मनमोहन सिंह तो महज कागजों के पीएम (प्राइम
मिनिस्टर) हैं। असली पीएम (पॉलिटीशियन मेकर) तो सोनिया गांधी है। और जो लोग
यह कहते हैं वे सोनिया गांधी को पीएम (पॉलिटीशियन मेकर) यूं ही नहीं
मानते, इसके पीछे कई कारण हैं। सब से पहला कारण तो यही है कि फिलहाल मनमोहन
सिंह पीएम उनके आदेश के कारण ही हैं, साथ ही वह जिसे चाहतीं, उसे प्राइम
मिनिस्टर बना सकती थीं, खुद भी बन सकती थीं, इसके अलावा तमाम ऐसे मौके आये
हैं, जब वह यूपीए सरकार के साथ पूरे विपक्ष पर भी भारी पड़ी हैं, जिससे उनकी
छवि सुपर पॉवर वाली महिला की बन गई है। महिला आरक्षण के विधेयक पर वह
अकेली सब पर भारी पड़ी थीं, ऐसे में कोई यह कैसे मान सकता है कि उनका बनाया
हुआ प्राइम मिनिस्टर उनसे बात किये बिना कुछ भी कर सकता है?
साथ ही यह भी कोई नहीं मान सकता कि उनके बनाये प्राइम मिनिस्टर
की सरकार कोई ऐसा निर्णय ले सकती है, जिसकी जानकारी उन्हें निर्णय लेने के
बाद होती होगी। हो सकता है कि अधिकांश मामलों में सोनिया गांधी स्वयं ही
हस्तक्षेप न करती हों या अधिकाँश मामलों में मनमोहन सिंह भी चर्चा न करते
हों, लेकिन यह बात आम जनमानस के बीच गहरे तक बैठ चुकी है कि प्राइम
मिनिस्टर मनमोहन सिंह सहित पूरी यूपीए सरकार में सोनिया गांधी की मंशा के
विपरीत कुछ नहीं होता, इसीलिए हर सही-गलत का श्रेय जनता उन्हीं को देती है,
जिसका उन्हें व्यक्तिगत तौर पर लाभ मिलता रहा है, तो हानि भी होगी ही। देश
और देश के बाहर पीएम (पॉलिटीशियन मेकर) होने के कारण उनका कद, मान-सम्मान
और प्रतिष्ठा बढ़ी, लेकिन सरकार बहुत अच्छा नहीं कर पाई, तो पीएम
(पॉलिटीशियन मेकर) होने के कारण ही उस नाकामी का अपयश भी उनको मिलना
स्वाभाविक ही है।
जनता के बीच सोनिया गांधी की छवि पीएम (पॉलिटीशियन मेकर) और सुपर पॉवर
के रूप में है, इसलिए यूपीए सरकार ने अब तक अच्छा-बुरा, जो भी किया है,
जनता उसका पूरा यश-अपयश सोनिया गांधी को ही देती है। अगले वर्ष होने वाले
लोकसभा चुनाव में जनता पीएम (पॉलिटीशियन मेकर) सोनिया गांधी को ध्यान में
रख कर ही मतदान करेगी, क्योंकि सोनिया गांधी, कांग्रेस और यूपीए सरकार,
तीनों को जनता एक ही मानती है। जनता के बीच सोनिया गांधी की छवि अच्छी
होगी, तो जनता पुनः कांग्रेस को चुनेगी और उनकी छवि खराब होगी, तो नकार
देगी। कांग्रेसी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने को
लेकर उत्साहित नज़र आते हैं और यह भूल जाते हैं कि कांग्रेस व यूपीए सरकार
में राहुल गांधी की हैसियत सोनिया गांधी के बाद वाली ही है।
जनता के बीच यह बात भी आम है कि मैडम सोनिया गांधी राजनैतिक तौर पर
मनमोहन सिंह से अधिक शक्तिशाली हैं। दागी जनप्रतिनिधियों वाले विधेयक को
बकवास करार देते हुए वापस कराकर उन्होंने अपनी शक्ति को हाल ही में सिद्ध
भी कर दिया, ऐसे में जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि राहुल
गांधी वाकई, आम जनता के नेता हैं तो अब तक वह अधिकाँश मुददों पर मौन क्यूं
रहे? यदि कुछ मुददों पर बोले भी, तो जनता के हित में उन्हें दागी विधेयक
की तरह ही बदलवाया क्यूं नहीं? ख़ासकर भ्रष्टाचार, मंहगाई, रूपये की गिरती
कीमत, सीमा पर चीन की मनमानी और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर वह एक
जनप्रिय नेता की तरह आम जनता को ख़ास चिंतित नज़र नहीं आये। सोनिया गांधी से
कम और मनमोहन सिंह से ज्यादा शक्तिशाली राहुल गाँधी को कांग्रेस
प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाती है, तो भी आम जनता में राहुल गांधी को
लेकर कोई उत्साह नहीं होगा, क्योंकि जनता यूपीए सरकार की नाकामियों का
श्रेय शक्तिशाली राहुल गांधी को भी देती है।
पिछले कई दिनों से कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर प्रियंका गाँधी भी
सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं। हालाँकि सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका
गाँधी की ओर से ऐसा इशारा नहीं हुआ है, साथ ही कांग्रेस की ओर से इस खबर
का लगातार खंडन भी किया जा रहा है। इस खबर के पीछे राजनैतिक चाल भी हो सकती
है। हो सकता है कि सोनिया गाँधी ही यह परखना चाहती हों कि प्रियंका को
लेकर जनता में कितना क्रेज है, साथ ही यह भी हो सकता है कि प्रियंका के
राजनीति में खुल कर आने की संभावना के चलते भाजपा की ओर से यह अफवाह फैलाई
गई हो, ताकि प्रियंका का क्रेज कम किया जा सके, क्योंकि प्रियंका राजनीति
में सरप्राइज़ की तरह आतीं, तो कांग्रेस हाई-प्रोफाइल प्रचारक बना कर कुछ न
कुछ लाभ तो उठा ही लेती। इस खबर को लेकर अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता,
क्योंकि इस खबर के पीछे कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही हो सकते हैं।
फिलहाल यही मान लेते हैं कि प्रियंका गांधी आने वाले चुनाव में कांग्रेस
का नेतृत्व कर सकती हैं, तो प्रियंका के आने से भी कांग्रेस को कोई बहुत
अधिक लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि जनता सीधे यही सवाल उठायेगी कि जब
प्रियंका की हैसियत कांग्रेस का नेतृत्व करने की पहले से ही थी, तो
उन्होंने यूपीए सरकार के माध्यम से बेहतर शासन दिलाने में रूचि क्यूं नहीं
ली? स्टार प्रचारक के तौर पर भी कांग्रेस के पास प्रियंका के रूप में कुछ
नया नहीं होगा, क्योंकि चुनाव के मौके पर वह पहले भी कुछ ख़ास क्षेत्र में
ही सही, पर अवतरित होती रही हैं। हाँ, यह हो सकता है कि प्रियंका के प्रचार
की धूम में कांग्रेस को कुछेक क्षेत्रों में लाभ मिल जाये, लेकिन विपक्ष
साथ में रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े मामले प्रियंका के नेतृत्व के कारण ही
प्रमुखता से उठायेगा और उन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं होगा, जिससे
लाभ की तुलना में हानि अधिक क्षेत्रों में हो सकती है। कुल मिला कर फिलहाल
देश में राजनैतिक माहौल पूरी तरह सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका
गांधी, कांग्रेस और यूपीए के विरुद्ध है और इसके अलावा कुछ नया, न कहने को
है और न ही दिखाने को।
इस सब के अलावा गांधी परिवार, कांग्रेस और यूपीए सरकार के विरुद्ध
राजनैतिक माहौल का होना एक अलग विषय है, क्योंकि माहौल किसी ख़ास दल के पक्ष
में भी नहीं दिख रहा। हाँ, इस माहौल का लाभ भाजपा अधिक ले पायेगी या
क्षेत्रीय दल, यह आने वाला समय ही बता पायेगा। सोनिया गांधी, राहुल गांधी,
प्रियंका गांधी, कांग्रेस और यूपीए सरकार, जनता की नज़र में यह सब एक ही हैं
और फिलहाल इन सबकी झोली में नाकामियां अधिक हैं, इसलिए जनता को इन सब से
अलग कुछ नया चाहिए। वैसे अभी जनता को खुश करने लायक समय शेष है, लेकिन जनता
सिर्फ चुनावी झुनझुनों से खुश नहीं होने वाली। कांग्रेस को जनता का खोया
हुआ विश्वास पुनः प्राप्त करना होगा, जो बेहद कठिन काम है, पर लोकतंत्र में
कुछ भी असंभव नहीं है।
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