12 October 2013

क्या राम नाम के सहारे ही होगी सत्ता की प्राप्ति ?

भारतीय जनता पार्टी ने अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि विवाद का 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ का निर्णय आने के बाद एक बार पुन: अपने आप को भगवान श्री राम से जोड़कर देखना शुरू कर दिया है। ये एक बार फिर राम का नाम लेकर सत्ता पाने की कुंजी खोलने का प्रयास कर रही है। भव्य मंदिर का निर्माण एक बार फिर उसकी प्राथमिकताओं में शामिल हो रहा है। लेकिन भाजपा भूल रही है कि काठ की हांडी आग पर एक बार ही चढ़ती है, बार-बार नहीं। देश की जनता राजनैतिक रूप से पहले की अपेक्षा काफी जागरूक हो चुकी है और भाजपा के मंसूबों को अच्छी तरह से समझने में सक्षम है।

जनता पार्टी सरकार के पतन के बाद असितत्व में आर्इ भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दुत्व का सजग प्रहरी होने का दावा किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन पाने के लिए भाजपा का यह दावा अनिवार्य था। आरएसएस अखिल भारत हिन्दू महासभा द्वारा स्थापित राष्ट्रवादियों और देशभक्तों का एक प्रखर संगठन है। हिन्दू महासभा अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि विवाद का मुकदमा सन 1950 से लड़ रही थी। सन 1986 के न्यायिक आदेश से हिन्दू महासभा ने रामलला विराजमान का ताला खुलवाने में एतिहासिक सफलता हासिल की। तभी से आरएसएस के इशारे पर भाजपा ने हिन्दू महासभा का तीन सूत्री एजेंड़ा अपहृत कर अपनी राजनीतिक गोटियां बिछाना आरम्भ कर दिया।

ये तीन सूत्री एजेंड़ा है- भगवान श्री राम का भव्य मंदिर, कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता। हिन्दू महासभा राजनेताओं की कमीं से जूझ रही थी और भाजपा राजनेताओं का गढ़ माना जाने लगा था। डॉ. अम्बेडकर ने एक बार कहा था- ''सौ समस्याओं की एक कुंजी 'सत्ता' है। संभवत: इसी बात से प्रेरित होकर हिन्दू महासभा ने भाजपा के इस आचरण पर कोर्इ प्रतिरोध नही किया होगा। भाजपा ने राजनैतिक रूप से लोकसभा की दो-चार सीटें देकर हिन्दू महासभा को संतुष्ट करने का प्रयास किया। भाजपा ने मंदिर निर्माण के नाम पर पूरे देश में रथयात्रा निकाली और देशवासियों से उसे अपार जनसमर्थन मिला। इस जन समर्थन ने भाजपा को सत्ता की कुंजी सौंप दी। भाजपा के प्रधान मंत्री अटल विहारी वाजपेयी से देशवासियों को बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन वाजपेयी जी उन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकें।

सत्ता में आते ही भाजपा ने सबसे पहले तीन सूत्री एजेंडे को दरकिनार कर दिया, जिसका अर्थ था कि न मंदिर बनेगा, न धारा 370 समाप्त होगी न समान नागरिक संहिता लागू होगी। भाजपा ने बाकायदा अपनी राष्ट्रीय कार्य समिति में मंदिर निर्माण के विषय को अपनी कार्यसूची से बाहर निकाल दिया और अगला चुनाव शाइनिंग इंडिया (चमकदार भारत) के नाम से लड़ा और सत्ता से बाहर हो गयी। आज तक सत्ता से बाहर हैं। होना ही था, भगवान श्रीराम के नाम पर देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का यही अंजाम होता है। आज भाजपा फिर से भगवान श्रीराम के नाम को सत्ता पाने की कुंजी बनाना चाहती है, पर क्या देश की जनता भाजपा के मंसूबों को पूरा करेगी?

दरअसल भाजपा जनसंघ का नया अवतार है। जनसंघ की स्थापना मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों को पुष्ट करने की अवधारणा पर हुई थी। देश के स्वतंत्र होने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिन्दू महासभा का दरवाजा मुसलमानों के लिये खोलने की कोशिश की थी, लेकिन हिन्दू हृदय सम्राट वीर सावरकर ने उनके इस प्रयास को सफल नही होने दिया। इस बात से रूष्ट होकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिन्दू महासभा को छोड़कर जनसंघ की स्थापना की। जनसंघ का नया अवतार भारतीय जनता पार्टी भी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों की पोषक है। अटल विहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में ही रामसेतु समुद्रम परियोजना को मंजूरी दी थी, जिसे ध्वस्त करने और उसके नाम पर भगवान श्रीराम के असितत्व को नकारने कांग्रेस ने प्रयास किया। भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान जाकर देश विभाजन और लाखों भारतीयों के हत्यारे जिन्ना का गुणगान किया, उसके मजार पर सर झुकाया। और तो और 6 दिसंबर, 1992 को श्रीराम जन्मभूमि पर बने एक जर्जर ढांचे के विध्वंस पर आंसू बहाये। पाकिस्तान और भारत के बीच बस और रेल सेवा अटल विहारी वाजपेयी ने शुरू करवायी। जिससे घुसपैठियों का भारत में प्रवेश आसान हो गया। इन तथ्यों के आधार पर भाजपा को हिन्दुत्व और हिन्दू का रक्षक कैसे कहा जा सकता है।

पिछली बार मंदिर आंदोलन के दौरान देश की जनता और विदेशों से अरबों रूपये का अकूत धन एकत्र हुआ था, देश की जनता सबसे पहले उस राशि की पार्इ-पार्इ का हिसाब लेना चाहेगी। इन्द्री (हरियाणा) के पूर्व निगम पार्षद सुभाष भाटिया के अनुसार 6 दिसंबर, 1992 को जर्जर ढांचे के विध्वंस के समय से मंदिर में रखी वो खड़ाऊं गायब है। जिसे पीआर (पुलिंग राइस) लगी थी। उस पीआर की कीमत अरबों-खरबों में बतायी जाती है। देश की जनता उस खड़ाऊं के बारे में जानना चाहेगी? देश की जनता यह भी जानती है कि भाजपा और उसकी आका आरएसएस के पास उनके जवाब नही मिलेंगे। जवाब न मिलने का अर्थ भाजपा के हित में नही हो सकता। देश की जनता भाजपा का दोहरा चरित्र अच्छी तरह समझ चुकी है।

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