रहा था. मगध की गद्दी पर बैठना
फक्र की बात समझी जाती थी. इस क्रम में वज्जी और लिच्छवी हमेशा रेस में आगे
रहते थे. कालांतर में जब मगध का विस्त्तार हुआ तथा धीरे-धीरे आर्थिक,
राजनीतिक तथा सामरिक परिप्रेक्ष्य में राजगृह का महत्व घटने लगा, तब
पाटलिपुत्र स्वभाविक रूप से राजगृह का विकल्प बनकर उभरा. बदले सामरिक महत्व
को मद्देनजर रखते हुए आजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने पाटलिपुत्र को
अपनी राजधानी बनाया. उदयिन ने वर्तमान पटना को जो गौरव प्रदान किया, उसे
भविष्य में नन्द, मौर्य और गुप्त सम्राटों ने भी कायम रखा, पर गुप्त
सम्राटों के पतनोपरांत और हुणों के आक्रमण के कारण अंततः इसका पतन हो गया.
पुनः पन्द्रहवीं शताब्दी में महान अफगान शासक शेरशाह ने इस महान नगर का
जीर्णोद्वार करवाया.
अपने आरंभिक दिनों में पटना एक गांव की तरह था. इसे पट्टन के नाम से
जाना जाता था. पटना इसका अपभ्रंश रूप है. पुनश्च: अठारवीं शताब्दी के आरम्भ
में औरंगजेब के पौत्र अजीम ने इस नगर का नवनिर्माण करवाकर इसका नाम
अजीमाबाद रखा. मुग़ल साम्राज्य के पतन के पश्चात वर्ष 1912 में फिर से पटना
का पुर्ननिर्माण किया गया. अंगेजों के शासनकाल में बिहार, बंगाल
प्रेसिडेंसी से अलग हुआ तथा इसके स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण हुआ.
तदुपरांत पटना का विकास चहुँ दिशा में वृहत्तर पैमाने पर हुआ. आज हम जिस
पटना को जानते हैं, उसका अस्त्तिव पूर्व में एकदम अलग था. मोटे तौर पर कहा
जाए तो आज का पटना सिटी ही पहले पटना के नाम से जाना जाता था. पटना सिटी
अपने यौवन काल में नियोजित था कि नहीं यह बता पाना मुश्किल है, लेकिन
मौजूदा समय में यह कहीं से भी नियोजित नहीं लगता है. अशोक राजपथ और
गुलजारबाग की तरफ से पटना सिटी की तरह जाने वाला दोनों रास्ता बेहद ही
संकरा है. दोनों मार्ग पर हर वक्त जाम लगा रहता है. पूरे इलाके में मकान
एवं नालियों का निर्माण नियोजित तरीके से नहीं किया गया है.
वर्तमान पटना सिटी की पूर्वी सीमा पर मालसलामी मोहल्ला है. यह मुगलकाल
में व्यापारिक सामान या माल पर चुंगी वसूली का केंद्र था. इसके पूरब की ओर
नगला का क्षेत्र आजातशत्रु कालीन पाटलीग्राम था. इसी के समीप मारुफगंज में
मंसूरगंज नाम के दो मोहल्ले हैं, जो दो सूफियों के नाम पर रखे गये हैं.
पटना साहिब रेलवे स्टेशन के पश्चिमोत्तर में धवलपुर मोहल्ला है. वहाँ पर दो
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक हैं. एक 1541में शेरशाह के द्वारा बनाई गई
मस्जिद और दूसरा मकबरा जोकि अवध के संस्थापक सादात खान के पिता का है.
गौरतलब है कि मस्जिद अभी सुरक्षित और आबाद है, किन्तु इसे संरक्षण की दरकार
है. फिर भी इस ओर किसी स्तर पर प्रयास नहीं किया जा रहा है. धवलपुर से
पश्चिम की ओर चिमनी घाट मोहल्ले में नवाब हैबतगंज का महल स्थित था, जो
चिहलस्तून कहलाता था. अब मकबरा और महल दोनों नष्ट हो चुके हैं. पटना साहिब
रेलवे स्टेशन से दक्षिण की ओर बेगपुर मोहल्ला में हैबतगंज का मकबरा है.
हैबतगंज हैदरअली का दामाद और नवाब सिराजुद्दौला का पिता था.
चौक थाना के उत्तर में गंगा के किनारे नवाब सैफ खान द्वारा निर्मित
मदरसा और मस्जिद थी. उस ज़माने में यहाँ बेहद मशरूफियत भरा माहौल था, किन्तु
आज मदरसा के केवल अवशेष रह गये हैं, पर मस्जिद अब भी आबाद है. सैफ खान
शाहजहाँ के काल में बिहार का प्रान्तपति हुआ करता था. चौक से दक्षिण की ओर
पटना सिटी स्कूल के पास अवस्थित मंगल तालाब मूल रूप से शेख भट्टा की गढी
कहलाता था. 1876 ई. में यहाँ पर खुदाई के दौरान प्राचीन पाटलिपुत्र के
अवशेष मिले थे. चौक थाना के ही दक्षिण में अशोक राजपथ के दक्षिणी किनारे पर
गुरुद्वारा तख़्त हरमंदिर अवस्थित है. इसे सिखों के दसवें गुरु श्री
गोविन्द सिंह जी के जन्म स्थल पर बनाया गया है. गुरुद्वारा की वर्तमान
इमारत 1957 में बनी, परन्तु मूल गुरुद्वारा मध्यकाल से ही बना हुआ है.
सिखों का यह अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है. यहाँ के संग्रहालय में गुरु
गोविन्द सिंह जी से संबंधित अनेकानेक अवशेष सुरक्षित है. इसमें से सबसे
महत्वपूर्ण गुरु ग्रन्थ साहब की प्रति है, जिसमें गुरु गोविन्द सिंह जी के
हस्ताक्षर हैं.
गुरुद्वारा के समीप ही ख्वाजा अंबर का मकबरा है, जिसका निर्माण 1688-89
में शाइस्ता खां के कार्यकाल में हुआ था. यहाँ से पश्चिम की ओर अंग्रेजों
ने एक फैक्ट्री स्थापित की थी, जो आगे चलकर अफीम के कारोबार का केंद्र बन
गया. मुग़ल सम्राट शाहआलम द्दितीय का राज्याभिषेक इसी इमारत में हुआ था.
इसके पश्चिम में गुलजारबाग है. इसे मीर कासिम के भाई गुलजार अली ने बसाया
था. इसी के दक्षिण में शाइस्ता खां द्वारा निर्मित ईदगाह स्थित है.
गुलजारबाग के दक्षिण में पटनदेवी का मंदिर है. इन्हें पटना शहर की
संरक्षिका माना जाता है. मंदिर की वर्तमान इमारत मुग़ल प्रान्तपति राजा
मानसिंह द्वारा 1587-94 में बनवाई गई थी. पटनदेवी से थोड़ा पहले अगमकुंआ
स्थित है. "अगम" का शाब्दिक अर्थ है, जिसके बारे में बताया न जा सके. इसका
निर्माण मौर्य शासन काल में करवाया गया था. कहा जाता है कि मगध की गद्दी
हासिल करने के लिये सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों को मारकर इसी कुँए में
डाल दिया था. अगमकुंआ से सटा हुआ शीतला माँ का मंदिर है. यह भी काफी
प्राचीन मंदिर है. मंदिर के पश्चिम की ओर कुछ दूरी पर बने महात्मा गाँधी
सेतु के निकट एक सिख गुरुद्वारा है. इसी गुरूद्वारे में गुरु तेगबहादुर जी
आये थे. लगभग 2 किलोमीटर पश्चिम की ओर सड़क के उत्तरी किनारे पर पत्थर की
मस्जिद है, जिसका निर्माण जहाँगीर के पुत्र परवेज के आदेश पर नजर खान के
द्वारा 1626-27 में कराया गया था. इसी के दक्षिण में शाह अर्जन का दरगाह
है. शाह अर्जन जहाँगीर के समकालीन थे. ये पटना में आकार बस गये थे. इनका
निधन 1618 में हुआ था. इनका मजार दरगाह के प्रांगण में है.
यहाँ से 3 किलोमीटर पश्चिम में मुरादपुर मोहल्ला है, जो अभी वर्तमान
पटना का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है. इस मोहल्ले का नामकरण जहाँगीर के
प्रान्तपति मिर्जा मुराद के नाम पर किया गया था. मिर्जा मुराद का मकबरा
पटना मेडिकल कॉलेज अस्तपताल के प्रांगण में अवस्थिति है. इससे लगभग 3
किलोमीटर पश्चिम में गोलघर है, जिसका निर्माण कैप्टन जान गास्टिन ने 1786
में करवाया था. इसका उपयोग अनाज रखने के गोदाम के रूप होना था, किन्तु गलत
बनावट के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका. यह स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है.
इसे स्तूप की तरह बनाया गया है. बिना खंभे वाले इस अन्न भण्डारण गृह में
चक्करदार सीढियां ऊपर की ओर जाती है. इसकी बनावट बहुत हद तक मध्यप्रदेश में
अवस्थित सांची और राजगीर के विश्व शांति स्तूप से मिलता-जुलता है. पश्चिम
की ओर थोड़ी दूर आगे जाकर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद
की समाधि है.
1912 में बिहार प्रान्त के गठन और अविभाजित बिहार की राजधानी पटना को
बनाये जाने के बाद यहाँ सचिवालय, उच्च न्यायालय, विधानमंडल और अजायबघर का
निर्माण हुआ. स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित महत्वपूर्ण स्मारक सदाकत आश्रम
है, जिसे मौलाना मजहरुल हक द्वारा 1912 में असहयोग आंदोलन के क्रम में
कांग्रेस पार्टी को समर्पित किया गया था. यह बिहार विद्यापीठ का मुख्यालय
रहा और बाद में बिहार कांग्रेस दल का मुख्यालय भी बना. भारत के प्रथम
राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अवकाश प्राप्ति के बाद यहीं रहा करते
थे.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपने प्राणों का न्योछावर करने वाले सात नवयुवकों की याद में विधानमंडल भवन के प्रवेश द्वार पर निर्मित शहीद स्मारक का जिक्र करना इस सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है. इन सात नौजवानों ने राष्ट्रीय ध्वज की आन-बान व शान को बरक़रार रखने के लिये अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन ऐतिहासिक स्थलों के अलावा बहादुरपुर गुमटी से 200 मीटर आगे पूरब की ओर अवस्थित कुम्हरार के समीप वर्ष 1951-55 में हुई खुदाई में चौथी से पांचवीं शताब्दी में अवस्थित आरोग्य विहार का पता चला है. यहीं पर 80 स्तम्भों वाले हॉल के होने का प्रमाण मिला है. इस हॉल को मौर्यकालीन माना गया है. इतिहासकारों के अनुसार अशोक के कार्यकाल में ई.पू. तीसरी शताब्दी में इसी हॉल में तीसरे बौद्ध कौंसिल का आयोजन किया गया था.
प्राचीन काल से ही पटना व्यापारियों का पंसदीदा शहर रहा है.
मौजूदा समय में यह देश का पांचवां विकसित होता हुआ शहर है. जिस शहर की
लंबाई-चौड़ाई कभी कुछ किलोमीटर तक सीमित थी, उसका विस्त्तार आज सैकड़ों
किलोमीटर हो गया है. पूरब में इसका फैलाव फतुहा तक पहुँच चुका है और पश्चिम
में यह बिहटा तक पहुँच गया है. उत्तर में यह गंगा नदी के कारण अपना पंख
नहीं फैला पा रहा है, लेकिन जल्द ही तकनीक की मदद से यह बाधा भी समाप्त हो
जायेगी. महात्मा गांधी सेतु के अलावा दीघा के पास से रेल व सड़क मार्ग का
निर्माण कार्य प्रगति पर है, जो दक्षिण एवं उत्तरी बिहार को जोड़ने का कार्य
करेगा. हालाँकि हाजीपुर को आज की तारीख में पटना का ही हिस्सा माना जाता
है. दक्षिण में यह पुनपुन तक पहुँच चुका है.
शहर के अंदर मुख्य रूप से इसका विस्तार गाँधी मैदान के पूर्वी इलाकों मसलन, पटना सिटी, राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, बाईपास रोड और पश्चिम की ओर बोरिंग रोड, पाटलिपुत्र कॉलोनी, दीघा रोड, फुलवारी शरीफ, खगौल, दानापुर, शेखपुरा, राजाबाजार, जगदेवपथ आदि क्षेत्रों में हुआ है. इसके अतिरिक्त पटना में मोनो रेल और मेट्रो का बनना प्रस्तावित है. जगदेव पथ से शेखपुरा मोड़ तक तेजी से फलाईओवर बन रहा है. दीदारगंज से पुनपुन बांध, बिहटा होते हुए गंगा-वे से उसे मिलाने का प्रस्ताव भी प्रस्तावित है.
विगत वर्षों में पटना के रंगरूप में उल्लेखनीय बदलाव आया है. अब मध्यरात्रि में भी पटना की सड़कों पर चहल-पहल एवं लड़कियों/महिलाओं को रेस्तरां, सड़क, मार्केट आदि स्थलों पर देखा जा सकता है. शहर भौतिकवादी रंग में पूरी रफ़्तार से सराबोर हो रहा है. चारों तरफ हरियाली से आच्छादित रहने वाले शहर में गगनचुम्बी अट्टालिकाओं ने अपना डेरा जमा लिया है. अपार्टमेंट कल्चर के लोग आदि हो चुके हैं. आज की तारीख में राजेंद्र नगर, हनुमान नगर, कंकड़बाग, फ्रेजर रोड, एस.पी.वर्मा रोड, राजापुल, बोरिंग रोड, ईस्ट बोरिंग कैनाल रोड, एस.के.पुरी, पाटलिपुत्र कॉलोनी, राजीव नगर, शेखपुरा, राजा बाजार, खाजपुरा, समनपुरा, आर.पी.एस. मोड़, दानापुर, खगौल आदि स्थलों पर हर तरफ अपार्टमेंट बन चुका है या बन रहा है.
अब तो छोटे घरों को भी तोड़कर अपार्टमेंट बनाया जा रहा है. नये पटना की तुलना आज नोयडा और ग्रेटर नोयडा से की जा सकती है. इस क्रम में कभी एशिया की सबसे बड़ी कॉलोनी के नाम से विख्यात कंकड़बाग का रंगरूप पुरी तरह से बदल चुका है. इस कॉलोनी की विशेषता एमआईजी एवं एलआईजी मकान हुआ करते थे. पूरी कॉलोनी नियोजित तरह से बसाई गई थी. मकान के आगे लॉन और लॉन के बीच में करीने से फूलों के पौधे लगे रहते थे. वर्तमान में हरियाली राज्य के बड़े ओहदों पर काबिज कुछ महत्वपूर्ण व गणमान्य लोगों के नसीब में रह गई है. बदलते पटना में बेली रोड तथा उसके समीपवर्ती मार्गों में ही हरियाली बची हुई है, क्योंकि इस इलाके में बड़े लोगों का निवासस्थान है. थोड़ी बहुत हरियाली पाटलिपुत्र कॉलोनी में बची हुई है, लेकिन कब तक यह कायम रहेगी, कहा नहीं जा सकता.
बदलते दौर में पटना में लगभग सभी नामचीन रेस्तरां एवं होटल खुल चुके हैं. पिंड बलूची, कपिल इलेवन, बीकानेर, हल्दी राम, डोमिनो पिजा, केएफसी, यो चाइना, अंगीठी, मेजबान, रोटी आदि ने अपने लजीज पकवानों से पटनावासियों का दिल जीत लिया है. रेस्तरां कल्चर पटना के लोगों की दिनचर्या में चुपके से शामिल हो गया है. अब तो मुंबई के जुहू व चौपाटी एवं इंदौर के राजवाड़ा की तर्ज पर पटना में भी ठेलों पर बिहारी, चाइनीज एवं अन्यान्य लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं. पटना के मौर्य काम्प्लेक्स, बोरिंग रोड चौराहा, बोरिंग कैनाल रोड, गाँधी मैदान, केशव पैलेस आदि जगहों पर लिट्टीचोखा, चौमीन, मोमो, भेलपुरी, बताटापुरी, एगरोल, पावभाजी आदि से लैस ठेलों को आसानी से देखा जा सकता है. गौरतलब है कि निम्न व माध्यम वर्ग के बीच इसतरह के क्युजिन की जबर्दस्त लोकप्रियता है. पटना में वीकेंड सेलिब्रेट करने का चलन भी युवाओं के बीच लगातार बढ़ रहा है. पटनावासी अपनी आय का एक अहम हिस्सा आजकल खाने-पीने, मूवी व मस्ती में खर्च करने लगे हैं.
शॉपिंग के लिए अब पटना के पाटलिपुत्र में एक मॉल भी खुल गया है, जिसका नाम पी एंड एम है. सभी सुविधाओं से युक्त इस मॉल में बिग बाजार, सिनेपोलिस सहित मनोरंजन व शॉपिंग के सारे साधन उपलब्ध हैं. बावजूद इसके मौर्य कॉम्प्लेक्स, पटना मार्केट, हथुआ मार्केट, खेतान मार्केट, बोरिंग रोड, हरिनिवास कॉम्प्लेक्स, राजाबाजार, शेखपुरा आदि की लोकप्रियता शॉपिंग के लिहाज से आज भी बरक़रार है.
इस शहर में बच्चों के खेलने का भी ध्यान रखा गया है. सचिवालय के निकट हाल ही में ईको पार्क का विकास किया गया है. इस पार्क की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इस क्रम में रेलवे स्टेशन के पास स्थित बुद्ध पार्क की अहमियत को कम करके नहीं आँका जा सकता है. इसके अतिरिक्त बच्चों के बीच चिड़ियाघर, अजायबघर, गोलघर एवं वहाँ चलने वाला लेजर शो, कुम्हरार, तारामंडल, श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र, गंगा नदी में बोटिंग एवं क्रूज की सैर, पटना के निकट सम्पतचक में वाटर पार्क का लुत्फ़ आदि की लोकप्रियता किसी भी मायने में कम नहीं है.
कला-साहित्य एवं संस्कृति के दृष्टिकोण से पटना का शुरू से ही पूरे देश में महत्वपूर्ण मुकाम रहा है. रामधारी सिंह दिनकर, आर.सी.प्रसाद सिंह, नागार्जुन, अरुण कमल, आलोक धन्वा आदि का हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है. अंग्रेजी के जाने-माने लेखक अमिताव कुमार और सिद्धार्थ चौधरी मूल रूप से पटना के रहने वाले हैं. चित्रकारी की दुनिया में "पटना कलम" के नाम से शायद ही कोई अनजान होगा. अठारवीं व उन्नीसवीं शताब्दी में "पटना कलम" की धूम देश-विदेश में थी. "पटना कलम" विश्व में पहला स्कूल था, जहाँ की पेंटिंग में आम आदमी की दिनचर्या को विषय बनाया गया था. रंगकर्म में फिलवक्त पटना स्थित नाट्य संस्था "नटमंडप " अच्छा काम कर रहा है. इस काम को परवाज देने का कार्य कालिदास रंगालय, भारतीय नृत्य कला मंदिर, प्रेमचंद रंगशाला जैसे प्रेक्षागृह कर रहे हैं. इस संदर्भ में अच्छी बात यह है कि सिनेमा के फंतासी दौर में भी पटनावासी टिकट खरीदकर रंगकर्मियों का मंचन पूरे उत्साह से देख रहे हैं. पटना के शत्रुघ्न सिन्हा, शेखर सुमन, नीतू चंद्रा आदि वालीवुड में अच्छा काम कर रहे हैं. खेल के मामले में पटना का कोई खास योगदान नहीं रहा है.
अमीकर दयाल और सबा करीम जरुर क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रौशन करने में सफल रहे हैं. पटना में खेल से संबंधित आधारभूत संरचना का अभाव है. राजेंद्र नगर में अवस्थित मोइनुलहक, खगौल में जगजीवन और बिहार वेटनरी कॉलेज के निकट मिथिलेश स्टेडियम को छोड़कर यहाँ खेल से जुड़ा कोई संसाधन उपलब्ध नहीं है.
मोटे तौर पर देखा जाये तो पटना में कल-कारखानों का अभाव है. हालाँकि शुरू से ऐसी स्थिति नहीं थी. फुलवारीशरीफ में कभी कपड़ा का कारखाना था, जोकि अस्सी के दशक में बंद हो गया. वैसे स्पीडक्राफ्ट का कारखाना वहाँ अभी भी है, जिसे साईकिल फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है. बता दें कि कभी यहाँ लघु स्तर पर छोटी जीपों का निर्माण भी किया जाता था. हाँ, शगुन ब्रेड बनाने का कारखाना आज भी फतुहाँ में है.
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का दबदबा आरंभ से रहा है. बीते सालों इस संबंध में पटना का कद और भी बढ़ा है. आईआईटी, बीआईटी, निफ्ट, चाणक्य ला कॉलेज, केन्द्रीय विश्वविधालय आदि हाल के वर्षों में पटना में खुले हैं. पटना विश्वविद्यालय, बिहार का पहला और दक्षिण एशिया का सातवाँ पुराना विश्वविधालय है, जिसकी स्थापना 1917 में की गई थी. पटना मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज के नाम से हुई थी, जो चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहा है. वैसे इस संदर्भ में नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं आईजीएमएस के योगदान को खारिज नहीं किया जा सकता है. एम्स का भी पदार्पण पटना में हो चुका है. निजी अस्त्पतालों में महावीर कैंसर संस्थान, मगध व पारस अस्तपताल को अच्छा माना जा सकता है.
बच्चों को निजी तौर पर शिक्षित व जागरूक करने की दिशा में सुपर 30 अच्छा काम कर रहा है. विगत वर्षों से इस संस्था में प्रदेश के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. हाल ही में पंजाब के 3 बच्चों ने इस संस्थान में पढाई करके आईआईटी की परीक्षा पास की है. मजेदार बात है कि पंजाब वही प्रदेश है, जहाँ कभी बिहार से हजारों की संख्या में बेरोजगार युवा, रोजगार पाने के लिये पलायन करते थे.
पटना में पहले सर्चलाइट, पाटलिपुत्र टाइम्स, आज, इंडियन नेशन, आर्यावर्त जैसे अख़बारों की धूम थी. इन अख़बारों का चेहरा ब्लैक एंड व्हाईट हुआ करता था. अब सभी अखबार रंगीन हो चुके हैं. उनका कलेवर व ले-आउट पूरी तरह से बदल चुका है. कुछ अखबार बंद भी हो चुके हैं, वहीं कुछ नये अख़बारों का पर्दापण हुआ है. नये अख़बारों में प्रभात खबर, दैनिक जागरण आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. दैनिक भास्कर बहुत जल्द पटना से अपनी नई पारी शुरू करने वाला है. छोटे अख़बारों में अमृतवर्षा अभी जिन्दा है. इलेक्ट्रानिक मीडिया में ईटीवी, सहारा समय, मौर्य टीवी स्थानीय स्तर पर अच्छा काम कर रहे हैं. रेडियो के रंग-रूप में भी व्यापक बदलाव आया है. विविध भारती के साथ-साथ एफएम एवं रेडियो जॉकी की संकल्पना पटना में साकार हो चुकी हुई है.
इसमें दो मत नहीं है कि 90 के दशक में पटना से कारोबारियों का पलायन हुआ था. उस कालखंड में बहुतेरे सिंधी एवं सिख व्यापारियों ने कानून व्यवस्था के ठीक नहीं होने के कारण पटना से पलायन किया था, लेकिन हाल के वर्षों में पूरे माहौल में आमूल-चूल परिवर्तन आया है. बीते सालों विश्व बैंक ने जारी अपने बुलेटिन में कहा था कि काराबोर शुरू करने के लिहाज से पटना, दिल्ली के बाद दूसरा सबसे उपयुक्त नगर है.
जाहिर है पटना की तस्वीर बदल रही है, लेकिन साथ ही साथ जनसँख्या का दबाव इस शहर पर लगातार बढ़ता जा रहा है. शहर का विकास हुआ है, लेकिन बेतरतीब तरीके से. सरकार इस ओर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है. पटनावासी अपने अधिकारों से तो अवगत हैं, लेकिन कर्तव्यों के प्रति लापरवाह. कानून-व्यवस्था जरुर दुरुस्त हुई है, लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था अभी भी अव्यवस्थित है. पुलिस ट्रैफिक को कंट्रोल करने में असफल रही है, वैसे इसके लिये सिर्फ पुलिस को दोष नहीं दिया जा सकता. इसके लिये हम भी बराबर के दोषी हैं. इसी तरह से अव्यवस्थित फैलाव के लिये सिर्फ बिल्डरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
बिना सरकार की जानकारी के नगर में कोई काम नहीं हो सकता है. लिहाजा मामले में सरकार को क्लीनचिट देना बेमानी होगा. आज पूरे शहर में गंदगी का अम्बार लगा हुआ है. गंदगी और जलजमाव की वजह से डेंगू ने शहर में महामारी का रूप ले लिया है. अदालत कई बार इन मुद्दों पर नगर निगम और सरकार को फटकार लगा चुकी है. फिर उनके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है. इन खामियों के बावजूद इस शहर की एक अलग छटा है, जो अतुलनीय है.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपने प्राणों का न्योछावर करने वाले सात नवयुवकों की याद में विधानमंडल भवन के प्रवेश द्वार पर निर्मित शहीद स्मारक का जिक्र करना इस सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है. इन सात नौजवानों ने राष्ट्रीय ध्वज की आन-बान व शान को बरक़रार रखने के लिये अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन ऐतिहासिक स्थलों के अलावा बहादुरपुर गुमटी से 200 मीटर आगे पूरब की ओर अवस्थित कुम्हरार के समीप वर्ष 1951-55 में हुई खुदाई में चौथी से पांचवीं शताब्दी में अवस्थित आरोग्य विहार का पता चला है. यहीं पर 80 स्तम्भों वाले हॉल के होने का प्रमाण मिला है. इस हॉल को मौर्यकालीन माना गया है. इतिहासकारों के अनुसार अशोक के कार्यकाल में ई.पू. तीसरी शताब्दी में इसी हॉल में तीसरे बौद्ध कौंसिल का आयोजन किया गया था.
इसमें दो राय नहीं है कि पटना का एक गौरवशाली
इतिहास रहा है. कोई भी शहर स्थावर नहीं होता, उसे निर्जीव वहाँ के वाशिंदे
बना देते हैं. पटना शहर अस्तित्व में आने के बाद से ही जिंदादिल रहा है.
मुश्किल और झंझावातों के दौर आते-जाते रहे, लेकिन इसका कोई असर यहाँ के
लोगों पर नहीं पड़ा है. गिरना और फिर से उठकर चल देना यहाँ के वाशिंदों की
फितरत में है. इस शहर का कई बार जीर्णोद्वार होने के बावजूद भी इसकी
चमक-दमक में कोई कमी नहीं आई है.
शहर के अंदर मुख्य रूप से इसका विस्तार गाँधी मैदान के पूर्वी इलाकों मसलन, पटना सिटी, राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, बाईपास रोड और पश्चिम की ओर बोरिंग रोड, पाटलिपुत्र कॉलोनी, दीघा रोड, फुलवारी शरीफ, खगौल, दानापुर, शेखपुरा, राजाबाजार, जगदेवपथ आदि क्षेत्रों में हुआ है. इसके अतिरिक्त पटना में मोनो रेल और मेट्रो का बनना प्रस्तावित है. जगदेव पथ से शेखपुरा मोड़ तक तेजी से फलाईओवर बन रहा है. दीदारगंज से पुनपुन बांध, बिहटा होते हुए गंगा-वे से उसे मिलाने का प्रस्ताव भी प्रस्तावित है.
विगत वर्षों में पटना के रंगरूप में उल्लेखनीय बदलाव आया है. अब मध्यरात्रि में भी पटना की सड़कों पर चहल-पहल एवं लड़कियों/महिलाओं को रेस्तरां, सड़क, मार्केट आदि स्थलों पर देखा जा सकता है. शहर भौतिकवादी रंग में पूरी रफ़्तार से सराबोर हो रहा है. चारों तरफ हरियाली से आच्छादित रहने वाले शहर में गगनचुम्बी अट्टालिकाओं ने अपना डेरा जमा लिया है. अपार्टमेंट कल्चर के लोग आदि हो चुके हैं. आज की तारीख में राजेंद्र नगर, हनुमान नगर, कंकड़बाग, फ्रेजर रोड, एस.पी.वर्मा रोड, राजापुल, बोरिंग रोड, ईस्ट बोरिंग कैनाल रोड, एस.के.पुरी, पाटलिपुत्र कॉलोनी, राजीव नगर, शेखपुरा, राजा बाजार, खाजपुरा, समनपुरा, आर.पी.एस. मोड़, दानापुर, खगौल आदि स्थलों पर हर तरफ अपार्टमेंट बन चुका है या बन रहा है.
अब तो छोटे घरों को भी तोड़कर अपार्टमेंट बनाया जा रहा है. नये पटना की तुलना आज नोयडा और ग्रेटर नोयडा से की जा सकती है. इस क्रम में कभी एशिया की सबसे बड़ी कॉलोनी के नाम से विख्यात कंकड़बाग का रंगरूप पुरी तरह से बदल चुका है. इस कॉलोनी की विशेषता एमआईजी एवं एलआईजी मकान हुआ करते थे. पूरी कॉलोनी नियोजित तरह से बसाई गई थी. मकान के आगे लॉन और लॉन के बीच में करीने से फूलों के पौधे लगे रहते थे. वर्तमान में हरियाली राज्य के बड़े ओहदों पर काबिज कुछ महत्वपूर्ण व गणमान्य लोगों के नसीब में रह गई है. बदलते पटना में बेली रोड तथा उसके समीपवर्ती मार्गों में ही हरियाली बची हुई है, क्योंकि इस इलाके में बड़े लोगों का निवासस्थान है. थोड़ी बहुत हरियाली पाटलिपुत्र कॉलोनी में बची हुई है, लेकिन कब तक यह कायम रहेगी, कहा नहीं जा सकता.
बदलते दौर में पटना में लगभग सभी नामचीन रेस्तरां एवं होटल खुल चुके हैं. पिंड बलूची, कपिल इलेवन, बीकानेर, हल्दी राम, डोमिनो पिजा, केएफसी, यो चाइना, अंगीठी, मेजबान, रोटी आदि ने अपने लजीज पकवानों से पटनावासियों का दिल जीत लिया है. रेस्तरां कल्चर पटना के लोगों की दिनचर्या में चुपके से शामिल हो गया है. अब तो मुंबई के जुहू व चौपाटी एवं इंदौर के राजवाड़ा की तर्ज पर पटना में भी ठेलों पर बिहारी, चाइनीज एवं अन्यान्य लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं. पटना के मौर्य काम्प्लेक्स, बोरिंग रोड चौराहा, बोरिंग कैनाल रोड, गाँधी मैदान, केशव पैलेस आदि जगहों पर लिट्टीचोखा, चौमीन, मोमो, भेलपुरी, बताटापुरी, एगरोल, पावभाजी आदि से लैस ठेलों को आसानी से देखा जा सकता है. गौरतलब है कि निम्न व माध्यम वर्ग के बीच इसतरह के क्युजिन की जबर्दस्त लोकप्रियता है. पटना में वीकेंड सेलिब्रेट करने का चलन भी युवाओं के बीच लगातार बढ़ रहा है. पटनावासी अपनी आय का एक अहम हिस्सा आजकल खाने-पीने, मूवी व मस्ती में खर्च करने लगे हैं.
शॉपिंग के लिए अब पटना के पाटलिपुत्र में एक मॉल भी खुल गया है, जिसका नाम पी एंड एम है. सभी सुविधाओं से युक्त इस मॉल में बिग बाजार, सिनेपोलिस सहित मनोरंजन व शॉपिंग के सारे साधन उपलब्ध हैं. बावजूद इसके मौर्य कॉम्प्लेक्स, पटना मार्केट, हथुआ मार्केट, खेतान मार्केट, बोरिंग रोड, हरिनिवास कॉम्प्लेक्स, राजाबाजार, शेखपुरा आदि की लोकप्रियता शॉपिंग के लिहाज से आज भी बरक़रार है.
इस शहर में बच्चों के खेलने का भी ध्यान रखा गया है. सचिवालय के निकट हाल ही में ईको पार्क का विकास किया गया है. इस पार्क की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इस क्रम में रेलवे स्टेशन के पास स्थित बुद्ध पार्क की अहमियत को कम करके नहीं आँका जा सकता है. इसके अतिरिक्त बच्चों के बीच चिड़ियाघर, अजायबघर, गोलघर एवं वहाँ चलने वाला लेजर शो, कुम्हरार, तारामंडल, श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र, गंगा नदी में बोटिंग एवं क्रूज की सैर, पटना के निकट सम्पतचक में वाटर पार्क का लुत्फ़ आदि की लोकप्रियता किसी भी मायने में कम नहीं है.
कला-साहित्य एवं संस्कृति के दृष्टिकोण से पटना का शुरू से ही पूरे देश में महत्वपूर्ण मुकाम रहा है. रामधारी सिंह दिनकर, आर.सी.प्रसाद सिंह, नागार्जुन, अरुण कमल, आलोक धन्वा आदि का हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है. अंग्रेजी के जाने-माने लेखक अमिताव कुमार और सिद्धार्थ चौधरी मूल रूप से पटना के रहने वाले हैं. चित्रकारी की दुनिया में "पटना कलम" के नाम से शायद ही कोई अनजान होगा. अठारवीं व उन्नीसवीं शताब्दी में "पटना कलम" की धूम देश-विदेश में थी. "पटना कलम" विश्व में पहला स्कूल था, जहाँ की पेंटिंग में आम आदमी की दिनचर्या को विषय बनाया गया था. रंगकर्म में फिलवक्त पटना स्थित नाट्य संस्था "नटमंडप " अच्छा काम कर रहा है. इस काम को परवाज देने का कार्य कालिदास रंगालय, भारतीय नृत्य कला मंदिर, प्रेमचंद रंगशाला जैसे प्रेक्षागृह कर रहे हैं. इस संदर्भ में अच्छी बात यह है कि सिनेमा के फंतासी दौर में भी पटनावासी टिकट खरीदकर रंगकर्मियों का मंचन पूरे उत्साह से देख रहे हैं. पटना के शत्रुघ्न सिन्हा, शेखर सुमन, नीतू चंद्रा आदि वालीवुड में अच्छा काम कर रहे हैं. खेल के मामले में पटना का कोई खास योगदान नहीं रहा है.
अमीकर दयाल और सबा करीम जरुर क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रौशन करने में सफल रहे हैं. पटना में खेल से संबंधित आधारभूत संरचना का अभाव है. राजेंद्र नगर में अवस्थित मोइनुलहक, खगौल में जगजीवन और बिहार वेटनरी कॉलेज के निकट मिथिलेश स्टेडियम को छोड़कर यहाँ खेल से जुड़ा कोई संसाधन उपलब्ध नहीं है.
मोटे तौर पर देखा जाये तो पटना में कल-कारखानों का अभाव है. हालाँकि शुरू से ऐसी स्थिति नहीं थी. फुलवारीशरीफ में कभी कपड़ा का कारखाना था, जोकि अस्सी के दशक में बंद हो गया. वैसे स्पीडक्राफ्ट का कारखाना वहाँ अभी भी है, जिसे साईकिल फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है. बता दें कि कभी यहाँ लघु स्तर पर छोटी जीपों का निर्माण भी किया जाता था. हाँ, शगुन ब्रेड बनाने का कारखाना आज भी फतुहाँ में है.
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का दबदबा आरंभ से रहा है. बीते सालों इस संबंध में पटना का कद और भी बढ़ा है. आईआईटी, बीआईटी, निफ्ट, चाणक्य ला कॉलेज, केन्द्रीय विश्वविधालय आदि हाल के वर्षों में पटना में खुले हैं. पटना विश्वविद्यालय, बिहार का पहला और दक्षिण एशिया का सातवाँ पुराना विश्वविधालय है, जिसकी स्थापना 1917 में की गई थी. पटना मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज के नाम से हुई थी, जो चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहा है. वैसे इस संदर्भ में नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं आईजीएमएस के योगदान को खारिज नहीं किया जा सकता है. एम्स का भी पदार्पण पटना में हो चुका है. निजी अस्त्पतालों में महावीर कैंसर संस्थान, मगध व पारस अस्तपताल को अच्छा माना जा सकता है.
बच्चों को निजी तौर पर शिक्षित व जागरूक करने की दिशा में सुपर 30 अच्छा काम कर रहा है. विगत वर्षों से इस संस्था में प्रदेश के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. हाल ही में पंजाब के 3 बच्चों ने इस संस्थान में पढाई करके आईआईटी की परीक्षा पास की है. मजेदार बात है कि पंजाब वही प्रदेश है, जहाँ कभी बिहार से हजारों की संख्या में बेरोजगार युवा, रोजगार पाने के लिये पलायन करते थे.
पटना में पहले सर्चलाइट, पाटलिपुत्र टाइम्स, आज, इंडियन नेशन, आर्यावर्त जैसे अख़बारों की धूम थी. इन अख़बारों का चेहरा ब्लैक एंड व्हाईट हुआ करता था. अब सभी अखबार रंगीन हो चुके हैं. उनका कलेवर व ले-आउट पूरी तरह से बदल चुका है. कुछ अखबार बंद भी हो चुके हैं, वहीं कुछ नये अख़बारों का पर्दापण हुआ है. नये अख़बारों में प्रभात खबर, दैनिक जागरण आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. दैनिक भास्कर बहुत जल्द पटना से अपनी नई पारी शुरू करने वाला है. छोटे अख़बारों में अमृतवर्षा अभी जिन्दा है. इलेक्ट्रानिक मीडिया में ईटीवी, सहारा समय, मौर्य टीवी स्थानीय स्तर पर अच्छा काम कर रहे हैं. रेडियो के रंग-रूप में भी व्यापक बदलाव आया है. विविध भारती के साथ-साथ एफएम एवं रेडियो जॉकी की संकल्पना पटना में साकार हो चुकी हुई है.
इसमें दो मत नहीं है कि 90 के दशक में पटना से कारोबारियों का पलायन हुआ था. उस कालखंड में बहुतेरे सिंधी एवं सिख व्यापारियों ने कानून व्यवस्था के ठीक नहीं होने के कारण पटना से पलायन किया था, लेकिन हाल के वर्षों में पूरे माहौल में आमूल-चूल परिवर्तन आया है. बीते सालों विश्व बैंक ने जारी अपने बुलेटिन में कहा था कि काराबोर शुरू करने के लिहाज से पटना, दिल्ली के बाद दूसरा सबसे उपयुक्त नगर है.
जाहिर है पटना की तस्वीर बदल रही है, लेकिन साथ ही साथ जनसँख्या का दबाव इस शहर पर लगातार बढ़ता जा रहा है. शहर का विकास हुआ है, लेकिन बेतरतीब तरीके से. सरकार इस ओर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है. पटनावासी अपने अधिकारों से तो अवगत हैं, लेकिन कर्तव्यों के प्रति लापरवाह. कानून-व्यवस्था जरुर दुरुस्त हुई है, लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था अभी भी अव्यवस्थित है. पुलिस ट्रैफिक को कंट्रोल करने में असफल रही है, वैसे इसके लिये सिर्फ पुलिस को दोष नहीं दिया जा सकता. इसके लिये हम भी बराबर के दोषी हैं. इसी तरह से अव्यवस्थित फैलाव के लिये सिर्फ बिल्डरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
बिना सरकार की जानकारी के नगर में कोई काम नहीं हो सकता है. लिहाजा मामले में सरकार को क्लीनचिट देना बेमानी होगा. आज पूरे शहर में गंदगी का अम्बार लगा हुआ है. गंदगी और जलजमाव की वजह से डेंगू ने शहर में महामारी का रूप ले लिया है. अदालत कई बार इन मुद्दों पर नगर निगम और सरकार को फटकार लगा चुकी है. फिर उनके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है. इन खामियों के बावजूद इस शहर की एक अलग छटा है, जो अतुलनीय है.
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